फिर सुलगती पराली
खेतों में धान की बालियों की कटाई के बाद खडे़-बचे सूखे पौधों अर्थात पराली को जलाने का घातक क्रम फिर शुरू हो गया है। उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में इस मौसम में वायु प्रदूषण का घना प्रकोप रहता है और...
खेतों में धान की बालियों की कटाई के बाद खडे़-बचे सूखे पौधों अर्थात पराली को जलाने का घातक क्रम फिर शुरू हो गया है। उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में इस मौसम में वायु प्रदूषण का घना प्रकोप रहता है और एक समय ऐसा आ जाता है, जब घर से बाहर निकलने में भी परेशानी होने लगती है। अभी अक्तूबर का महीना शुरू भी नहीं हुआ है, पर खेतों को जल्दी से जल्दी गेहूं की फसल के लिए तैयार करने की होड़ में पंजाब-हरियाणा के किसान फिर खेतों में आग लगाने पर आमादा हैं। ऐसे में, प्रशंसनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने समय रहते संज्ञान लिया है और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के कामकाज को लेकर नाराजगी जताई है। न्यायालय ने कहा कि पराली जलाने से निपटने के लिए आयोग को एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। आयोग अपने आदेशों को जमीन पर उतारने में बहुत हद तक नाकाम रहा है। ऐसे में, न्यायालय की नाराजगी सराहनीय व स्वागत के योग्य है। संज्ञान में यह बात भी आई है कि पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा मात्रा में पराली दहन हो रहा है।
न्यायाधीश अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा है कि आयोग ने कुछ कदम उठाए है, पर और ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है। आप मूकदर्शक के रूप में काम कर रहे हैं। आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके प्रयास और निर्देश वास्तव में प्रदूषण को घटा सकें। आयोग की जितनी बैठकें होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रही हैं। आयोग ने प्रदूषण की रोकथाम के लिए 82 निर्देश जारी किए हैं, पर यह सुनिश्चित नहीं किया कि सभी निर्देशों की पालना हो। आयोग को अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने और उसके आदेशों का पालन न करने पर मुआवजा चुकाने का निर्देश देने का अधिकार है। अगर विभिन्न राज्यों में प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित अधिकारियों ने आदेशों-निर्देशों को नहीं माना है, तो उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने की तकलीफ आयोग ने नहीं उठाई है। ऐसे में, सर्वोच्च न्यायालय ने दो टूक पूछा है कि अगर आयोग अपने निर्देशों की पालना नहीं करा पा रहा है, तो उसके निर्देशों का क्या महत्व है? अच्छे नेता, अच्छी संस्था, अच्छे निर्देश-आदेश का लाभ अगर प्रदेश-देश को न मिले, तो यह अफसोस और दुख की बात है। पराली दहन पर अनेक सरकारों का रुख लोग देख चुके हैं और इस मोर्चे पर शासन-प्रशासन की नाकामी किसी से छिपी नहीं है। पराली जलाने से रोकने की दिशा में राज्य सरकारों के प्रयास कतई पर्याप्त नहीं हैं।
पराली जलाने का दुखद दौर सितंबर से लेकर जनवरी तक चलता है। किसान तमाम अपील और चिंताओं को नकारकर पैसे बचाने के प्रति ज्यादा आग्रही होते हैं, जबकि स्वयं उन्हें भी अपने स्वास्थ्य की चिंता होनी चाहिए। ऐसे किसानों को समय रहते सर्वोच्च न्यायालय की चिंता पर भी ध्यान देना चाहिए। पिछले साल भी न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि फसल अवशेष जलाने के क्रम को तत्काल रोका जाए, हम लोगों को मरने नहीं दे सकते। राज्यों को भी एक-दूसरे पर दोष मढ़कर पीछा छुड़ाने की राजनीति से बाज आना चाहिए। इस बार लोगों को वायु प्रदूषण से राहत की बहुत उम्मीद है, पर अभी से जो लक्षण दिखने लगे हैं, वे चिंता बढ़ा रहे हैं।
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