Hindi Newsओपिनियन संपादकीयhindustan editorial column 10 oct 2024

निशाने पर कांग्रेस

विपक्षी दलों का इंडिया ब्लॉक जहां हरियाणा में नदारद था, वहीं जम्मू-कश्मीर में भी आधे-अधूरे रूप में मैदान में था। कश्मीर में पीडीपी को साथ लिए बिना ही इंडिया ब्लॉक की नैया पार लग गई, पर हरियाणा में...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Wed, 9 Oct 2024 09:59 PM
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निशाने पर कांग्रेस

विपक्षी दलों का इंडिया ब्लॉक जहां हरियाणा में नदारद था, वहीं जम्मू-कश्मीर में भी आधे-अधूरे रूप में मैदान में था। कश्मीर में पीडीपी को साथ लिए बिना ही इंडिया ब्लॉक की नैया पार लग गई, पर हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस वाकई अपने कथित सहयोगियों के निशाने पर आ गई है। शायद ही कोई ऐसा सहयोगी होगा, जो कांग्रेस को इस समय नसीहत नहीं दे रहा। कांग्रेस हरियाणा में एक प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से पिछड़ी है, पर यह उसकी हार बड़ी है। शिव सेना (उद्धव ठाकरे) ने हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने के उसके फैसले पर सवाल उठाया, तो तृणमूल कांग्रेस ने उस पर अहंकारी होने का आरोप जड़ दिया है। कांग्रेस के साथ लड़कर सफल होने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी उसे हार की समीक्षा करने की सलाह दी है। आम आदमी पार्टी ने नसीहत से आगे बढ़ते हुए ऐलान तक कर दिया है कि दिल्ली में वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में जो उप-चुनाव होने हैं, उनमें समाजवादी पार्टी ने भी कांग्रेस को साथ लिए बिना अपने छह उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। 
इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस के खिलाफ खुलकर चर्चा हो रही है। यह कहा जा रहा है कि जहां कांग्रेस खुद को मजबूत मानती है, वहां वह अपने सहयोगियों को भाव नहीं देती है, जबकि वह जहां खुद को कमजोर मानती है, वहां सहयोगियों से पूरी मदद लेना चाहती है। इस शिकायत में कितनी सच्चाई है, इसकी समीक्षा स्वयं कांग्रेस पार्टी को करनी चाहिए? गठबंधन के मामले में कांग्रेस पहले भी अनुदार रही है और उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने सहयोगियों के साथ हर चुनाव में तालमेल करके चलेगी। अनेक मौकों पर इंडिया ब्लॉक का जो चरित्र विगत एक वर्ष में देखने को मिला है, उससे विपक्षी एकता की दलदली जमीन का साफ-साफ पता चलता है। विश्लेषक यह मानते हैं कि इंडिया ब्लॉक दिखावे के लिए एकजुट है, इसलिए उसे चुनावों में पर्याप्त फायदा नहीं हो रहा है। अगर यह ब्लॉक सही मायने में मिलकर लडे़, तो उसे भाजपा को घेरने में आसानी हो सकती है। हालांकि, क्षेत्रीय सहयोगियों को भी अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए कि उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने के लिए कितने प्रयास किए हैं? ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को अपने-अपने क्षेत्रों में दोयम दर्जे की पार्टी मानकर चलती हैं। शायद इन क्षेत्रीय दलों को यह अंदाजा है कि वे दरअसल, कांग्रेस की छोड़ी हुई जमीन पर ही खड़ी हैं और अगर यह जमीन कांग्रेस के पास वापस गई, तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगी। सबको अपनी-अपनी चिंता है और ऐसे में, इंडिया ब्लॉक की चिंता करने वालों का टोटा है।
हालांकि, बुनियादी बात यही है कि विपक्ष भाजपा को तभी चुनौती दे सकता है, जब वह एकजुट दिखे भी और मन से एकजुट हो भी। इंडिया ब्लॉक के एकजुट दिखने मात्र से अब कोई भी प्रभावित नहीं होगा। अगर हरियाणा चुनाव की मिसाल लें, तो कांग्रेस महज 0.85 प्रतिशत मतों के अंतर से पराजित हुई है। यहां अगर आम आदमी पार्टी को मिले 1.79 प्रतिशत वोट इंडिया ब्लॉक को मिले होते, तो जाहिर है, भाजपा तीसरी बार शायद ताज बचा न पाती और संभव है, आम आदमी पार्टी की झोली में भी हरियाणा में सीटें दर्ज हो जातीं। साथ न लड़ने का नुकसान कांग्रेस को हुआ है, तो क्षेत्रीय दलों को भी अपने नुकसान का जायजा लेना चाहिए। हां, यह जरूर है कि कांग्रेस को बड़प्पन का परिचय देते हुए अपना विचार-व्यवहार तय करना चाहिए।  

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