नतीजों के काफी करीब होते एग्जिट पोल
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल आते ही फिर से इनकी विश्वसनीयता को लेकर बहस शुरू हो गई है। एक तबका एग्जिट पोल की तरफदारी कर रहा है, तो दूसरा खेमा उनका विरोध। मगर सच यही है...
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल आते ही फिर से इनकी विश्वसनीयता को लेकर बहस शुरू हो गई है। एक तबका एग्जिट पोल की तरफदारी कर रहा है, तो दूसरा खेमा उनका विरोध। मगर सच यही है कि एग्जिट पोल चुनाव-प्रक्रिया का अधिकृत हिस्सा न होते हुए भी चुनावों में अपनी अहमियत रखने लगे हैं। लोग बेसब्री से इनका इंतजार करने लगे हैं। एग्जिट पोल में मतदाताओं की राय और उनके वोटिंग-पैटर्न का विश्लेषण करके परिणामों का अनुमान लगाया जाता है, जो काफी हद तक सच के करीब होता है। दरअसल, अब एग्जिट पोल वैज्ञानिक तरीके से किए जाते हैं, जिनसे यह पता लगाना आसान हो जाता है कि किस राजनीतिक दल को जनता का कितना समर्थन मिलने जा रहा है? साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में एग्जिट पोल भारतीय जनता पार्टी की बड़ी जीत का अनुमान लगा रहे थे और वे सही भी साबित हुए। वास्तव में, एग्जिट पोल अब इसलिए अहमियत रखते हैं, क्योंकि ये केवल राजनीतिक पार्टियों के लिए नहीं, बल्कि आम जनता व मीडिया के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हो चले हैं। इनसे यह संकेत मिलता है कि किस तरह की सरकार का गठन होने जा रहा है या मतदाता किन-किन मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। लिहाजा, एग्जिट पोल की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा करने वाली बहसों का अब कोई औचित्य नहीं। ये पोल विश्वास के लायक हैं।
प्रणव शुक्ला, टिप्पणीकार
सफल प्रयोग
वे दिन लद गए, जब अंदाजे के आधार पर एग्जिट पोल तैयार किए जाते थे। अब तो बाकायदा वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया जाता है, तभी तो एग्जिट पोल इतने सटीक साबित होने लगे हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो इस काम में बड़ी-बड़ी एजेंसियां नहीं उतरतीं। अब तो आलम यह है कि चुनाव से पहले भी तमाम पार्टियां अपने स्तर पर सर्वे करवाती हैं और मतदाताओं का मिजाज भांपने के प्रयास करती हैं। देखा जाए, तो इससे उनको अपनी रणनीति बनाने में काफी मदद मिलती है। एग्जिट पोल भले ही चुनाव नतीजे तक सीमित हों, लेकिन इनका असर इससे भी आगे है। ये नई सरकार के लिए आईने का काम करते हैं। एग्जिट पोल काफी विश्वसनीय होते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि ये सच के कितने करीब रहे। हां, एकाध बार जरूर इनको मात मिली है, लेकिन इनकी सफलता के सामने चंद असफलताएं अपवाद मानी जाएंगी।
दीपक, टिप्पणीकार,
एक छोटे सर्वे से पूरा जनादेश आंकना गलत
एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर उठने वाले सवाल गलत नहीं हैं। सबसे पहला कारण तो यही है कि ये छोटे से नमूने के आधार पर तैयार किए जाते हैं। जिस दिन वोट डाला जाता है, उस दिन मुट्ठी भर मतदाताओं से प्रश्न पूछे जाते हैं और उनको ही पूरे निर्वाचन क्षेत्र के वोटरों का मूड बताकर प्रचारित किया जाता है। यह बहुत प्रामाणिक तरीका नहीं है, इसलिए ऐसे निष्कर्षों पर हंसी ही आती है। दूसरा, एग्जिट पोल में अपनी राय बताते समय मतदाता आमतौर पर अपने असली विचार छिपा लेते हैं। ऐसा वे इंसानी फितरत के कारण करते हैं। इस सर्वे में ज्यादातर मतदाता अपनी सोच इसलिए जाहिर नहीं करते, क्योंकि उन पर मनोवैज्ञानिक व सामाजिक दबाव होता है। इसके कारण, एग्जिट पोल के नतीजे चुनाव परिणामों से मेल नहीं खाते। राजनीतिक ध्रुवीकरण और मीडिया का प्रभाव भी एग्जिट पोल के नतीजों को प्रभावित कर सकता है। किसी खास विचारधारा का दबाव इनके निष्कर्षों को बदल सकता है। चूंकि एग्जिट पोल के नतीजे शेयर बाजार को भी प्रभावित करते हैं, इसलिए बाजार के अनुकूल इनके परिणामों को मोड़ने का अंदेशा भी बना रहता है। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद जो एग्जिट पोल आए थे, उनमें सत्ताधारी दल के रिकॉर्ड जीत का अनुमान लगाया गया था, जिससे बाजार में अचानक तेजी आ गई थी। मगर नतीजों के बाद तस्वीर क्या बनी, यह बताने की यहां कोई जरूरत नहीं है, लेकिन इन सबसे बाजार में निवेशकों के सैकड़ों करोड़ रुपये जरूर डूब गए, जिस पर विवाद भी काफी हुआ था।
एग्जिट पोल दरअसल अनुमानों पर आधारित होते हैं और हर बार ये अनुमान सही साबित हों, संभव नहीं है। एकाध बार ही ये सही साबित होते हैं, जिनको इस कदर प्रचारित किया जाता है, मानो एग्जिट पोल सटीक भविष्यवाणी देते हों। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव या छत्तीसगढ़ राज्य चुनाव का ही मामला देखें। दोनों राज्यों में जनादेश एग्जिट पोल को मुंह चिढ़ाते दिखे। ऐसे में, यही कहना सही होगा कि एग्जिट पोल पर विश्वास करना गलत है। इनकी मदद से सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे भी, यह समझने की बात है कि जिस निर्वाचन क्षेत्र में लाखों लोग अपने प्रतिनिधि का चुनाव कर रहे हों, वहां हजार-दो हजार मतदाताओं से सवाल-जवाब करके पूरे क्षेत्र का जनादेश कैसे आंका जा सकता है? इसलिए इनको प्रतिबंधित ही कर देना चाहिए। ऐसे सर्वेक्षणों का कोई औचित्य नहीं है, सिवा कुछ लोगों की जेबें भरने के।
मो. आदिल शमीम, टिप्पणीकार
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