जनादेश का सम्मान करेगी नई सरकार 

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद पहली बार सरकार का गठन होने जा रहा है। जब चुनाव के नतीजे आ रहे थे और यह करीब-करीब स्पष्ट हो चला था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Tue, 15 Oct 2024 10:12 PM
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जनादेश का सम्मान करेगी नई सरकार 

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद पहली बार सरकार का गठन होने जा रहा है। जब चुनाव के नतीजे आ रहे थे और यह करीब-करीब स्पष्ट हो चला था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है, तभी नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने घोषणा कर दी थी कि लोगों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भरोसा करके यह जनादेश दिया है। लगे हाथ उन्होंने उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने का एलान भी कर दिया था। अब जब सरकार शपथ लेने जा रही है, तो यह सवाल पुरजोर तरीके से उठ रहा है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणापत्र में जिन 12 गारंटियों की घोषणा की थी, उसका क्या होगा? असल में, इन गारंटियों में एक अनुच्छेद-370 की वापसी और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना भी है। मेरा मानना है कि यह सरकार अपने चुनावी वायदों पर अमल करने का पूरा प्रयास करेगी। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि लोकसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस की जो दुर्गति हुई थी, वह उसको दोहराना नहीं चाहेगी। हालांकि, सच यह भी है कि नई सरकार के कुछ फैसले केंद्र सरकार की नीतियों पर भी निर्भर करेंगे, लेकिन जैसा कि पूर्व में हो चुका है, यहां के लोगों की बेहतरी के लिए सभी दल लचीला रुख दिखा सकते हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की यह सरकार ऐसी साझा योजना बनाने में जरूर सफल होगी, जो न सिर्फ लोगों की बेहतरी का ख्याल रखेगी, बल्कि उनमें यह भरोसा भी पैदा कर सकेगी कि नई सरकार उनके लिए तत्पर है। 
चंदन कुमार, टिप्पणीकार


मिलकर होगा काम
अनुच्छेद-370 के रद्द होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार नई विधानसभा और सरकार का गठन हो रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की गठबंधन सरकार उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में बनने जा रही है। मगर सवाल यहां यह है कि केंद्र शासित इस प्रदेश में राज्य सरकार की असल शक्तियां किसके पास होंगी? साफ है, एलजी और मुख्यमंत्री को मिलकर राज्य के विकास के लिए काम करना होगा, जो वे कर सकते हैं। अतीत में दिल्ली में एलजी और मुख्यमंत्री के बीच तकरार को देखते हुए जम्मू-कश्मीर की सरकार को ऐसी स्थिति से बचना होगा। हालांकि, सच यह भी है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक परिस्थितियां दिल्ली से अलग हैं और सभी उम्मीद करते हैं कि यहां राज्य सरकार व एलजी के बीच सहयोग से राज्य के विकास को बढ़ावा मिलेगा। उमर अब्दुल्ला ने भी कश्मीरी पंडितों की घर-वापसी का संदेश दिया है, जो एक सकारात्मक संकेत है। 
जयेंद्र गोस्वामी, टिप्पणीकार

मुश्किल होगा वायदों पर खरा उतरना
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) गठबंधन ने आधे का आंकड़ा पार कर लिया। कड़ी मेहनत के बावजूद भाजपा को कश्मीर घाटी में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल सकी। नतीजों के दिन शुरुआती रुझानों में ही गठबंधन के पक्ष में हवा बन गई थी, जो अंत तक बनी रही। बहरहाल सवाल यह है कि क्या कांग्रेस-एनसी गठबंधन अपने चुनावी वायदों को पूरा कर सकेगा? जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अकेले 42 सीटों पर जीत हासिल की है। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद-370 को लेकर बड़ा बयान दिया। उनका कहना है कि जनादेश ने साबित कर दिया कि कश्मीर के लोग अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के फैसले को स्वीकार नहीं करते। इसके साथ ही उन्होंने अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को अगला मुख्यमंत्री बनाए जाने का एलान भी कर दिया था।
लोकतंत्र में कोई सत्ता स्थायी नहीं होती और जम्मू-कश्मीर के अवाम ने जनादेश के जरिये इसे बखूबी समझाया है। दरअसल, 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने जीत का परचम लहराया था। उस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस की झोली में महज 15 सीटें आई थीं, लेकिन दस साल बाद उसने शानदार वापसी की है और पिछले चुनाव के मुकाबले करीब-करीब तीन गुना ज्यादा सीटेें हासिल की हैं। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने बार-बार इस बात का जिक्र किया था कि जम्मू-कश्मीर को स्थायी सरकार का इंतजार है। वोट अपील में भी इसी बात को प्रमुखता से कहा जाता रहा, लेकिन इसका कोई फर्क नहीं पड़ा और एक बार फिर यहां गठबंधन की सरकार बन रही है, लिहाजा इसे अभी स्थायी सरकार के तौर पर देखना उचित नहीं होगा। उधर, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात की थी। दोनों दल जम्मू-कश्मीर में फिर से अनुच्छेद-370 लाना चाहते हैं। मगर इस वायदे को पूरा करना आसान नहीं है।
दरअसल, केंद्रशासित राज्य में किसी भी सरकार का इस दिशा में आगे बढ़ना बहुत ज्यादा मुश्किलों भरा कदम है, क्योंकि यह काम केवल केंद्र सरकार कर सकती है। अभी जम्मू-कश्मीर के पास विशेष दर्जा नहीं है। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के मुताबिक, राज्य की प्रशासनिक शक्तियां काफी हद तक एलजी कार्यालय में केंद्रित हो जाती हैं और केंद्र द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल को सर्वशक्तिमान बना देती है। नई सरकार को भी हर बड़े फैसले के लिए एलजी की अनुमति लेनी पड़ेगी।
माही तिवारी, टिप्पणीकार 

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