Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगhindustan aajkal column by shashi shekhar trump on the dividing line of history 19 january 2025

इतिहास की विभाजन रेखा पर ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप के निंदक भी मानते हैं कि उनका बहुत सा बड़बोलापन सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए होता है। कभी-कभी वह लोगों, राजनेताओं अथवा देशों से ‘बेस्ट डील’ पाने के लिए भी ऐसा करते हैं…

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानSat, 18 Jan 2025 08:26 PM
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इतिहास की विभाजन रेखा पर ट्रंप

अमेरिका के नए-नवेले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कल, यानी सोमवार को अपने दूसरे सत्ता-काल की शपथ लेंगे। इस महादेश के इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति के सत्तारोहण पर इतनी आशंकाएं नहीं उपजीं, जितनी आज देखी जा रही हैं। खुद डोनाल्ड ट्रंप इसके लिए जिम्मेदार हैं। इससे उनके देश और दुनिया का भला क्या लाभ होने जा रहा है?

इस सवाल के जवाब से पहले हमें उनके पिछले कार्यकाल पर नजर डालनी होगी। उन्होंने 20 जनवरी, 2017 को अमेरिका के पहले अश्वेत और यशस्वी राष्ट्रपति बराक ओबामा से सत्ता का बैटन हासिल किया था। वह उस वक्त भी अप्रवासियों पर नकेल कसने और बडे़ स्तर पर कर सुधार के वायदों के साथ व्हाइट हाउस में दाखिल हुए थे। उनके तमाम बयानों से तरक्कीपसंद अमेरिकियों की पेशानी पर बल पड़ गए थे, लेकिन ट्रंप बेपरवाह थे। अनेक चुनौतियों के बावजूद पहले 100 सत्ता-दिनों में वह कर सुधार की व्यापक योजना पेश कर अपने मतदाताओं के बीच लोकप्रियता कायम रखने में कामयाब रहे थे। एक सर्वेक्षण में उनके 90 फीसदी से अधिक मतदाताओं ने उन्हें दोबारा वोट देने की ख्वाहिश जताई थी। हालांकि, उनके तमाम वायदे तब भी तवज्जो का इंतजार कर रहे थे। चार साल के पिछले कार्यकाल में उन्होंने दुनिया के उदारवादियों को कई बार थर्राने पर मजबूर किया था।

अगला चुनाव हारने पर कई लोगों ने इसीलिए कहा था कि लोकतंत्र बच गया। हालांकि, तब भी आशंका व्यक्त की गई थी कि ट्रंप सिर्फ व्हाइट हाउस से विदा हुए हैं, पर ट्रंपवाद कायम है। ऐसा सोचने वाले तत्काल सही साबित हो गए थे। ट्रंप ने हार मानने से इनकार कर दिया था और उनके समर्थक कैपिटल हिल पर कुछ घंटों के लिए कब्जा जमाने में कामयाब हो गए थे। अमेरिकी इतिहास के लिए यकीनन वह काला दिन था।

यह ट्रंपवाद ही है, जिसने अपने उत्कट आवेग में उनके जरिये जनी गई तमाम कालौंच को महज चार साल में बहा दिया। हालांकि, 2017 और 2025 की जनवरी में जमीन-आसमान का फर्क है। तब अमेरिकी फौज परदेसी जमीन पर धूमिल ध्येय के लिए खून बहा रही थी। आज पेंटागन की इमदाद से पूर्वी यूरोप में जानलेवा जंग जारी है। गाजा की जंग भी पिछले हफ्ते की शुरुआत तक जारी थी। जो बाइडन के बतौर राष्ट्रपति अंतिम उद्बोधन से एक दिन पहले खबर उड़ी कि गाजा पट्टी में युद्ध विराम हो गया। खुशी के आवेग में लोग सड़कों पर उल्लास बिखेरने लगे। उसी रात इजरायली बमवर्षकों ने 70 से अधिक गाजावासियों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि, दो दिन बाद इजरायली कैबिनेट ने इस पर मोहर लगा 460 दिनों पुरानी खूनी संघर्ष पर विराम लगा दिया, मगर यह शांति कितने दिनों तक टिकेगी?

कोई आश्चर्य नहीं, परमाणु युद्ध की आशंका से धरती आक्रांत है।

वाशिंगटन डीसी का सत्ता-सदन पिछले 40 वर्षों से दुनिया का दारोगा बना हुआ है, लेकिन चीन के उभार, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण, गाजा पट्टी की लड़ाई, अभूतपूर्व राजकोषीय घाटे और डॉलर के समकक्ष मुद्राओं की पेशकश ने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। ऐसे में, नए अमेरिकी हुक्मरां से परिपक्व समाधानों की उम्मीद की जा रही थी, पर वह हर रोज नई उलटबांसी रच रहे हैं।

वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने पद सम्हालने से पहले एक नक्शा जारी कर दिया। इसमें कनाडा को अमेरिका के 51वें प्रदेश के तौर पर दिखाया गया है। यही नहीं, वह ग्रीनलैंड पर पर्यावरण और पनामा कैनाल पर आर्थिक वजहों से अमेरिका का नियंत्रण चाहते हैं। ऐसा न होने पर उन्होंने डेनमार्क पर अतिरिक्त कर ठोकने की धमकी दी है, क्योंकि ग्रीनलैंड उसका स्वायत्तशासी हिस्सा है। वह मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर अमेरिका के नाम पर भी रखना चाहते हैं। उम्मीद के अनुरूप इन देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

क्या यह उस संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र का उल्लंघन नहीं है, जो सभी मुल्कों की सीमाओं और प्रभुसत्ता को बरकरार रखने की वकालत करता है? अमेरिका को अब तक इस ‘चार्टर’ का रखवाला माना जाता रहा है। आप चाहें, तो अफसोसपूर्वक कह सकते हैं, मौजूदा दुनिया में लोकतंत्र का लबादा ओढ़े विस्तारवादी और तानाशाही प्रवृत्ति के नेताओं की तादाद बढ़ती जा रही है।

यही नहीं, वह चीन पर अतिरिक्त दस फीसदी आयात कर थोपने की वकालत के साथ दोबारा व्हाइट हाउस में दाखिल हो रहे हैं। अगर वह ऐसा करेंगे, तो इसके जबरदस्त आर्थिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। अमेरिका चीन का सबसे बड़ा आयातक है। इससे बीजिंग को जबरदस्त झटका लगेगा और विश्व के बाजारों में हलचल मच सकती है। ट्रंप का मानना है कि अभूतपूर्व राजकोषीय घाटे से गुजर रहे अमेरिका को इस पहल से राहत मिलेगी, पर यह जरूरी नहीं कि सब कुछ वैसा ही हो, जैसा वह सोच रहे हैं। ईरान पर शिकंजा कसते वक्त जिमी कार्टर ने कब सोचा था कि जोशीले नौजवान उनके दूतावास पर कब्जा कर लेंगे और यह कब्जा 444 दिनों तक जारी रहेगा? कार्टर इसी वजह से अगला चुनाव हार गए थे। पिछले दिनों उनकी मौत एक असफल राज्याध्यक्ष की शोकांतिका के रस्मी पूर्णविराम से अधिक कुछ भी न थी।

ट्रंप एक और मामले में पहले अमेरिकी हुक्मरां साबित होने जा रहे हैं। उन्हें एक अदालत ने ताजपोशी से ऐन पहले यौनिक कदाचार का दोषी माना। यह ठीक है कि कानूनी प्रावधानों की आड़ में वह जेल नहीं जाएंगे, पर नैतिकता और राजनीति का चोली-दामन का साथ है। लगता है, यह कालखंड ऐसे सत्तानायकों को प्रश्रय देने वाला है। रूस के व्लादिमीर पुतिन पर अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत से युद्ध अपराध पर वारंट जारी है, पर वह शान से पदासीन हैं। यह तो उन महादेशों का हाल है, जो संयुक्त राष्ट्र में वीटो की ताकत रखते हैं, वैसे यह सूची खासी लंबी है।

एक बात और। ट्रंप ने अपने आस-पास जिन अधिकारियों की तैनाती की है, उन पर विवाद उठ खड़ा हुआ है। आलोचक उनके मनसूबों और इस नई कुमुक को मिलाते हुए कहते हैं कि पहले स्वतंत्र नौकरशाही अमेरिकी राष्ट्रपतियों को निरंकुश होने से रोकती थी। उसकी सलाहों की अहमियत होती थी, पर ‘वफादारों’ की यह फौज सिर्फ अपने ‘आका’ को खुश करने की कोशिश में रहेगी। ट्रंप के नए दोस्त एलन मस्क भी अपने मित्र के साथ जुगलबंदी कर रहे हैं। बरसों से सामरिक साझेदार देशों के प्रति उनकी टिप्पणियां नई सनसनी रच रही हैं। क्या मस्क की राय में ट्रंप की भी इच्छा शामिल है?

यहां यह मत सोच बैठिएगा कि ट्रंप सिर्फ जटिलताओं का नया संसार साथ लेकर आ रहे हैं। उनके निंदक भी मानते हैं कि उनका बहुत सा बड़बोलापन सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए होता है। कभी-कभी वह लोगों, राजनेताओं अथवा देशों से ‘बेस्ट डील’ पाने के लिए भी ऐसा करते हैं। वह दोबारा राष्ट्रपति भले बन जाएं, पर मूलत: तो कारोबारी ही हैं। एक ऐसा कारोबारी, जो निजी व्यापार हो या देश का हित, हमेशा सामने वाले से सर्वोत्तम हासिल करना चाहता है।

यही वजह है कि अब प्रशंसकों और आलोचकों को उनके शुरुआती फैसलों का इंतजार है। ये निर्णय सिर्फ ट्रंप-2 की दशा-दिशा नहीं, बल्कि आती दुनिया का चाल, चरित्र और चेहरा भी तय करेंगे।

@shekharkahin

@shashishekhar.journalist

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