Hindi Newsओपिनियन संपादकीयhindustan editorial column 11 oct 2024

बेमिसाल उद्यमी

देश के एक उज्ज्वलतम उद्यमी रतन नवल टाटा की विदाई से जो शून्य बना है, उसकी पूर्ति कभी नहीं हो पाएगी। उनके चले जाने से जो शोक की लहर उठी है, वह दुर्लभ है। पूंजीवाद के गलाकाट दौर में एक रतन टाटा...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Thu, 10 Oct 2024 10:40 PM
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बेमिसाल उद्यमी

देश के एक उज्ज्वलतम उद्यमी रतन नवल टाटा की विदाई से जो शून्य बना है, उसकी पूर्ति कभी नहीं हो पाएगी। उनके चले जाने से जो शोक की लहर उठी है, वह दुर्लभ है। पूंजीवाद के गलाकाट दौर में एक रतन टाटा होना क्या मायने रखता है, यह अपने आप में आर्थिक और समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय है। ऐसे उद्यमी किस माटी से बनते हैं? उन्हें किन जीवन मूल्यों की जरूरत होती है? ऐसे उद्यमियों को कौन सा शिक्षा संस्थान सीखा-पढ़ाकर तैयार करता है? नमक से लेकर बस तक आप टाटा के उत्पाद गिनते चले जाएंगे और कहीं भी आपको निराशा का एहसास नहीं होगा। जिस दौर में देश के ज्यादातर युवा उद्यमी अरबपति बनते ही विदेश जा बसने को लालायित हैं, वहीं यह याद रखना चाहिए कि रतन टाटा विदेश से पढ़कर लौटे, तो अपने देश के होकर रह गए। इसी देश से कमाया, तो इसी देश को लौटाया। आज के युवाओं को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए, जो रतन टाटा कह गए हैं, ‘अगर आप तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलिए और अगर बहुत आगे जाना चाहते हैं, तो साथ चलिए।’ 
रतन टाटा की व्यावसायिक भावभूमि को समझना होगा। एडम स्मिथ ने दुनिया को पूंजीवाद समझाया, तो कार्ल मार्क्स व फ्रेडरिक एंजेल्स ने साम्यवाद का पाठ पढ़ाया, पर गांधीजी ने दोनों में से कुछ-कुछ लेकर अपना ‘हिंद स्वराज’ गढ़ा। इसी ‘हिंद स्वराज’ के ईदगिर्द भारत में अनेक आला कंपनियों ने आजाद भारत को अभावों से निकालकर आगे ले जाने का जोश-जज्बा-जुनून दिखाया। यह कैसे भुला दिया जाए कि जब गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में बिगुल बजाया, तब भारत से मदद करने वालों में टाटा परिवार सबसे आगे था। यह समृद्ध इतिहास है कि स्वतंत्रता सेनानियों की खूब मदद करने वाले जमशेदजी रतनजी दादाभाई टाटा ने अपनी छत्रछाया में ही अपने योग्यतम भतीजे रतन नवल टाटा को सिखाया और आगे बढ़ाया था। रतन टाटा ने अपने उद्यम के किसी भी मोड़ पर अपनी कंपनी या देश को निराश नहीं किया। ऐसा अक्सर देखा गया है कि कोई उद्यमी कंपनी को ठीक से संभालता है, तो देश उसके लिए प्राथमिक नहीं रह जाता, पर रतन टाटा जो संतुलन साधकर चले हैं, वह हमेशा मिसाल रहेगा। वह जानते थे कि यह देश संभावनाओं से भरपूर है और कहते थे, ‘मैंने अक्सर महसूस किया है, भारतीय बाघ को अभी आजाद नहीं किया गया है।’ कैसे भुला दिया जाए कि जब कोरोना की डेल्टा लहर देश में रोज सैकड़ों लोगों की बलि ले रही थी; जब अनेक उद्यमी सौ का सामान हजार में बेच रहे थे, तब रतन टाटा उत्पादन रोककर देश को ऑक्सीजन देने में जुटे थे? 
एक उद्योग समूह और एक बेहद अमीर परिवार को कैसे समर्पण भाव से साथ लेकर आगे बढ़ा जाता है, यह रतन टाटा बखूबी सिखा गए हैं। विगत दशकों में हमने अनेक योग्य उद्यमियों को अपनी कंपनी पर कब्जा जमाते, बादशाहत दर्शाते देखा है, पर ध्यान रहे, व्यक्तिगत रूप से रतन टाटा के पास अपनी कंपनी का एक प्रतिशत शेयर भी नहीं था। उनके नेतृत्व में टाटा समूह नित नई बुलंदियों पर चढ़ता चला गया। विशाल टाटा परिवार उत्तराधिकारी खोज लेगा, पर रतन टाटा की विरलता सदैव प्रतिमान रहेगी। वह कहते थे, ‘जिस दिन मैं उड़ने में सक्षम न रहूंगा, वह दिन मेरे लिए सबसे दुखद होगा।’ दुर्भाग्य, वह दिन आ गया, पर उनको याद करने की सार्थकता इसी में है है कि उनकी व्यापक विरासत को विस्तार दिया जाए।  

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