अभी समर शेष है
विजयादशमी का महापर्व जहां हमारी शास्त्र परंपरा का अटूट हिस्सा है, तो वहीं यह प्रेरणा का अनुपम माध्यम भी है। यह असत्य पर सत्य की जीत, हिंसा पर अहिंसा की विजय, बुराई पर अच्छाई के वर्चस्व का जयघोष...
विजयादशमी का महापर्व जहां हमारी शास्त्र परंपरा का अटूट हिस्सा है, तो वहीं यह प्रेरणा का अनुपम माध्यम भी है। यह असत्य पर सत्य की जीत, हिंसा पर अहिंसा की विजय, बुराई पर अच्छाई के वर्चस्व का जयघोष है। अगर शास्त्र परंपरा से अलग हटकर भी हम सोचें, तो भी विजयादशमी या दशहरा का जो संदेश है, उसकी व्यावहारिकता हमें उल्लास से भर देती है। अक्सर यह चर्चा होती है कि कुछ संख्या में लोग ऐसे शास्त्र-सम्मत त्योहारों से दूर होते जा रहे हैं, पर उन्हें त्योहारों के मौलिक संदेश की उपयोगिता का एहसास होना चाहिए। दुनिया में अच्छे उपदेश या सकारात्मक संदेशों की जरूरत कभी भी पूरी नहीं हो पाएगी। आज दुनिया को कदम-कदम पर सहारे की जरूरत है। चुनौतियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं, साल 2020, 21, 22 तो महामारी की भेंट चढ़ गए थे। उसके बाद दुनिया कुछ ही संभली थी कि उसे बर्बर युद्धों की ओर खींच लिया गया।
यह साल 2024 है और हमने महामारी के महासंकट से सीखने-सुधरने की जो ठानी थी, वह इरादा कुछ ही दिनों में कमजोर पड़ गया। हर साल हजारों लोग युद्ध और सैकड़ों लोग आतंकी हिंसा या गृहयुद्धों की भेंट चढ़ रहे हैं। मतलब, रावण का प्रकोप जगह-जगह दिख रहा है, पर रामभाव का अभाव साफ झलक रहा है। आज आप दुनिया के किस कोने में रामभाव देखना चाहते हैं? रूस या यूक्रेन के व्यवहार में कितना रामभाव है? इजरायल और हमास समर्थकों के व्यवहार में क्या रावण भाव की अधिकता नहीं हो गई है? प्रतिशोध की मर्यादा की किसे चिंता है? रामजी ने भी प्रतिशोध लिया था, पर प्रतिशोध में भी अंत समय तक उनकी कोशिश थी कि हथियार उठाने की जरूरत न पड़े। राम की ओर से रावण को समझाने के लिए हनुमान भी गए और बाद में अंगद भी गए, जब रावण ने तमाम शांति प्रस्ताव ठुकरा दिए, तब न्याय, अच्छाई, सच्चाई के पक्ष में तपस्वी राम को युद्ध के मैदान में आना पड़ा। ऐसा नहीं है कि राम कथा की पहुंच इजरायल या ईरान तक नहीं है, पर इन देशों ने अमन-चैन के मायने ही बदल दिए हैं। आए दिन वे एक-दूसरे को मिटा देने का ऐलान कर रहे हैं। ऐसे में, राम की याद आना स्वाभाविक है। लंका जीतने के बाद उन्होंने रावण के भाई को ही राजा बना दिया था और देवी सीता को साथ लेकर खाली हाथ अयोध्या लौट गए। आज दुनिया के अनेक देश भूमि कब्जाने के बाद लौटने को तैयार नहीं हैं, तभी तो दुनिया में युद्ध का रोग बढ़ता जा रहा है।
आज दुनिया के सामने जो चुनौतियां हैं, उन्हें गिनते चले जाइए, सिर्फ निराशा होती है। सकारात्मक आविष्कार के लिए धन कम पड़ रहा है और नकारात्मक कामों में खर्च बढ़ता जा रहा है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि रावण के पतन और राम के उत्थान की जरूरत को समझने वाले दुनिया में कम नहीं हुए हैं। नोबेल सम्मान जीत रहे उन वैज्ञानिकों को बधाई, जो मुश्किल समय में भी मानवता की राह आसान करने में जुटे हुए हैं। आज दुनिया में अच्छे आविष्कारों की जरूरत है, समाज में दुख और बुरे कृत्यों को नष्ट करने की जरूरत है। दुनिया में मिलकर चलने की जरूरत है। डेंगू से मंकी पॉक्स तक, घर-घर बढ़ते हृदय रोग से खतरनाक होते कैंसर तक, इलाज को आसान और किफायती बनाने का महायुद्ध शेष है। अभी गरीबी, अन्याय, आतंकवाद के खिलाफ भी महायुद्ध शेष है। ध्यान रहे, सच्ची सफलता की खोज में रावण नहीं, राम ही हमारे काम आएंगे।
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