Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan aajkal column by shashi shekhar 2 March 2025

सर्दियां सिकुड़ क्यों रही हैं

  • कई देशों ने नदियों को बचाए और बनाए रखने के लिए उनको इंसानी शरीर का दर्जा दिया है। जो लोग उन नदियों को नुकसान पहुंचाते हैं, उनके खिलाफ वही कार्रवाई की जाती है, जो इंसानी देह को क्षति पहुंचाने पर होती है। हमें हर उस मुद्दे पर ऐसी ही कड़ाई…

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानSat, 1 March 2025 08:11 PM
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सर्दियां सिकुड़ क्यों रही हैं

क्या आपको भी सर्दियां सिकुड़ती और उनकी जगह गर्म दिन पसरते नजर आने लगे हैं? यह मौसम की दगाबाजी है या कुदरत पर इनसानी कहर का नतीजा? इसका हमारे जीवन पर क्या असर पड़ रहा है, यह जानना जरूरी है।

गोरखपुर, एम्स के चिकित्सक अचंभित हैं। उनके यहां ‘हाइड्रोओ वैक्सीनफॉर्म’ के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह दुर्लभ त्वचा रोग अति तीखी धूप के संपर्क में आने से होता है। आम तौर पर इसके मरीज रेगिस्तानी इलाकों में मिलते हैं। गोरखपुर और उसके आसपास का इलाका तराई जैसा है। राजस्थान के मुकाबले वहां धूप और शुष्कता कम रहती है। मतलब साफ है। धूप की प्रखरता इतनी बढ़ चली है कि मनुष्य की चमड़ी उसे सह नहीं पा रही।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, गोरखपुर के चिकित्सा विशेषज्ञों ने अप्रैल से लेकर अगस्त 2024 के बीच आए इन मरीजों के डाटा का गहराई से अध्ययन किया। मालूम पड़ा कि अप्रैल से अगस्त के बीच 39 दिन तापमान 40 डिग्री से अधिक था, जो सामान्य से कहीं ज्यादा है। एम्स के ये आंकड़े बताते हैं कि 2021 में गोरखपुर और उसके आसपास के इलाके में 40 डिग्री या उससे अधिक तापमान वाले महज छह दिन थे। तीन साल में छह गुना से अधिक यह बढ़ोतरी क्या कहती है? यह सवाल तब और काबिले-गौर हो उठता है, जब हम उन भविष्यवाणियों पर नजर डालते हैं। उनके अनुसार यह वर्ष पिछले से कहीं अधिक गर्म हो सकता है।

पूर्वांचल का यह इलाका अकेला मौसम का मारा नहीं है।

एक अन्य शोध में पाया गया है कि भारत में ‘सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर’ के मरीजों की आमद अब फरवरी से ही शुरू हो गई है। कुछ साल पहले ऐसे रोगी मई-जून में डॉक्टरों का दरवाजा खटखटाते थे। मैं यहां आपसे नई दिल्ली की एक बेहद चिंताजनक रिपोर्ट पर बात करना चाहूंगा। वहां के चिकित्सकों के अनुसार, 40 से अधिक बच्चे एक दुर्लभ बीमारी ‘जेरोडर्मा पिगमेंटोसा’ से पीड़ित हैं। यह इतना खतरनाक रोग है कि अगर धूप की महज एक किरण उनके शरीर पर पड़ जाए, तो उन्हें कैंसर हो सकता है। इन बच्चों को सिर से पांव तक ढककर रखा जाता है। वे रात में ही घर से बाहर कदम रख पाते हैं।

नई उमर की नई फसल के लिए इससे घातक क्या हो सकता है?

