हम विश्व नागरिक बनेंगे, तो देश ज्ञान की महाशक्ति बनेगा
- हर साल नवंबर की 11 तारीख को हम राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाते हैं। आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद इसी दिन पैदा हुए थे। उन्होंने नौजवानों में रचनात्मक सोच, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के विकास पर जोर दिया था…
धीरेंद्र पाल सिंह
हर साल नवंबर की 11 तारीख को हम राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाते हैं। आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद इसी दिन पैदा हुए थे। उन्होंने नौजवानों में रचनात्मक सोच, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के विकास पर जोर दिया था। जिस तरह बदलते समय और समाज के साथ हमारी जरूरतें बदलती हैं और बदलती जरूरतों के साथ हमारी समस्याएं भी बदलती हैं, उसी तरह हमारी शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव अनिवार्य है। देश में आजादी के बाद से अब तक तीन प्रमुख शिक्षा नीति लाई जा चुकी हैं- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का दृष्टिकोण एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का निर्माण करना है, जो भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाए और एक मजबूत, समावेशी और अभिनव समाज का निर्माण करे। इस नीति का उद्देश्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है, जो वैश्विक नजरिये के साथ-साथ भारतीय मूल्यों और संस्कृति में भी गहराई से जुड़े हों।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा से पहले ही 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने मिलकर वैश्विक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए 17 नए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) तैयार किए, जिन्हें 193 सदस्य देशों ने अपनाया था। इन लक्ष्यों का उद्देश्य मानवता और प्रकृति के संतुलित विकास के लिए एक व्यापक योजना तैयार करना था, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता, पर्यावरण सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास और वैश्विक सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया। भारत भी इन लक्ष्यों का एक हस्ताक्षरकर्ता रहा है और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी नीतियों और कार्यों में इन लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से अपनाएं। हालांकि, एक बड़ी चुनौती यह है कि नागरिकों में सतत विकास लक्ष्यों के प्रति जिम्मेदारी का भाव कैसे उत्पन्न किया जाए, क्योंकि दुनिया भर में लोग विभिन्न सीमाओं, जाति, पंथ आदि के आधार पर विभाजित हैं। इस विभाजन के कारण अक्सर लोग एक-दूसरे से अलग-थलग महसूस करते हैं और वैश्विक समस्याओं के प्रति उनकी जिम्मेदारी का एहसास कमजोर हो जाता है। इस समस्या का उपयुक्त समाधान है कि जन समुदाय में वैश्विक नागरिकता का भाव पैदा किया जाए।
यह गर्व की बात है कि हमारे देश की सभ्यता का तो मूल मंत्र ही वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिन: है। अर्थात, हम लोग आदि-अनादि काल से ही वैश्विक नागरिकता के सिद्धांत का पालन करते आए हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् का विचार हमें सिखाता है कि पूरी दुनिया के लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और उनकी भलाई में ही हमारी भलाई है। यह दृष्टिकोण जाति, धर्म या राष्ट्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर पूरी मानवता को एक परिवार के रूप में देखता है। वहीं, सर्वे भवन्तु सुखिन: का संदेश समानता, शांति और समृद्धि की कामना करता है। यह विचार लोगों को आपसी प्रेम, दया और सहानुभूति से जोड़ता है, जो वैश्विक नागरिकता का मूल है।
हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से यूजीसी ने एसडीजी और एनईपी 2020 के अनुरूप ‘एजुकेशनल फ्रेमवर्क फॉर ग्लोबल सिटीजनशिप इन हायर एजुकेशन’ तैयार किया है। यह दस्तावेज वैश्विक नागरिकता के दृष्टिकोण, पाठ्यक्रम संरचना, शिक्षा-शास्त्र, सीखने के परिणामों व इसके कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर प्रकाश डालता है।
वैश्विक नागरिकता एक सकारात्मक विचार है, पर इसे वास्तविकता में उतारने में कई चुनौतियां आएंगी। इनके समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग और संवाद की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की दृष्टि बहुत व्यापक है, जो हमारे शिक्षार्थियों को वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित करने पर जोर देती है, साथ ही उन्हें अपनी जड़ों और जीवन मूल्यों से जुड़े रहने पर भी जोर देती है। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर हमारे शैक्षिक संस्थानों को इसी के अनुरूप भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में देखने और खुशहाल विश्व के निर्माण हेतु अपने शिक्षार्थियों को वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित करने के लिए संकल्प लेना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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