राष्ट्र की प्रगति को गति मिल रही 

भारत में बुनियादी ढांचे की तस्वीर बदलने और कनेक्टिविटी बढ़ाने में पीएम गति शक्ति योजना महत्वपूर्ण साबित हो रही है। इसके तहत न सिर्फ विभिन्न मंत्रालयों की सैकड़ों परियोजनाएं चल रही हैं...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Mon, 14 Oct 2024 11:10 PM
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राष्ट्र की प्रगति को गति मिल रही 

भारत में बुनियादी ढांचे की तस्वीर बदलने और कनेक्टिविटी बढ़ाने में पीएम गति शक्ति योजना महत्वपूर्ण साबित हो रही है। इसके तहत न सिर्फ विभिन्न मंत्रालयों की सैकड़ों परियोजनाएं चल रही हैं, बल्कि मंत्रालयों में आपसी समन्वय से उनका क्रियान्वयन भी अच्छे से हो रहा है। करीब तीन वर्ष पहले 15 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से इसकी घोषणा की थी और उसी साल अक्तूबर में इसके मास्टर प्लान पर काम शुरू हो गया था। इसका उद्देश्य यही था कि सभी आर्थिक क्षेत्रों को मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराना। अच्छी बात है कि अपने उद्देश्य में यह योजना लगातार आगे बढ़ रही है।
यह देश के बुनियादी ढांचे में बदलाव लाने वाली परिवर्तनकारी पहल है।  अच्छी बात यह है कि नेशनल मास्टर प्लान का फायदा अब निजी कंपनियों को भी मिलने के दावे किए गए हैं। अभी तक यह योजना सिर्फ सरकारी विभागों और एजेंसियों तक सीमित रही है। कहा जा रहा है कि इस योजना के तहत सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, जल मार्गों और हवाई अड्डों के विकास के लिए करीब 16 लाख करोड़ रुपये की लागत से 200 से भी अधिक परियोजनाओं की सिफारिश की जा चुकी है। यहां यह जानना भी जरूरी है कि मास्टर प्लान के तहत उन्हीं बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को शामिल किया जाता है, जिनकी लागत पांच सौ करोड़ रुपये या इससे ज्यादा हो। दरअसल, यह योजना जिन छह स्तंभों पर टिकी है, वही इसकी ताकत है। ये छह स्तंभ हैं- व्यापकता, प्राथमिकता, निर्धारण, अनुकूलन, तालमेल, विश्लेषण और गतिशीलता। चूंकि मंत्रालयों व विभागों की नियोजित पहल की जानकारी एक-दूसरे को होती है, इसलिए व्यापक तरीके से योजना बनाने और उन पर काम करने में मदद मिलती है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का बयान बताता है कि अनुशंसित परियोजनाओं में अधिकतम संख्या सड़क 101, रेलवे 73, शहरी विकास 12 और तेल एवं गैस मंत्रालय से संबंधित चार परियोजनाएं हैं। 
पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (एनएमपी) में भारतमाला, सागरमाला, अंतर्देशीय जलमार्ग, शुष्क या भूमि बंदरगाह और उड़ान जैसे विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों की ढांचागत योजनाओं को शामिल किया गया है। बुनियादी ढांचे का उन्नत होना कितना महत्वपूर्ण है, इसका पता अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन जैसे तमाम देशों को देखकर लगाया जा सकता है। इन सभी देशों ने मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क से जबर्दस्त तरक्की की है।
सुमन, टिप्पणीकार

इसमें सुधार की काफी गुंजाइश बाकी

देश की बुनियादी सुविधाओं को हरसंभव बेहतर बनाने और विकास-योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने आज से तीन साल पहले पीएम गति शक्ति योजना शुरू की थी, लेकिन जब तक राज्य सरकारें केंद्र की योजनाओं को बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के अमल में नहीं लातीं, तब तक ऐसी कोई भी योजना कामयाब नहीं हो सकती। यह योजना कितनी कामयाब हुई, यह तो केंद्र सरकार ही जानती होगी और सबके इस पर अलग-अलग विचार भी हो सकते हैं, लेकिन यदि केंद्र और राज्य सरकारें मिल-जुलकर बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के काम कर रही होतीं, तो इस बार भी बरसात आम जन के लिए आफत नहीं बनती, सड़कों पर गड्ढे लोगों की जान के दुश्मन नहीं बनते। बीते रविवार को भी जालंधर, पंजाब में सड़क पर गड्ढे ने एक बच्चे की जान ले ली। इतना ही नहीं, हमारे देश के कुछ शहर अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ऐसा सियासी भेदभाव व भ्रष्टाचार के कारण हो रहा है। कुछ सांसदों, विधायकों, पार्षदों और प्रधानों की भ्रष्टाचार करने की नीयत हमारे देश के कई इलाकों पर भारी पड़ रही है। इसी कारण आजादी के इतने लंबे अरसे के बाद भी कई इलाके उचित विकास नहीं कर पाए हैं। 
दावा किया जा रहा है कि पीएम गति शक्ति योजना के तहत बुनियादी ढांचे पर पर्याप्त जोर दिया जा रहा है, लेकिन आज भी शहरों में लोगों का पलायन भूख की वजह से होता है। रोजी-रोटी की तलाश में वे शहर आते हैं और यहीं के बन जाने की मजबूरी में अपना जीवन गुजार देते हैं। इनकी वजह से शहरों के बुनियादी ढांचे पर अप्रत्याशित भार बढ़ता है। नतीजतन, शहरों के आसपास या खाली क्षेत्रों में कंकरीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। इस अनियोजित विकास की कीमत पर्यावरण को भी चुकानी पड़ती है और मानवीय दखलंदाजी के कारण आबोहवा को काफी नुकसान पहुंचता है। 
पीएम गति शक्ति का लाभ तभी पूरी तरह मिल सकेगा, जब शहरों में होते इस प्रवासन और इसकी वजह से बढ़ती मुश्किलों का निदान हो। इसके लिए इस योजना में अपेक्षित सुधार की जरूरत है। इसके अतिरिक्त, साल-दर-साल बढ़ते शहरों के दायरे पर भी नियंत्रण आवश्यक है। ऐसे प्रयास होने चाहिए कि खेती की जमीनों का खेती-किसानी में ही इस्तेमाल हो, किसी अन्य काम में नहीं। महात्मा गांधी ने पर्यावरण और विकास पर समान रूप से जोर देने की वकालत की थी। हमें पीएम गति शक्ति में इस सोच को आगे बढ़ाना चाहिए। तभी यह योजना सार्थक नजर आएगी।
राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार 

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