Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगhindustan aajkal column by shashi shekhar 5 January 2024

2025 को जो तय करना है

  • साल 2025 के पहले दिन की कुछ सुर्खियों पर नजर डाल देखिए- न्यू ओर्लियंस में नए साल के जश्न मनाती भीड़ पर एक दहशतगर्द ने ट्रक चढ़ा दिया, जिससे 14 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए।

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानSun, 5 Jan 2025 09:25 AM
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2025 को जो तय करना है

साल 2025 के पहले दिन की कुछ सुर्खियों पर नजर डाल देखिए- न्यू ओर्लियंस में नए साल के जश्न मनाती भीड़ पर एक दहशतगर्द ने ट्रक चढ़ा दिया, जिससे 14 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। ट्रक चला रहे शमसुद्दीन जब्बार ने बाद में भीड़ पर गोलियां चलाने की कोशिश की, पर पुलिस ने उसे मार गिराया।

जब्बार कभी अमेरिकी फौज में हुआ करता था। इसे अमेरिकी खुफिया तंत्र की एक और विफलता माना जाना चाहिए। जब्बार का आपराधिक अतीत रहा है। उस पर समुचित नजर नहीं रखी गई, जिसकी कीमत निरीह अमेरिकियों ने अपनी जान देकर चुकाई। बात यहीं खत्म नहीं होती। कुछ घंटों के भीतर ही लास वेगास में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के होटल के बाहर एक वाहन में विस्फोट हुआ, जिसमें एक शख्स मारा गया। दिलचस्प यह है कि वह गाड़ी ट्रंप के करीबी कारोबारी एलन मस्क की टेस्ला में बनी थी। टेस्ला, ट्रंप के होटल और विस्फोट का क्या प्रतीकात्मक संबंध है? तीसरी घटना न्यूयॉर्क के क्वींस शहर की है। यहां एक नाइट क्लब में गोलीबारी में 11 लोग घायल हो गए। बाद की इन घटनाओं की जांच जारी है। पुलिस ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इन्हें दहशतगर्दी से नहीं जोड़ा है, लेकिन अमेरिकी समाज में पनपती असहजताएं इनसे एक बार फिर जगजाहिर हुई हैं।

डोनाल्ड ट्रंप इन दरारों को चौड़ा करने वाले साबित हुए हैं। वह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जिन्होंने जनतांत्रिक तरीके से हुई अपनी हार को स्वीकार करने से मना कर दिया था। इसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आए थे। अमेरिकी इतिहास में 6 जनवरी, 2021 को काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा। उस दिन उनके समर्थकों ने कैपिटल हिल पर कब्जा कर लिया था। क्या संयोग है? कल, यानी सोमवार को वह घटना चार साल पूरे कर लेगी। अगले पखवाड़े ही वह अपना दूसरा कार्यकाल सम्हालेंगे। कौन कहता है कि लोकतंत्र विद्रूप रहित है?

दुनिया के लोकतंत्र-प्रेमी इसलिए सवाल उठा रहे हैं कि ऐसा व्यक्ति भला धरती को दो हिस्सों में क्षत-विक्षत कर रहे युद्धों पर कैसे काबू पाएगा?

इन तीन अमेरिकी घटनाओं के बीच धरती के अन्य हिस्सों में दो ऐसे घटनाक्रमों ने आकार लिया, जिनके दूरगामी दुष्परिणाम हो सकते हैं। नववर्ष की रात को इजरायल ने गाजा पर नया हमला कर 12 लोगों को मार डाला। वहीं पूर्वी यूरोप में यूक्रेन ने रूस की गैस पाइप लाइन पर कब्जा कर लिया। इसके जरिये रूस पूरे यूरोप को गैस सप्लाई करता है। अगर गैस की आपूर्ति ठप हो गई, तो इससे मास्को को जो आर्थिक क्षति पहुंचेगी, वह अपनी जगह है, पर भयंकर बर्फबारी के मौसम में पूर्वी यूरोप को भी कंपकंपाना पडे़गा।

ये सुर्खियां क्या कहती हैं?

इस बार व्हाइट हाउस कांटों भरे ताज के साथ डोनाल्ड ट्रंप का इंतजार कर रहा है। बड़बोले ट्रंप को आने वाले दिनों में न केवल अंतरराष्ट्रीय, बल्कि अंदरूनी समस्याओं से भी जूझना पड़ेगा। न्यू ओर्लियंस, न्यूयॉर्क और लास वेगास की वारदात ने पूरी दुनिया को एक बार फिर जता दिया है कि अमेरिकी अभेद्यता को उसके अंदर से भी चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में, ट्रंप हमास-इजरायल और रूस-यूक्रेन जंग को सुखद पड़ाव तक कैसे पहुंचा सकेंगे?

