Hindi Newsओपिनियन संपादकीयhindustan editorial column 08 oct 2024

मित्र मालदीव 

भारत और मालदीव के बीच सुधरते रिश्ते सुखद और स्वागतयोग्य हैं। बीते साल नवंबर में 46 वर्षीय मोहम्मद मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति बने थे और चुनाव प्रचार के दौरान ही उनका भारत विरोधी एजेंडा सबके सामने...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Mon, 7 Oct 2024 09:52 PM
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मित्र मालदीव 

भारत और मालदीव के बीच सुधरते रिश्ते सुखद और स्वागतयोग्य हैं। बीते साल नवंबर में 46 वर्षीय मोहम्मद मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति बने थे और चुनाव प्रचार के दौरान ही उनका भारत विरोधी एजेंडा सबके सामने आ गया था। उनकी सरकार के एकाधिक मंत्रियों ने भी सत्ता में आते ही भारत के प्रति विरोध को छिपाया नहीं और खुद मोहम्मद मुइज्जू भी चीन की गोद में इतराते नजर आए। उनके हठ की वजह से भारतीय सैनिकों को मालदीव से लौटना पड़ा, हालांकि, अभी भी भारत के वायुयान मालदीव में हैं, हमारे नागरिक पायलट और आपदा प्रबंधक भी वहां हैं। आज भी मालदीव के टापुओं पर जब किसी को आपात सहायता की जरूरत पड़ती है, तो भारतीय राहत दल ही बचाव के लिए सबसे पहले पहुंचता है। कुछ ही दिनों पहले ऐसा लग रहा था कि मालदीव ने भारत से मिली सेवाओं को भुला दिया है। ऐसे में, मुइज्जू की भारत यात्रा ने अनेक शंकाओं का न केवल समाधान किया है, बल्कि परस्पर रिश्तों में फिर से गर्मजोशी लाने का इरादा जाहिर कर दिया है। आश्चर्य नहीं, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के प्रयास के तहत भारत और मालदीव ने सोमवार को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 
संबंधों को बुनियादी रूप से मजबूत करने के जो ताजा प्रयास हुए हैं, उनसे बड़ी आशा जगती है। मालदीव में रूपे कार्ड भी लॉन्च हो गया है। भारत ने परंपरा के अनुरूप ही मदद के वही हाथ आगे बढ़ाए हैं, जिन्हें मालदीव अपनी नई सरकार के जोश में झटक दे रहा था। ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना में तेजी लाई जाएगी। थिलाफुशी में एक नए वाणिज्यिक बंदरगाह का विकास होगा। मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा की शुरुआत होगी। दरअसल, मंदी से जूझ रहे मालदीव के पास आसान विकल्प यही है कि वह भारत से मदद ले। यह बात छिपी नहीं है कि भारत उदारता से मदद करता है, जबकि अन्य देश मदद की पूरी कीमत वसूलते हैं। यह बात भी गौर करने की है कि ‘इंडिया आउट के नारे के साथ मोहम्मद मुइज्जू ने चुनाव जीता था और उन्हें उम्मीद थी कि चीन आर्थिक मदद के लिए अपनी झोली खोल देगा, पर महीनों इंतजार के बाद भी जब चीन से पर्याप्त मदद नहीं मिली, तो भारत की याद आई। यहां भारत की तारीफ होनी चाहिए कि उसने कभी भी जैसे को तैसा की भाषा में जवाब नहीं दिया। आज भी नरेंद्र मोदी सहज भाव से मालदीव को घनिष्ठ मित्र बता रहे हैं, तो यह किसी सबक से कम नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी ने उचित याद दिलाया है कि भारत ने हमेशा एक पड़ोसी की जिम्मेदारियां निभाई हैं, इसमें कोई शक नहीं है। भारत को अपने सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने ही चाहिए। दक्षिण एशिया में भारत विकास की सीढ़ियां तेजी से चढ़ रहा है। ऐसे में, ईष्र्या की सदैव आशंका रहेगी, पर यह भाव कहीं नफरत में न तब्दील हो जाए, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत पर ही रहेगी। यहां हमें कोई तराजू रखने की जरूरत नहीं है, लेकिन पड़ोसी देशों को अवश्य तराजू रखना चाहिए और वह समग्रता में यही पाएंगे कि आम तौर पर भारत का पलड़ा भारी रहेगा। दुनिया में चंद देश हैं, जिनकी विदेश नीति में जियो और जीने दो का भाव है। आज पूरे दक्षिण एशिया में इसी भाव की जरूरत है और अगर यह जरूरत पूरी हुई, तो दुनिया का यह इलाका सबके लिए मिसाल साबित हो सकता है। 

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