नतीजों के निहितार्थ
जम्मू-कश्मीर ने कम और हरियाणा के नतीजों ने विशेषज्ञों को ज्यादा चौंकाया है। तमाम एग्जिट पोल के नतीजे खासकर हरियाणा में बुरी तरह से नाकाम हुए हैं और भारतीय जनता पार्टी ने यहां लगातार तीसरी बार जीत...
जम्मू-कश्मीर ने कम और हरियाणा के नतीजों ने विशेषज्ञों को ज्यादा चौंकाया है। तमाम एग्जिट पोल के नतीजे खासकर हरियाणा में बुरी तरह से नाकाम हुए हैं और भारतीय जनता पार्टी ने यहां लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया है। भाजपा की यह जीत उसके मनोबल को बहुत बढ़ाएगी। वहां साल 2014 से लगातार भाजपा ही सत्ता में है, पिछली बार उसे बहुमत से कम सीटें मिली थीं, सरकार बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ा था, पर इस बार उसे अकेले दम पर बहुमत हासिल होना बहुत मायने रखता है। अभी चार महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आए थे, उसमें भाजपा और कांग्रेस के खाते में पांच-पांच सीटेें गई थीं, जिससे यह अंदाजा लगाया गया था कि हरियाणा में लोग बदलाव चाहते हैं। एग्जिट पोल ने भी बदलाव का ही अनुमान लगाया था, पर हरियाणा में भाजपा के नेताओं को पूरा श्रेय देना होगा। पार्टी में असंतोष और शिकायतों के बावजूद उन्होंने अपनी सरकार बचा ली। दूसरी ओर, कांग्रेस को अति-आत्मविश्वास, नेताओं का असंतोष और शिकायतों का अंबार बहुत भारी पड़ा है।
जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद हुए चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की है। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस अकेले दम पर ही बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाएगी। पीडीपी का प्रयोग नाकाम रहा है। अच्छी बात यह है कि यहां हवा अलगाववादियों के भी मुताबिक नहीं है। घाटी या कश्मीर के लोगों ने अब्दुल्ला परिवार पर पूरा विश्वास जताया है और उमर अब्दुल्ला जिस तरह से जमीनी आधार पर लोगों से वोट मांग रहे थे, उनका यह तरीका काम कर गया है। करीब पांच महीने पहले ही आम चुनाव में बुरी तरह हारने वाले उमर को विधानसभा चुनाव में अपनी दोनों ही सीटों पर मिली कामयाबी उनके खोए हुए आत्मविश्वास को लौटा देगी। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि कश्मीर में जहां लोग नेशनल कॉन्फ्रेंस के पक्ष में हैं, वहीं जम्मू में लोग भाजपा के साथ गए हैं। जम्मू में भाजपा की सफलता और मजबूती का असर यह होगा कि श्रीनगर में सत्ता का संतुलन बना रहेगा। लोगों ने संतुलन बना दिया है और उसी संतुलन के अनुरूप नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस को चलाना पड़ेगा। चुनाव का एक संदेश यह भी है कि अनुच्छेद-370 से घाटी के लोगों का अभी पूरा मोहभंग नहीं हुआ है। मगर ताजा चुनाव व उसके नतीजे एक नई शुरुआत की तरह हैं और पीछे मुड़कर न देखने में ही जम्मू-कश्मीर की भलाई है।
समग्रता में अगर देखें, तो हरियाणा और जम्मू-कश्मीर, दोनों ही जगह भाजपा की मजबूत मौजूदगी बहुत मायने रखती है। अगर जम्मू में भाजपा की सीटें कम हो जातीं और हरियाणा भी अगर हाथ से निकल जाता, तो आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा की चिंताएं बहुत बढ़ जातीं। सबसे बड़ा फायदा भाजपा को यह होगा कि महाराष्ट्र ही नहीं, झारखंड में उसका मनोबल बढ़ेगा। राजनीति में हर चुनावी नतीजे के पीछे गंभीर संदेश छिपे होते हैं। जहां कांग्रेस पार्टी को अपनी रणनीति का निर्माण नए सिरे से करना होगा, वहीं भाजपा अगर अपने आंतरिक असंतोष को काबू में रख ले, तो वह अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। किसी पार्टी को सत्ता में लगातार रहने का जब मौका मिलता है, तो उसके लिए सबसे जरूरी यही होता है कि वह अपने जमीनी आधार को विकास कार्यों व कुशल व्यवहार से बल प्रदान करती रहे। लोग भी किसी पार्टी या सरकार से यही उम्मीद करते हैं।
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