अपना तीसरा साल पूरा करने जा रही रूस-यूक्रेन जंग रूसी सैन्य सर्वोच्चता पर भी गहरे सवाल खडे़ करती है। व्लादिमीर पुतिन इस दौरान उतने मजबूत साबित नहीं हुए, जितने का हौआ उन्होंने बना रखा था। इतिहास बताता है कि टूटता हुआ तानाशाह दूसरों को बर्बाद करने की हरचंद कोशिश करता है। इस घटना से एक बार फिर यह आशंका बुलंद हो चली है कि कहीं हड़बड़ाहट में पुतिन कोई गलत कदम न उठा लें।

साल 2025 की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि फैलती-पनपती जंगों को कैसे रोका जाए?

अब तक इन युद्धों ने इंसानियत को कैसे लहू-लुहान किया है, यह जानने के लिए कृपया संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विभाग द्वारा जारी इन आंकड़ों पर नजर डाल देखें। इनके मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध में इस साल 21 अक्तूबर तक 11,973 नागरिक मारे जा चुके थे, जिनमें 622 बच्चे थे। वहीं फलस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावा किया है कि इजरायल-हमास जंग में पिछले 14 माह में 45,000 लोग मारे गए, जिनमें 17,000 बच्चे थे।

जंग और दहशतगर्दी के बाद मानवता के लिए सर्वाधिक आवश्यक मुद्दे जलवायु परिवर्तन पर चर्चा। 2024 ‘अब तक का सर्वाधिक गर्म वर्ष’ साबित हो चुका है। दोहा-वार्ता की असफलता के बाद से ही आने वाले वर्ष में हालात और बिगड़ने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। रिकॉर्डतोड़ सर्दी की जल्दी आमद भी यही संकेत दे रही है। ट्रंप के जीतने पर इस चुनौती से मुकाबले की लड़ाई के पस्त पड़ने का अंदेशा जताया जा रहा है। जलवायु संकट पर उनके उग्र विचार जगजाहिर हैं।

इस वर्ष की एक और उत्कंठा आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स (एआई) को लेकर है। एआई इस साल हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ और दखल बनाने जा रहा है। यही वजह है कि इसके फायदों के साथ नुकसान के अंदेशे भी चर्चा में हैं। येरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार युवाल नोआह हरारी का कहना है कि एआई झूठ भी बोल सकता है। प्रोफेसर हरारी ने उदाहरण दिया कि ओपन एआई ने जब जीपीटी-4 लॉन्च किया, तो जांच करने के इरादे से इसे कैपचा पहेली सुलझाने के लिए कहा गया। जीपीटी यह सुलझा नहीं पा रहा था। इसके बाद उसे एक वेब पेज टास्करैबिट का एक्सेस दिया गया। जीपीटी ने एक व्यक्ति को यह कहते हुए अपना काम सौंप दिया कि वह देख नहीं सकता। एल्गोरिदम बनाने वाले इंजीनियर हैरान थे कि इस एआई ‘टूल’ ने अपने आप झूठ बोलना कैसे सीख लिया?

हरारी और कुछ अन्य विद्वान कहते हैं कि यह इसलिए भी घातक साबित हो सकता है कि इंसान द्वारा निर्मित यह पहला टूल है, जो सोच सकता है और फैसला ले सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कुत्सित विचारों वाले लोग एआई का इस्तेमाल बुरे इरादों के लिए कर सकते हैं। पिछले साल 21 जनवरी को एआई के जरिये अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन की आवाज की नकल कर न्यू हैंपशायर के हजारों मतदाताओं को भ्रामक रोबोकॉल किए गए थे। ऐसा करने वाली कंपनी ‘लिंगो टेलीकॉम’ को बाद में 10 लाख डॉलर का जुर्माना भरना पड़ा। भारत में अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का मामला सामने है। यह सूची लंबी है और इसीलिए सवाल पैदा हो रहा है कि कहीं विज्ञान ने इंसानियत के लिए भस्मासुर तो नहीं गढ़ लिया है?

क्या 2025 युद्ध, आतंकवाद, पर्यावरण और एआई पर कोई ऐसी राय कायम करवा सकेगा, जो सर्वजन हिताय हो?

इस बार व्हाइट हाउस कांटों भरे ताज के साथ डोनाल्ड ट्रंप का इंतजार कर रहा है। न्यू ओर्लियंस, न्यूयॉर्क और लास वेगास की वारदात ने पूरी दुनिया को एक बार फिर जता दिया है कि अमेरिकी अभेद्यता को उसके अंदर से भी चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में, ट्रंप हमास-इजरायल और रूस-यूक्रेन जंग को सुखद पड़ाव तक कैसे पहुंचा सकेंगे?

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