मिथुन को फाल्के
मिथुन चक्रवर्ती का भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के से सम्मानित होना इस देश में फिल्म कला ही नहीं, बल्कि कला के आम सर्वहारा पारखियों का भी सम्मान है। भारतीय सिनेमा के एक कद्दावर...
मिथुन चक्रवर्ती का भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के से सम्मानित होना इस देश में फिल्म कला ही नहीं, बल्कि कला के आम सर्वहारा पारखियों का भी सम्मान है। भारतीय सिनेमा के एक कद्दावर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को प्यार से मिथुन दा या दादा कहकर संबोधित किया जाता है। अक्सर यह कहा जाता है कि मिथुन सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल में अगली पंक्तियों में बैठने वाले दर्शकों के सुपरस्टार हैं, पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें एक गंभीर सक्षम अभिनेता के रूप में भी देखा जाता है। साल 1978 में ख्यात निर्देशक मृणाल सेन के निर्देशन में अपनी पहली ही फिल्म मृगया के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय सम्मान हासिल किया था। सिने दुनिया में ऐसे गिने-चुने अभिनेता हुए हैं, जिन्होंने अपनी पहली ही कृति या प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय सम्मान जीता है और आगे चलकर व्यावसायिक रूप से बहुत कामयाब भी हुए हैं। दादा साहेब फाल्के सम्मान पाने वाले वह 54वें कलाकार हैं और उनको मिला यह सम्मान देश के हर वर्ग के लिए चर्चा योग्य समाचार है। वह अमीरों के भी हीरो हैं और गरीबों के भी। उनकी भाव-भंगिमा और जीवन शैली को देश में असंख्य लोगों ने अपनाया है।
पहले विचार से नक्सली रहे मिथुन को सर्वश्रेष्ठ नर्तक के रूप में भी जाना जाता है और बंगाल की भूमि की ओर से वह भारतीय सिनेमा को एक ऐसे योगदान की तरह हैं, जिनको हिंदी सिनेमा में भुलाना मुश्किल है। बांग्ला, ओडिया, भोजपुरी सहित अनेक भाषाओं में फिल्में करने वाले मिथुन को बड़ी व्यावसायिक कामयाबी साल 1982 में डिस्को डांसर से मिली थी और उसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। घर एक मंदिर, प्यार झुकता नहीं, गुलामी उनकी बहुचर्चित फिल्में हैं। नृत्य, गीत में बेहतरीन अभिनय के साथ, मारधाड़ के दृश्यों में स्वाभाविकता, भावपूर्ण दृश्यों में गहराई और चरित्रों में डूब जाने की कला उन्हें सबसे अलग खड़ा कर देती है। वह आम ईमानदार भारतीयों के सशक्त प्रतिनिधि बन जाते हैं। मिसाल के लिए, फिल्म अग्निपथ में उनकी छोटी भूमिका को देखा जा सकता है। मिथुन के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह जहां भी खड़े हो जाते हैं, अपने लिए मुकम्मल जगह बना लेते हैं और सबका ध्यान खींच लेते हैं। पैसों के सदुपयोग के मोर्चे पर भी वह एक आदर्श कारोबारी हैं।
ताहादेर कथा जैसी शानदार बांग्ला फिल्म हो या गुरु जैसी हिंदी फिल्म, एक मैथड एक्टर के रूप में वह खूब चमकते हैं, पर उनकी दलाल, चिता, जल्लाद, रावण राज शैली की चटक-भड़कीली फिल्में भी खूब हैं, जो छोटे कस्बों, एक स्क्रीन वाले सिनेमाघरों और मजदूरों-गरीबों के बीच खूब व्यापार करती हैं। मिथुन समाज के उस वर्ग के नायक रहे हैं, जिसे अपने स्तर का शुद्ध मनोरंजन चाहिए, बोझिल संदेश-उपदेश नहीं। अति-नाटकीयता, अति-अभिनय इस वर्ग को कुछ देर के लिए ही सही उनकी अपनी असली परेशानियों से अलग दुनिया में ले आता है। मिथुन चक्रवर्ती की यह सिनेमाई छवि उनके वास्तविक व्यवहार में भी साफ झलकती है, वह देश के सिने संसार के मजदूरों, जूनियर कलाकारों, जरूरतमंदों के एकाधिक संगठनों-संस्थाओं के नेता-अभिभावक रहे हैं। मिथुन आम लोगों को यकीन दिलाने और सपने दिखाने वाले अभिनेता हैं कि अगर आसमां तक मेरे हाथ जाते, तो कदमों में तेरे सितारे बिछाते।
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