इस गर्म होते वातावरण में मच्छर जनित बीमारियां भी नए रिकॉर्ड रच रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि पिछले 60 वर्षों में डेंगू फैलाने वाले मच्छर के संक्रमण में 43.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2023 में तो डेंगू के मामलों ने नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस वर्ष पचास लाख से अधिक लोग मच्छरों के मारे अस्पतालों तक पहुंचे।

गर्मी किस तरह जानलेवा हो गई है, यह जानने के लिए ‘ग्लोबल क्लाइमेट ऐंड हेल्थ एलाएन्स’ की कार्यकारी निदेशक जेनी मिलर के इस बयान पर गौर फरमाएं। मिलर ने पिछले वर्ष कहा था कि अत्यधिक गर्मी के कारण सिर्फ भारत में हीट स्ट्रोक के 40,000 से भी अधिक मामले सामने आए। इनमें से 700 लोगों ने दम तोड़ दिया। लैंसेट काउंटडाउन से जुडे़ विशेषज्ञ मानव शरीर पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने जिन 15 पहलुओं को अपने शोध का हिस्सा बनाया, उनमें से 10 के हालात चिंताजनक हैं।

तय है, आने वाले दिन तमाम अशगुनी गाथाओं में डूबते-उतराते नजर आ सकते हैं।

मौसम के छलियेपन पर मेरा यह अनुभव सुनिए। पिछली 23 दिसंबर को मैं हर्षिल की मनोरम घाटी में था। उस दोपहर हम लोग घूम-घामकर लौटे थे कि ऐसा लगा, जैसे आसमान से रुई के फाहे बरस रहे हों। वह बर्फ थी, जो अगले 10 घंटे तक गिरती चली गई। देखते-देखते सड़कें सफेद चादर से ढक गईं और यातायात रोकना पड़ा। उस दिन स्थानीय नागरिक खुशी से उछले पड़ रहे थे। उनका मानना था कि इस साल बर्फ ज्यादा पड़ेगी। वे खुशफहम साबित हुए। गुजरता जाड़ा अकल्पनीय तौर पर गर्म साबित हुआ। गई 26 जनवरी को नई दिल्ली में तापमान 23.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जबकि दिल्ली और उत्तर भारत के मैदानों में ये दिन भयंकर ठंड और कोहरे के होते हैं। राजधानी से हजारों किलोमीटर दूर बेंगलुरु से भी ऐसे ही हैरान करने वाले समाचार प्राप्त हो रहे हैं। इस मनोरम शहर में तापमान फरवरी के महीने में ही 35 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। कई मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार बेंगलुरु में गर्मी दिल्ली से ज्यादा भी पड़ सकती है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी फरवरी में गर्मी से बेजार रही। वहां तापमान 38.7 डिग्री तक पहुंच गया और हवाओं ने गर्मी पकड़ ली।

मौसम की यह मार धरती के सागरों और महासागरों को भी नुकसान पहुंचा रही है। समूची दुनिया में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। आशंका है कि मुंबई, कराची, ढाका सहित तमाम शहर कुछ दशकों में अतीत की बात बन सकते हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि दुनिया की लगभग 10 फीसदी आबादी उच्च ज्वार रेखा से पांच मीटर से भी कम ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों में रहती है। अगर हालात इसी तरीके से बिगडे़, तो इस सदी के अंत तक 10 करोड़ लोगों को जलावतनी के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। कुछ अन्य कारणों से देश छोड़ने के लिए मजबूर लोगों की बढ़ती संख्या ने समूची दुनिया में पहले ही संकट के हालात पैदा कर रखे हैं।

सवाल उठता है, इसका समाधान क्या है?

यह ठीक है कि अब तक किए गए उपाय सिर्फ आंशिक तौर पर सफल हो सके, लेकिन हिम्मत कायम रखने की वजहें भी मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के तमाम शहरों में गिरता जलस्तर थम गया है। कई स्थानों पर तो इसमें बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यदि इस मामले में आंशिक सफलता मिली है, तो क्यों न हम नए और महत्वाकांक्षी मापदंड स्थापित कर कड़ाई से उनका अनुपालन सुनिश्चित करें? कई देशों ने नदियों को बचाए और बनाए रखने के लिए उनको इंसानी शरीर का दर्जा दिया है। जो लोग उन नदियों को नुकसान पहुंचाते हैं, उनके खिलाफ वही कार्रवाई की जाती है, जो इंसानी देह को क्षति पहुंचाने पर होती है।

हमें हर उस मुद्दे पर ऐसी ही कड़ाई करने की जरूरत है, जो पर्यावरण के लिए क्षतिकारक साबित होते हैं। उम्मीद है, हमारे हुक्मरां और सिविल सोसायटी के लोग इस दिशा में मिलकर गंभीरता से आगे बढ़ेंगे।

@shekharkahin

@shashishekhar.journalist

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