पुरानी व्याधियों से उबर न सकी कांग्रेस

देश में स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुपालन में कांग्रेस कितनी गंभीर रहती है, यह कोई छिपा तथ्य नहीं है। वह राष्ट्रीय मुद्दों पर कितनी सजग है या जनता के साथ कितनी खड़ी होती है, यह भी लोग जानते...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Thu, 10 Oct 2024 11:03 PM
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पुरानी व्याधियों से उबर न सकी कांग्रेस

देश में स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुपालन में कांग्रेस कितनी गंभीर रहती है, यह कोई छिपा तथ्य नहीं है। वह राष्ट्रीय मुद्दों पर कितनी सजग है या जनता के साथ कितनी खड़ी होती है, यह भी लोग जानते ही हैं। उसकी तो मानो यह आदत सी बन गई है- बार-बार लोकतंत्र और संविधान के खतरे में होने का राग अलापना। साफ है, स्वस्थ विपक्ष की भूमिका का निर्वहन उससे नहीं हो पा रहा। लोकतंत्र के इतिहास में जितना दोहरा चरित्र कांग्रेस पार्टी का उजागर हुआ है, उतना शायद ही किसी अन्य दल का हुआ है। यह पार्टी आम आदमी का विश्वास खो चुकी है और सिर्फ बयानबाजी करके व चुनावी रैलियों में भीड़ देखकर अति-आत्मविश्वास में स्वयं को विजेता मान बैठती है। सच्चाई का उसे ज्ञान ही नहीं होता और जब नतीजा उसके खिलाफ आता है, तो वह चुनाव में गड़बड़ी के आरोप लगाने लगती है।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ उसके गठबंधन की जीत हुई है, जबकि हरियाणा में एक जीती हुई बाजी वह हार गई। यहां हार की पड़ताल करने और अपनी आंतरिक कमजोरियों पर बात करने के बजाय पार्टी चुनाव आयोग व ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ रही है। उसकी मानें, तो जहां उसे जीत मिली, वहां की ईवीएम ठीक थी, जबकि जहां हार मिली, वहां कुछ गड़बड़ी की गई है। ऐसी दलील समझ से परे है। यह कहीं न कहीं लोकतंत्र पर ही सवाल उठाने जैसा है, जबकि भारत का लोकतंत्र कितना जीवंत है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस को समझना होगा कि खेल हों या चुनाव, इनमें हार-जीत सिक्के के दो पहलू की तरह होते हैं। इसमें जीत गए, तो सब ठीक और हार गए तो नियम गलत, जैसी मानसिकता सही नहीं ठहराई जा सकती। इससे पार्टी को नुकसान भी खूब हुआ है। उसका जनाधार लगातार कम हो रहा है। कई राज्यों में तो उसका सूपड़ा तक साफ हो चुका है।
यह स्थिति विचारणीय है। सवाल यह भी है कि कांग्रेस पार्टी दोहरा चरित्र लेकर कब तक स्वस्थ लोकतंत्र को कलंकित करती रहेगी? यदि सवाल उठाने ही हैं, तो जम्मू-कश्मीर चुनाव पर भी उसे उठाने चाहिए और जिन-जिन राज्यों में कांग्रेस या गठबंधन की सरकारें हैं, वहां के चुनावों पर भी सवाल करने चाहिए। वैसे, उसके लिए बेहतर तो यही होगा कि वह भाजपा जैसे दलों की रणनीति समझने का प्रयास करे। अगर कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति सुधार पाती है, तो उसे सफलता मिल सकती है, अन्यथा उसकेलिए दिल्ली अभी दूर है।
सुधाकर आशावादी, टिप्पणीकार

धीरे-धीरे लोगों का पार्टी पर बढ़ रहा भरोसा
जम्मू-कश्मीर तो नहीं, लेकिन हरियाणा का जनादेश सामने आने के बाद कांग्रेस पर हमले तेज हो गए हैं। कहा जाने लगा है कि अब उसके दिन लद गए हैं। ऐसे राज्य में, जहां उसकी जीत की संभावना सभी विश्लेषक जता रहे थे और सत्ता-विरोधी भावना भी प्रबल थी, वहां पर आंतरिक गुटबाजी की कीमत उसे अपनी हार के रूप में चुकानी पड़ी है और भाजपा एक बार फिर उस पर बीस साबित हुई है। ऐसे आरोपों में दम नहीं  हैं। अगर कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें, तो 2014 के आम चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद इसने बुरा वक्त जरूर देखा, लेकिन धीरे-धीरे उससे उबरते हुए वह मतदाताओं के दिलों में अपने लिए जगह बनाने में वह कामयाब हुई है। चुनाव आयोग के आंकड़े ही बताते हैं कि 2014 के आम चुनाव में उसे 12.8 फीसदी मत मिले थे, जबकि 2019 में पार्टी 13.1 फीसदी मत हासिल करने में सफल रही। 2024 के चुनाव में उस पर 21.1 फीसदी मतदाताओं ने भरोसा किया था, जो संकेत है कि पार्टी लोगों के दिलों में फिर से घर बनाने लगी है। 
कांग्रेस के साथ अच्छी बात यह रही है कि वह दूसरे दलों के साथ सहजता से व्यावहारिक रिश्ता बना लेती है। यही कारण है कि सहयोगी दलों के साथ इसके टकराव की कोई आवाज नहीं आती। यह आपसी दोस्ती का ही असर है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में उसका प्रदर्शन सुधर रहा है। बेशक उसे इतनी सफलता नहीं मिल रही कि वह सरकार बना सके, लेकिन एक मजबूत विपक्ष के तौर पर वह अपनी पहचान जरूर बना रही है। निस्संदेह, यह जनता का कांग्रेस पर बढ़ते विश्वास का प्रतीक है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर सकारात्मक असर पड़ा है और वे मन से लगातार पार्टी के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। एकाध जगह यदि कुछ ऊंच-नीच है भी, तो उस मसले का हल बातचीत से निकाला जा रहा है। इन सबका पार्टी के प्रदर्शन पर प्रभावी असर पड़ा है।
हरियाणा की ही बात करें, तो इस बार कांग्रेस को 37 सीटें मिली हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में छह ज्यादा है। 2014 के चुनाव में तो पार्टी को 15 सीटें मिली थीं। जाहिर है, यहां भी पार्टी की सेहत बिगड़ी नहीं, बल्कि सुधरी ही है। सीटों में यह बढ़ोतरी उसकी मजबूती की ओर ही इशारा करती है। इसलिए, कांग्रेस को टूटकर घेरने का प्रयास गलत जान पड़ता है। वास्तव में, सच्चाई यह है कि देश को आजादी दिलाने वाली यह पार्टी अब भी लोगों के दिलों में बसती है। उम्मीद है, आगे इसका प्रदर्शन और बेहतर होगा।
नेत्रा, टिप्पणीकार 

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