शिलांग में हिंसा
जब हम बाकी भारत में राजनीति की बेवजह बहसों में उलझे हुए हैं, तब मेघालय की राजधानी शिलांग में पांच दिन पहले खिंची तनाव की लकीरें अब गहरी होती जा रही हैं। बेशक यह तनाव स्थानीय प्रकृति का है, लेकिन इसकी...
जब हम बाकी भारत में राजनीति की बेवजह बहसों में उलझे हुए हैं, तब मेघालय की राजधानी शिलांग में पांच दिन पहले खिंची तनाव की लकीरें अब गहरी होती जा रही हैं। बेशक यह तनाव स्थानीय प्रकृति का है, लेकिन इसकी खबरों का बाकी बेवजह की हलचलों के पीछे छिप जाना खतरनाक है। इससे भी खतरनाक यह है कि पांच दिन बाद भी तनाव न सिर्फ बरकरार है, बल्कि हिंसा और पथराव जैसी कुछ घटनाएं हर रोज ही हो रही हैं। परेशान करने वाली बात यह है कि तनाव उस प्रदेश और पूर्वोत्तर के उस शहर में दिख रहा है, जो अभी तक अपने शांतिपूर्ण माहौल की वजह से पूरे देश के लिए एक उदाहरण था। शिलांग के इस झगड़े में अपने आप में कुछ भी नया नहीं है। ऐसा आमतौर पर देश के ज्यादातर सांप्रदायिक या जातिगत रूप से संवेदनशील इलाकों में होता है। दो अलग-थलग समुदाय अगर एक शहर या कस्बे की दो अलग बस्तियों के अपने आप में सिमटे इलाकों में रहते हैं, तो उनमें एक-दूसरे के प्रति तरह-तरह के पूर्वाग्रह जगह बना लेते हैं। यही पूर्वाग्रह कभी-कभी तनाव या हिंसा का कारण भी बन जाते हैं। लेकिन शिलांग में जो नई चीज हो रही है, वह है तनाव को बढ़ाने और भड़काने में सोशल मीडिया की भूमिका। ताजा मामला बस की पार्किंग की एक छोटी सी घटना से शुरू हुआ था, जिसके कारण तनाव बढ़ा, तो स्थानीय पुलिस ने संबंधित पक्षों में समझौता करा दिया। लेकिन बताते हैं कि इसके बाद वाट्सएप पर तरह-तरह की अफवाहें शुरू हो गईं, जिसने तनाव के ताप में घी का काम किया और हिंसा भड़क उठी, जो अभी तक जारी है।
यह तनाव शिलांग के बहुसंख्यक खासी आदिवासी समुदाय और वहां रह रहे पंजाबी यानी दलित सिख समुदाय के बीच उपजा है। घासी समुदाय को आमतौर पर शांतिपूर्ण माना जाता है। खासतौर पर शिलांग को देश के ऐसे शहर के रूप में गिना जाता है, जहां महिलाएं सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। यहां रहने वाले दलित सिख समुदाय की आबादी बहुत थोड़ी है। इन्हें 160 से भी ज्यादा साल पहले सफाई के काम के लिए अंग्रेजों ने वहां बसाया था। कई पीढ़ियों के बाद भले ही इस समुदाय के लोग रिहाइश के लिए एक सीमित इलाके में रहते हैं, लेकिन वे न सिर्फ स्थानीय भाषा बोलने लगे हैं, बल्कि कई स्थानीय रीति-रिवाज भी उन्होंने अपना लिए हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसमें दोनों समुदायों के हित आपस में टकराते हों। इसीलिए इन दोनों समुदायों के बीच पहले अविश्वास पैदा होना, फिर तनाव बनना और उसके बाद हिंसा की खबरें परेशान करने वाली हैं। यह सब कुछ ऐसा है, जिसके बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना था।
शिलांग की ये खबरें कई तरह के सवाल भी खडे़ कर रही हैं। कई पीढ़ियों से साथ-साथ रह रहे दो समुदाय कभी इस कदर क्यों न घुल-मिल सके कि उनमें दरारों व दूरियां की गुंजाइश न बच पाती? ऐसा क्यों होता है कि शांतिप्रिय माने जाने वाले समुदाय भी अचानक हिंसक दिखने लगते हैं? और जिस समाज को महिलाओं को सम्मान और ऊंचा दर्जा देने के लिए जाना जाता है, उस पर दूसरे समुदाय की औरतों से दुव्र्यवहार करने के आरोप कैसे आ जाते हैं? हालांकि इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने से पहले अभी प्राथमिकता यह है कि शिलांग में न सिर्फ शांति, बल्कि सद्भाव कायम किया जाए। वह भी कुछ इस तरह से कि दोनों समुदाय इस प्रक्रिया में जुड़ भी सकें।
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