लौटते मानसून में
देश से मानसून विदा हो रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से वह तीन दिन पहले ही प्रस्थान कर चुका है और धीरे-धीरे बिहार, बंगाल होते हुए सप्ताह भर में पूरे उत्तर भारत से विदा हो जाएगा। कुल मिलाकर...
देश से मानसून विदा हो रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से वह तीन दिन पहले ही प्रस्थान कर चुका है और धीरे-धीरे बिहार, बंगाल होते हुए सप्ताह भर में पूरे उत्तर भारत से विदा हो जाएगा। कुल मिलाकर, इस मानसून में अब तक सामान्य से आठ प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। अगर राज्यवार देखें, तो पंजाब, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल और पूर्वोत्तर के राज्यों में सितंबर के महीने में कम बारिश दर्ज हुई है, बाकी सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में अच्छी बारिश दर्ज हुई है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल में भी अच्छी बारिश हुई है। बिहार में भी लौटते-लौटते मानसून खूब बरसा है और सामान्य से कुछ ज्यादा बारिश दर्ज हुई है। वैसे, राज्यों में भी अगर हम जिलावार देखें, तो उत्तर भारत में करीब बीस जिले ऐसे हैं, जहां सामान्य से कम बारिश दर्ज हुई है। किसी जिले में अच्छी बारिश हुई है, तो उसके अगल-बगल के जिलों में बहुत सामान्य बारिश हुई है। खास बात यह है कि इस बार मरुस्थल वाले राज्य राजस्थान में खूब बारिश हुई है। बारिश के पानी को अगर सहेजकर रखा जाए, तो दो वर्ष लायक पानी बरस गया है।
कुल मिलाकर, मौसम विज्ञान विभाग के अनुमानों के अनुरूप ही वर्षा हुई है। वैसे, हर बार की तरह इस बार भी मानसून का एक दुखद पहलू है कि देश भर में करीब 1,500 लोगों की मौत दर्ज हुई है। सर्वाधिक लोग बिजली गिरने और बाढ़ से मरे हैं। सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश, उसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में लोगों ने जान देकर बारिश की कीमत चुकाई है। यह अपने देश का एक दुखद पहलू है। क्या हम बारिश के मौसम में जान-माल के नुकसान से बच सकते हैं? क्या बारिश या बाढ़ से जूझने के लिए हम पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हो पा रहे हैं? यह भी एक संकेत है कि हम बारिश को गंभीरता से नहीं लेते हैं। बारिश को अगर गंभीरता से लेते, तो जल संरक्षण के ज्यादा काम दिखाई पड़ते। गांव हों या शहर, जलाशयों की नाकाफी सफाई को ही अगर हम देख लें, तो अंदाजा लग जाएगा कि जलभराव की समस्या साल-दर-साल कैसे बढ़ती जा रही है। अमीर शहरों में भी जलभराव मौत की वजह बन रहा है। आपदा प्रबंधन के स्तर पर भी बहुत काम बाकी है। आपदा आने के बाद जागने की प्रवृत्ति हमें छोड़ देनी चाहिए। आपदा नियंत्रण के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित करना जरूरी हो गया है।
बाढ़ की अगर चर्चा करें, तो खासतौर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में भयावहता सामने आई है। बिहार में नदियों में पानी के बढ़ने की एक वजह नेपाल में हुई भारी बारिश है। नेपाल में 235 से ज्यादा लोगों की मौत बाढ़, भूस्खलन या बारिश की वजह से हुई है। भारत से गए अनेक लोग नेपाल में फंसे हुए हैं। बिहार में करीब 18 जिलों में बाढ़ का असर है। जगह-जगह लोग फंसे हुए हैं। ऊंची जगहों पर शरण लिए हुए हैं। सबको पानी के उतरने का इंतजार है। अनुमान के अनुसार, 1 अक्तूबर से जल स्तर में गिरावट का क्रम जारी है, पर अभी पानी को खतरे के निशान से नीचे आने में सप्ताह भर का समय लग सकता है। अगर लौटते मानसून की बारिश तेज होती है, तो फिर बिहार ही नहीं, नेपाल को भी बाढ़ से निजात के लिए इंतजार करना होगा। वैसे साल के ज्यादातर समय पेयजल संकट का सामना करने वाले इन इलाकों में जल प्रबंधन में युद्ध स्तर पर सुधार जरूरी है, ताकि बाढ़ कहीं भी जानलेवा न बने।
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