पड़ोस में जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस्लामाबाद में आतंकवाद को निशाने पर लेकर जो स्पष्ट संदेश दिया है, वह सुखद और स्वागतयोग्य है। पाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) परिषद के शासनाध्यक्षों की 23वीं बैठक...
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस्लामाबाद में आतंकवाद को निशाने पर लेकर जो स्पष्ट संदेश दिया है, वह सुखद और स्वागतयोग्य है। पाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) परिषद के शासनाध्यक्षों की 23वीं बैठक में विदेश मंत्री ने विकास के लिए वास्तविक साझेदारी, शांति और स्थिरता के महत्व पर पुरजोर प्रकाश डाला है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आतंकवाद का असर व्यापार, ऊर्जा संचार और संवाद-संपर्क पर पड़ता है। अगर हम यह देखें कि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत क्यों बंद है, तो इसकी मूल वजह आतंकवाद ही है। भारत के प्रति पाकिस्तान का दुश्मनी भरा व्यवहार किसी से छिपा नहीं है। जब वह सुधरने को तैयार नहीं है, तब दोनों देशों के संबंधों में सुधार भला कैसे होगा? बड़ी बात यह भी है कि भारत की शिकायत पर कान देने वाले महत्वपूर्ण देशों की कमी है। विशेष रूप से शंघाई सहयोग संगठन में शामिल चीन की अगर भूमिका देखी जाए, तो दक्षिण एशिया में तानाशाही और आतंकवाद, दोनों के प्रति वह कतई गंभीर या ईमानदार नहीं है। शंघाई सहयोग संगठन में भी वह भारत की अनदेखी करते हुए केवल अपना फायदा देखना चाहता है।
जब दुनिया के तमाम देश अपना हित देख रहे हैं, तब भारत को भी अपना हित देखना ही चाहिए। भारत विश्व स्तर पर अनेक बार यह बात दोहरा चुका है कि बंदूक और व्यवसाय, दोनों साथ नहीं चल सकते हैं। विभिन्न धु्रवों में बंटी दुनिया में भारत की आवाज को पूरी तरह से सुना नहीं जा रहा है, तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार की भारतीय कोशिशें स्वाभाविक हैं। इस्लामाबाद में भी विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के पक्ष में पैरोकारी की है। सुधार की यह बात वास्तव में चीन को भी संबोधित है। ध्यान रहे, लगभग नौ वर्षों में यह पहली बार है, जब भारत के विदेश मंत्री पाकिस्तान की यात्रा पर गए हैं, जहां वह पाकिस्तानी नेताओं के साथ औपचारिक अभिवादन तो साझा कर रहे हैं, पर अलग से उनकी मुलाकात मुफीद नहीं है। पाकिस्तान की ओर से यह कोशिश बार-बार हुई है कि भारतीय नेता के साथ अलग से बातचीत हो जाए, व्यापार पर न सही, मौसम पर हो जाए, पर भारत इसके लिए अभी तैयार नहीं है। अनेक बार धोखा खा चुका भारत चाहता है कि शंघाई सहयोग संगठन की 23वीं बैठक के दौरान केवल व्यापार और आर्थिक एजेंडे पर ध्यान केंद्रित रहे। ऐसे में, पाकिस्तान से अलग से बात करने का फिलहाल कोई तुक भारतीय विदेश मंत्रालय को नजर नहीं आता है। पाकिस्तान बात करने को लालायित तो है, पर उसके व्यवहार में बदलाव के संकेत नदारद हैं।
खैर, शंघाई सहयोग संगठन एक स्थायी अंतरसरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 15 जून, 2001 को कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा शंघाई में की गई थी। समय के साथ इस संगठन का विस्तार हुआ, पर इस संगठन से आज के समय में पाकिस्तान को ज्यादा और भारत को कम फायदा है। चीन और पाकिस्तान मिलकर जो कॉरिडोर बना रहे हैं, जिसे सीपैक कहा जा रहा है, उसके बारे में भी भारत की चिंता जायज है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अब बोल रहे हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री को बैठक में आना चाहिए था, पर उन्हें यह सवाल अपने आप से पूछना चाहिए कि आतंकवाद संबंधी मनमोहन सिंह की चिंता या नरेंद्र मोदी की चिंता पर उन्होंने कितना और कैसे गौर किया है? भारत की चिंता दूर हो, तो ही भारत संवाद के लिए तैयार हो, यही न्यायोचित है।
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