विपक्ष में फूट की खबर महज दिवास्वप्न

इन दिनों चारों तरफ एक नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है कि कांग्रेस अब बैकफुट पर चली गई है और उसके सहयोगी उस पर कम हिस्सेदारी लेने का दबाव बना रहे हैं। इन खबरों की मानें, तो ऐसा विशेषकर हरियाणा चुनाव के...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Sun, 13 Oct 2024 11:14 PM
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विपक्ष में फूट की खबर महज दिवास्वप्न

इन दिनों चारों तरफ एक नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है कि कांग्रेस अब बैकफुट पर चली गई है और उसके सहयोगी उस पर कम हिस्सेदारी लेने का दबाव बना रहे हैं। इन खबरों की मानें, तो ऐसा विशेषकर हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद हुआ है, क्योंकि यहां जीती हुई लग रही बाजी कांग्रेस हार गई है। असल में, यह सब ‘इंडिया’ ब्लॉक के प्रति लोगों के मन में अविश्वास पैदा करने का सुनियोजित षड्यंत्र है। ये काम वे लोग या समूह कर रहे हैं, जो एग्जिट पोल आने के बाद भले ही मजबूरी में दांत निकाल रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर बेहद उद्विग्न थे। नतीजे आने के बाद उनके चेहरे खिल गए हैं और अब अपने इस मिशन में जुट गए हैं कि आगे क्या नैरेटिव सेट करना है?
बहरहाल, इस साल के आम चुनाव का विश्लेषण करें, तो तमाम विचारों में इस एक विचार पर सबकी सहमति होगी कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का इस पर व्यापक प्रभाव पड़ा था। इसके कारण भी जनता ने ‘इंडिया’ ब्लॉक को वोट दिया था और उसे संसद में काफी मजबूत आवाज से नवाजा। यकीनन, वह वोट किसी क्षेत्रीय पार्टी के नाम पर नहीं पड़ा था, बल्कि विपक्षी गठबंधन को गया था, जिसके केंद्र में कांग्रेस थी। बाद के चुनावों में भी हमने राजनीतिक षड्यंत्रों के बीच विपक्षी दलों में गठबंधन बनते और उनको चुनाव में प्रभावी होते देखा है। साफ है, यह दुनिया एक कालचक्र है, जहां कोई चीज स्थायी नहीं। हार-जीत अपनी जगह है, लेकिन हार के बाद विपक्षी दलों के खिलाफ दुष्प्रचार तेज कर देने के निहितार्थ स्पष्ट हैं। कोई भी सत्तारूढ़ दल अपनी सत्ता गंवाना नहीं चाहता और हर तरह की कोशिशें करके गद्दी बचाना चाहता है, बावजूद इसके विरोधी दल हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहते। हालांकि, उसकी राह जनता ही तय करती है और यही अगले चुनाव में ‘इंडिया’ ब्लॉक के बारे में भी कहा जा सकता है। तब तक, विरोधी दलों को उन नैरेटिव से मजबूती से लड़ना होगा, जो उनके खिलाफ खड़े किए जाएंगे। विपक्षी गठबंधन में फूट कुछ ऐसी ही खबर है, जिसमें चुहल के सिवा कोई दम नहीं।
अच्छा यही होगा कि विपक्षी दल जनता के बीच बने रहें। उसको अपनी नीतियां समझाते रहें। यह भी बताएं कि सत्तारूढ़ दल किस-किस तरह से उसके हितों के खिलाफ काम कर रहा है। जाहिर है, यदि जनता साथ आ गई, तो फिर इस शासन को सत्ता से बेदखल करना काफी आसान हो जाएगा। इतना तो साफ है कि आज ‘इंडिया’ ब्लॉक को कहीं अधिक एक होकर मैदान में उतरने की जरूरत है। 
उजैर नजम, टिप्पणीकार

उनके बीच मतभेद अभी और उभरेंगे
‘इंडिया’ ब्लॉक में फूट की खबर को गलत कैसे मान सकते हैं? हालिया विधानसभा चुनावों से पहले ही आम आदमी पार्टी इससे छिटककर दूर चली गई थी और चुनावों में उसने अकेले उतरने का फैसला किया और, अब जब नतीजे कांग्रेस के खिलाफ हैं, तो आप ही नहीं, उद्धव ठाकरे की शिव सेना, समाजवादी पार्टी जैसी सहयोगी पार्टियों ने भी कांग्रेस को घेर लिया है। उस पर अति आत्मविश्वास मेंे सहयोगी दलों को महत्व न देने का आरोप लगाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस गठबंधन को लेकर सहमति बनाने में तभी इच्छुक रहती है, जब उसे इसकी जरूरत जान पड़ती है। अगर उसे यह एहसास हो जाए कि वह अकेले दम पर चुनाव जीतने में सक्षम है, तो वह गठबंधन के दलों को किनारे करने में विश्वास करती है। यही कारण है कि आप की तमाम कोशिशों के बाद भी हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ बात नहीं बन सकी और लोकसभा चुनाव का यह अहम सहयोगी दल इस बार अकेले ही हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी मैदान में उतरा। 
जाहिर है, अब झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली के आसन्न चुनावों पर सबकी नजरें टंग गई हैं। यहां भी उनमें सिर-फुटौव्वल दिखने लगी है। दिल्ली में तो अभी से आप और कांग्रेस के सुर अलग-अलग नजर आ रहे हैं, तो महाराष्ट्र में शिव सेना के नेता यहां तक कहने लगे हैं कि छोटे दलों का सम्मान न करने वाली कांग्रेस चाहे तो अकेले चुनाव लड़ सकती है। झारखंड भी अपवाद नहीं है और वहां भी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अगर यही सब कुछ चलता रहा, तो ‘इंडिया’ ब्लॉक की आपसी फूट ही सामने वाले दल को जीत दिला देगी, ठीक हरियाणा की तरह, जहां माहौल सत्तारूढ़ दल के खिलाफ लग रहा था, लेकिन विपक्षी गठबंधन की आंतरिक गुटबाजी ने सारा खेल पलट दिया।
मेरा मानना है कि इससे बचने के लिए विपक्षी गठबंधन को एक ही नीति अपनानी चाहिए। उसमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि जो पार्टी, जिस राज्य में ताकतवर है, वहां उसी का नेता नेतृत्व करेगा। जैसे, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, झारखंड में हेमंत सोरेन, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और अखिल भारतीय स्तर पर राहुल गांधी। इस तरह की कोई सहमति बनाने से ही ‘इंडिया’ ब्लॉक चुनावों में मजबूती से लड़ सकता है और राज्यों में अपनी सरकार बना सकता है। केंद्र पर दबाव बनाने के लिए राज्यों को जीतना काफी जरूरी है। मगर दिक्कत यही है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक में किसी एक नेतृत्व पर अब तक सहमति नहीं बन सकी है, जिसके कारण इसमें असंतोष के स्वर बार-बार उभरते रहते हैं। 
रियांशी, टिप्पणीकार
 

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