डबल इंजन पर मतदाताओं का फिर भरोसा
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत की ऐतिहासिक हैट्रिक मार ली है। यह डबल इंजन सरकार की जीत है। कांग्रेस को अपनी इस हार का गंभीरता से मंथन करना चाहिए। उसे यह समझना होगा कि चुनावी जंग में जीत...
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत की ऐतिहासिक हैट्रिक मार ली है। यह डबल इंजन सरकार की जीत है। कांग्रेस को अपनी इस हार का गंभीरता से मंथन करना चाहिए। उसे यह समझना होगा कि चुनावी जंग में जीत तश्तरी में परोसकर नहीं दी जाती। इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता कि चुनावी ऊंट को मतदाता किस करवट बैठाएगा? सियासी दल यह भी समझ रहे होंगे कि आम चुनाव में मतदाता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखता है, जबकि स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों में मूलभूत सुविधाओं व अन्य स्थानीय मुद्दों को। हरियाणा की डबल इंजन सरकार अपने कामकाज से मतदाताओं में भरोसा जगाने में सफल रही, जिसका फायदा भाजपा को चुनावों में मिला। मतदाता यह भली-भांति समझने लगे हैं कि केंद्र व राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने से राजनीतिक भेदभाव नहीं हो पाता और विकास के काम कहीं अच्छे से संचालित होने लगते हैं। आमतौर पर यही देखा जाता है कि केंद्र और राज्य में अलग-अलग राजनीतिक पार्टी की सरकार होने के कारण राज्य सरकार केंद्र की नीतियों को अपने यहां उचित तरीके से लागू नहीं कर पाती। इसका राज्य को तो नुकसान होता ही है, आम लोगों को भी नुकसान झेलना पड़ता है।
हालांकि, यह नतीजा कांग्रेस के लिए किसी सबक से कम नहीं है। उसे मतदाताओं के दिल में उतरने के लिए विशेष मेहनत करनी पड़ेगी। विरोधी दलों द्वारा बनाए गए माहौल का भी उसे जवाब देना होगा। जाहिर है, राहुल गांधी को अब राजनीतिक बाजी सोच-समझकर चलनी होगी। पार्टी में उनके अलावा कोई दूसरा विश्वसनीय चेहरा नहीं दिखता। क्या कांग्रेस हाईकमान के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो उसके सेनापति का साथ दे? बिना मजबूत सेना के सेनापति आखिर कब तक लड़ाई लड़ सकेगा? भाजपा को हराना है, तो उसकी तरह कुशल रणनीति ही नहीं बनानी होगी, बल्कि एक मजबूत सेना भी तैयार करनी होगी। ‘पन्ना प्रमुख’ जैसी संकल्पना उसे भी अपनानी होगी, तभी वह भाजपा से मुकाबला कर पाएगी।
साफ है, यह जनादेश कई संदेश देता दिख रहा है। भाजपा स्वाभाविक तौर पर खुश होगी, क्योंकि उसकी नीतियों को व्यापक स्वीकृति मिली है। एक मुश्किल चुनाव में, जिसके हारने की भविष्यवाणी तमाम सियासी पंडित कर रहे थे, भाजपा ने जीत ही नहीं हासिल की, बल्कि पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन भी किया। यह डबल इंजन सरकार के होने से ही संभव हुआ है। लोग विपक्षी दलों के झांसे में नहीं आ रहे। यही भरोसा केंद्र व राज्य की भगवा सरकार को मजबूत बनाता है।
राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार
लोगों के लिए फायदेमंद नहीं ऐसी सरकार
हरियाणा चुनाव को यदि हम डबल इंजन की सरकार की जीत मानते हैं, तो जम्मू-कश्मीर के नतीजों को क्या नाम देंगे? असल में, विधानसभा चुनावों के इन अलग-अलग नतीजों का सिर्फ एक ही संदेश है कि लोग सरकार के कामकाज के आधार पर वोट देते हैं, किसी की हवा-बयार को देखकर नहीं। अन्यथा, दोनों राज्यों में नतीजा एक समान ही आता, जो नहीं हुआ। हरियाणा में जहां भाजपा को लगातार तीसरी बार जीत मिली, तो जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन पर लोगों ने भरोसा किया।
सवाल है कि डबल इंजन सरकार पर कितना भरोसा करें? मेरी मानें, तो ऐसी सरकारें शायद ही भरोसे पर खरा उतर पाती हैं। कुछ उदाहरणों से शायद आप मेरी बात बेहतर समझ सकेंगे। डबल इंजन की कथित सरकार मणिपुर में भी है और वहां की हालत क्या है, यह शायद ही बताने की जरूरत है। अभूतपूर्व हिंसा में यह राज्य जल रहा है। अविश्वास का आलम यह है कि यहां का सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से टूट चुका है। कुकी और मैतेई को एक-दूसरे पर नाममात्र भी भरोसा नहीं रहा। बिहार का हाल भी जानना दिलचस्प होगा, जहां डबल इंजन सरकार होने के दावे किए जाते रहे हैं। यहां विकास का कितना काम कथित तौर पर हुआ, इसकी सच्चाई तो यहां के लोग ही बताएंगे, लेकिन पुल कितने गिरे, उसकी जानकारी देश-दुनिया में सबको हो गई। आखिर यह कैसा विकास है? यहां की डबल इंजन की सरकार पुलों को गिरने से नहीं रोक पाई। यहां तो अब भी ऐसी स्थिति नहीं बन सकी है कि प्रवासी बिहारी वापस लौटकर अपना कुछ काम-धंधा जमा सकें, जबकि यहां की सरकार विकास के तमाम दावे बेधड़क करती है। अगर माहौल सुधरा है, तो वे जमीन पर क्यों नहीं दिखते?
इन सबका एक ही संकेत है- सरकार यदि जनता के हित में काम करती है, यदि जनहितकारी नीतियों का निर्माण करती है, शासन कार्यों को बेहतर तरीके से संचालित करती है और तंत्र को जनहितैषी बनाने में सफल होती है, तो लोग उसे सिर-आंखों पर बिठाएंगे ही। वरना, दो इंजन लगा लीजिए या कई और, सत्तारूढ़ पार्टी का फिर से लौटना मुश्किल है। ताजा विधानसभा चुनावों की भी यही कहानी है। हरियाणा की नायब सिंह सैनी की अगुवाई वाली सरकार पर लोगों ने भरोसा किया है, जबकि जम्मू-कश्मीर में बदलाव की बयार बही है। हमें इन नतीजों को इसी रूप में स्वीकार करना चाहिए। यहां डबल इंजन जैसे कारकों का कोई महत्व नहीं। हरियाणा की जीत वास्तव में सैनी की जीत है।
दीप्ति, टिप्पणीकार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।