नजीर बने निलंबन
- केरल सरकार द्वारा दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के निलंबन की कार्रवाई ने हमारे प्रशासनिक ढांचे में तेजी से बढ़ते गंभीर रोगों की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया है। इन दोनों ही मामलों में की गई कार्रवाई न सिर्फ सराहनीय…
केरल सरकार द्वारा दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के निलंबन की कार्रवाई ने हमारे प्रशासनिक ढांचे में तेजी से बढ़ते गंभीर रोगों की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया है। इन दोनों ही मामलों में की गई कार्रवाई न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय भी है। राज्य सरकार ने केरल उद्योग एवं वाणिज्य निदेशक के गोपालकृष्णन को सोशल मीडिया मंच वाट्सएप पर सांप्रदायिक समूह बनाने और उनसे भारतीय प्रशासनिक सेवा के सहधर्मी अधिकारियों को जोड़ने के आपत्तिजनक आचरण के लिए निलंबित किया है, तो वहीं कृषि विभाग के विशेष सचिव एन प्रशांत को एक अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के खिलाफ लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने के लिए निलंबित किया गया है। हालांकि, गोपालकृष्णन ने सफाई पेश की थी कि उनका मोबाइल हैक कर लिया गया था। मगर तिरुवनंतपुरम सिटी पुलिस की जांच में यह दावा सही साबित नहीं हुआ। अच्छी बात यह है कि इन वरिष्ठ अधिकारियों के कृत्य को राज्य सरकार ने नजरंदाज नहीं किया और बगैर वक्त गंवाए मुकम्मल तफ्तीश के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई भी कर डाली। इससे राज्य के अन्य अधिकारियों को यकीनन पैगाम मिल गया होगा कि अनुशासनहीनता की कीमत चुकानी पडे़गी।
निस्संदेह, हमारे प्रशासनिक अधिकारी इसी समाज से आते हैं और सामाजिक विमर्शों का उन पर असर स्वाभाविक है; मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के संविधान ने उनको एक विशिष्ट भूमिका सौंपी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत भावनाओं-दुर्भावनाओं के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की सबसे बड़ी सेवा है। एक कठिन प्रक्रिया के जरिये इसके अधिकारियों का चयन होता है और उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि नागरिकों की सेवा करते हुए वे किसी भी किस्म के पक्षपात के बिना संविधान और कानून की रोशनी में काम करेंगे। वे इस देश की कार्यपालिका की रीढ़ हैं। मगर गोपालकृष्णन का आचरण इसके उलट था और राज्य सरकार ने उचित ही इसे अखिल भारतीय सेवा के काडरों के बीच हिंदू-मुस्लिम आधार पर विभाजन पैदा करने वाला करार दिया। ऐसे विभाजनों से सेवा की मूल अवधारणा खंडित होती है। धर्म के आधार पर अनुराग या वैमनस्य रखने वाला अधिकारी अपने सेवाकाल में जाति, उपजाति के आधार पर भेदभाव को प्रोत्साहित नहीं करेगा, यह कैसे माना जाए? इस तरह तो समूचे सामाजिक ताने-बाने को ही ऐसे अधिकारी संकट में डाल देंगे।
इसी तरह, एन प्रशांत ने भी शासकीय मर्यादाओं का उल्लंघन किया। किसी भी महकमे के दो ओहदेदारों का टकराव सामान्य बात है, मगर सोशल मीडिया पर अपने वरिष्ठ सहकर्मी के खिलाफ विषवमन चरम अनुशासनहीनता ही नहीं, एक तरह से आपराधिक कृत्य है। दरअसल, इन दोनों अधिकारियों के कृत्य बताते हैं कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर किस तरह के प्रशिक्षण व सतर्कता की जरूरत है। पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर शासन-प्रशासन से जुडे़ अधिकारियों-कर्मचारियों की उपस्थिति काफी बढ़ी है और कई बार जाने-अनजाने ही वे सेवा-संहिता का उल्लंघन करते देखे गए हैं। देश के संविधान ने अपने सभी नागरिकों को आस्था की आजादी दी है, मगर अपनी आस्था के आधार पर सांविधानिक मूल्यों पर हमले की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती। विडंबना यह है कि कट्टरता के विरोधी भी स्वधर्मी कट्टर को सेनानी मानने लगते हैं। मगर यह खतरनाक प्रवृत्ति है, इस पर हर मुमकिन रोक लगाने की जरूरत है।
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