भारत के साथ चलने में माले को फायदा

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू भारत दौरे पर हैं। उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए जिन मुद्दों पर भारत का विरोध किया था, अब उन पर सहमति के लिए तैयार हैं। लगता है, मालदीव के राष्ट्रपति की...

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Wed, 9 Oct 2024 03:36 PM
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भारत के साथ चलने में माले को फायदा

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू भारत दौरे पर हैं। उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए जिन मुद्दों पर भारत का विरोध किया था, अब उन पर सहमति के लिए तैयार हैं। लगता है, मालदीव के राष्ट्रपति की आंखें खुल गई हैं! उन्होंने समझ लिया है कि भारत से अच्छा कोई पड़ोसी देश नहीं है, क्योंकि बीच में जब उनके सुर बदले-बदले थे और चीन के बहकावे में आकर उसकी गोद में जा बैठे थे, तब उन्हें यह एहसास भी हुआ कि चीन-कार्ड खेलना उनके हित में नहीं है। ड्रैगन की सदा एक ही रीति व नीति रही है कि पहले गहरी पैठ बनाओ, आर्थिक मदद दो और फिर मदद के बदले अंगद की तरह पैर जमाकर अपना विस्तार करो। चीन कभी भी किसी की मदद यूं ही नहीं करता है। पहले वह स्वहित देखता है, फिर अपने षड्यंत्रकारी पंजों में जकड़कर उसका खून पीता है। चाहे पाकिस्तान हो, श्रीलंका हो, नेपाल या अन्य देश, उसकी विस्तारवादी नीति को सब भोग रहे हैं। अब बांग्लादेश भी उसके क्रूर पंजों की गिरफ्त में आ गया है। भारत की शुरुआत से एक ही नीति रही है- हम विस्तारवाद व स्वहित साधने में नहीं, बल्कि आपसी सहयोग के माध्यम से प्रगति, समन्वयवाद, भाईचारे व सहयोग बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं। जिस तरह से मालदीव के राष्ट्रपति हकीकत समझ गए हैं और उनको भारत का महत्व समझ में आ गया है, इसी तरह हमारे अन्य पड़ोसी देशों की भी आंखें खुलेंगी। हालांकि, इसमें कितना वक्त लगेगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है? मगर यदि वे समय पर नहीं चेते, तो वह दिन जरूर आएगा, जब चीन उनको अपने खूनी पंजों में पूरी तरह से दबोच लेगा व उनका कतरा-कतरा खून निचोड़ लेगा, तब वे भारत की तरफ टकटकी लगाकर देखेंगे। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
हेमा हरि उपाध्याय, टिप्पणीकार
नई दिल्ली से दोस्ती
भारत एक ‘सॉफ्ट पावर’ है, जो अपने पड़ोसियों के साथ ही नहीं, उन तमाम देशों के साथ खड़ा होता है, जो इसकी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। मालदीव अपवाद नहीं है। वह जानता है कि चीन के साथ जाने पर उसकी दुर्गति तय है, इसलिए उसके लिए भारत के साथ चलना ही फायदेमंद है। भारत वहां जो भी निवेश करेगा, वह मालदीव की बेहतरी के लिए होगा, न कि चीन की तरह उस पर कब्जा जमाने के लिए। यही कारण है कि चुनाव में भले ही मुइज्जू ने भारत विरोधी नारे लगाए, पर अपनी नीतियों में उन्होंने भारत के साथ चलने का ही इरादा जताया है, जिसकी मालदीव को जरूरत भी है।
हृतेश, टिप्पणीकार


मालदीव की हमें भी उतनी ही जरूरत

यह सही है कि मालदीव तुलनात्मक रूप से हमसे छोटा देश है, लेकिन उसके साथ हमारे संबंध बहुत सरल नहीं हैं। उसे जितनी हमारी जरूरत है, हमें भी उसकी उतनी ही जरूरत है। यह एक-दूसरे पर निर्भरता वाला रिश्ता है, जिसमें कौन किस पर भारी है, यह कहना मुश्किल है। यही कारण है कि जब वह चीन की गोद में बैठता दिखा, तो हमारी पेशानी पर बल आ गए थे। मालदीव एक द्वीपीय देश है और हिंद महासागर में शक्ति संतुलन बनाने में हमें उसकी जरूरत है, विशेष तौर पर चीन को संयमित करने के लिए। अगर वह किसी कारणवश बीजिंग की बातों में आ गया, तो हिंद महासागर में हमें नुकसान हो सकता है। हिंद महासागर सामरिक रूप से कितना अहम है, इसका अंदाज ‘सागर’ योजना या प्रोजेक्ट ‘मौसम’ से लगाया जा सकता है। सागर योजना का मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करना है, वहीं प्रोजेक्ट मौसम ऐसी सांस्कृतिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर के तटवर्ती देशों को जोड़ना है। जाहिर है, भारत नहीं चाहता कि हिंद महासागर में चीन की दखल हो, क्योंकि ऐसा होने से हमारे सामने सामरिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी।
सवाल यह नहीं है कि राष्ट्रपति मुइज्जू ने ‘यू टर्न’ क्यों लिया, बल्कि सवाल तो यह होना चाहिए कि माले और बीजिंग में इतनी निकटता कैसे बढ़ गई? क्या कूटनीतिक तौर पर हम कहीं विफल हुए हैं? अगर हां, तो उसकी पड़ताल होनी चाहिए। अच्छी बात यह है कि समय रहते संभवत: इस चूक को समझ लिया गया है, इसलिए राष्ट्रपति मुइज्जू पांच दिनों के दौरे पर नई दिल्ली आए और द्विपक्षीय रिश्तों में गर्माहट बढ़ाने का प्रयास किया। भारत ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी।  दिल खोलकर निवेश करने और मालदीव को आगे बढ़ाने का उसने भरोसा दिया है। कुछ ऐसी योजनाओं पर भी आगे बढ़ने का फैसला किया गया है, जिससे मालदीव को तुलनात्मक रूप से अधिक फायदा होगा। इसी से यह पता चलता है कि मालदीव को अपने साथ रखने के लिए भारत संकल्पित है। यह नीति गलत भी नहीं है। मालदीव की अहमियत को देखते हुए उसे अपने पाले में रखना ही मौजूदा कूटनीति का तकाजा है।
वास्तव में, मुइज्जू ने भारत आकर जितना अपने राजनीतिक हित साधे, उतने हमारे लिए भी उम्मीदों के दरवाजे खोले। यहां बड़ी संख्या में मालदीव से लोग विशेषकर चिकित्सा पर्यटन या बेहतर शिक्षा के लिए आते हैं। ये हमारे खजाने बढ़ाने का ही काम करते हैं। ऐसे में, मालदीव की अनदेखी करने का कोई मतलब नहीं बनता है।
शालिनी कुमारी, टिप्पणीकार 

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