दवा से दर्द
- भारत में अपनी मर्जी से दवाइयां खाने वालों की संख्या न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। यह अध्ययन कोलकाता स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के एजिंग एवं मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और अन्य कई चिकित्सा संस्थानों ने किया है…
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भारत में अपनी मर्जी से दवाइयां खाने वालों की संख्या न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। यह अध्ययन कोलकाता स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के एजिंग एवं मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और अन्य कई चिकित्सा संस्थानों ने किया है। अध्ययन में नई दिल्ली स्थित वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज एवं सफदरजंग अस्पताल भी शामिल हैं। साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि देश में 100 में से 28 बुजुर्ग गलत या गैर-जरूरी दवाइयों का सेवन कर रहे हैं। यहां स्व-चिकित्सा खतरनाक अभ्यास है, जिस पर इस अध्ययन ने रोशनी डाली है। पांच में से एक वृद्ध (19.7 प्रतिशत) डॉक्टर से परामर्श बिना दवाएं लेते हैं। देश में आधे से ज्यादा बुजुर्ग दर्द निवारक दवाइयों का सेवन अपनी मर्जी से करते हैं। पांच में से दो बुजुर्ग बुखार या बेचैनी होने पर मनमानी से पैरासिटामोल लेते हैं। सबसे चिंताजनक यह है कि हर तीन में से एक बुजुर्ग बिना देखरेख के एंटीबायोटिक्स का सेवन करता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि वास्तव में जब शरीर को एंटीबायोटिक्स दवा की जरूरत पड़ती है, तब वह काम नहीं करती है।
ध्यान रहे कि यह अध्ययन छह प्रमुख भारतीय शहरों- नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, उज्जैन, पटना और गुवाहाटी में किया गया है, जिसमें 600 बुजुर्ग शामिल हुए हैं। यह उपयोगी अध्ययन इस तथ्य के मद्देनजर जरूरी है कि भारत में बुजुर्गों की आबादी ज्यादा है। साल 2021 तक देश की कुल आबादी में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 10.1 प्रतिशत है। यह ऐसी आबादी है, जिसका एक बड़ा हिस्सा दवाइयों पर निर्भर रहता है। जहां बुजुर्ग अकेले रहते हैं, वहां उनमें स्व-चिकित्सा की आशंका साढ़े चार गुना बढ़ जाती है। पुराने मरीज भी स्व-चिकित्सा से अपनी स्थिति को खराब कर लेते हैं। हाल ही में अस्पताल में भर्ती हुए वरिष्ठ नागरिकों में स्व-चिकित्सा करने की आशंका लगभग पांच गुना ज्यादा होती है। बुजुर्गों को समझाने या जागरूक करने की जरूरत है, क्योंकि तीन में से दो बुजुर्ग स्व-चिकित्सा के खतरों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। बुजुर्गों को यह नहीं पता कि जैसे सिरदर्द की अनेक वजहें हो सकती हैं, वैसे ही बुखार के भी कई कारण हो सकते हैं। हर बार एक ही दवा काम नहीं करती और उसका इस्तेमाल शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में दस में से दो बुजुर्ग रक्तचाप की दवाएं लेते हैं, जबकि दस में से डेढ़ मरीजों को मधुमेह की दवा लेनी पड़ती है। भारत में हर दस में से एक आदमी की हड्डियां कमजोर हो गई हैं और कैल्शियम की जरूरत पड़ रही है।
गलत, गैर-जरूरी दवाओं व स्व-चिकित्सा के खतरे को व्यापकता में समझने और कदम उठाने की जरूरत है। अव्वल तो सेहत और दवाओं को लेकर सबको सजग करने की जरूरत है। अगर इस काम के लिए किसी विशेष राष्ट्रीय अभियान की जरूरत पड़े, तो हिचकना नहीं चाहिए। विकसित भारत के साथ स्वस्थ भारत भी हमारा सपना होना चाहिए और उसे साकार करने के लिए विशेष रूप से चिकित्सकों को दिलो-जान से जुटना होगा। चिकित्सक स्वयं भी अतिरिक्त दवाइयां लिखना कम करें और स्व-चिकित्सा को हतोत्साहित करें। इसके अलावा चिकित्सा सेवा को बहुत किफायती या बेबस बुजुर्गों के लिए मुफ्त रखने की जरूरत है, इसके लिए सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं का विस्तार आज समय की एक बड़ी मांग है।
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