चारों तरफ अब स्वच्छता की चर्चा
स्वच्छ भारत अभियान अब एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले चुका है। इसका संदेश लोगों के अंदर उत्तरदायित्व की एक अनुभूति जगा चुका है। अब जबकि लोग पूरे देश में स्वच्छता के कार्यों में सक्रिय रूप से सम्मिलित...
स्वच्छ भारत अभियान अब एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले चुका है। इसका संदेश लोगों के अंदर उत्तरदायित्व की एक अनुभूति जगा चुका है। अब जबकि लोग पूरे देश में स्वच्छता के कार्यों में सक्रिय रूप से सम्मिलित हो रहे हैं, तो महात्मा गांधी द्वारा देखा गया ‘स्वच्छ भारत’ का सपना साकार होने लगा है। पिछले 10 वर्षों से समाज के विभिन्न वर्गों ने आगे आकर स्वच्छता के इस जन अभियान में हिस्सा लिया है और अपना योगदान दिया है। सरकारी कर्मचारियों से लेकर जवानों तक, बॉलीवुड अभिनेताओं से लेकर खिलाड़ियों तक, उद्योगपतियों से लेकर आध्यात्मिक गुरुओं तक सभी ने इस महान काम के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। देश भर के लाखों लोग सरकारी विभागों द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता के कामों में आए दिन सम्मिलित हो रहे हैं। इस काम में एनजीओ और स्थानीय सामुदायिक केंद्र भी शामिल हैं। वे नाटक और संगीत के माध्यम से साफ-सफाई और स्वास्थ्य के गहरे संबंध के संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयासरत हैं। हालांकि, इस अभियान के मार्ग में कुछ रुकावटें भी हैं। सबसे बड़ी बाधा तो पान मसाला, गुटका, तंबाकू आदि के उपयोग के बाद की जाने वाली गंदगी है। इस गंदगी से हर गली-चौराहे अटे पड़े रहते हैं। वैसे, इस मामले में तमिलनाडु बधाई का पात्र है कि उसने गुटका, तंबाकू आदि की बिक्री को प्रतिबंधित कर रखा है, जबकि अन्य राज्य राजस्व का रोना रोते हैं। गुटकों का सेवन हिंदी पट्टी के राज्यों में ज्यादा है, जिनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, दिल्ली के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सरकार यदि भारत को विकसित देशों जैसा साफ-सुथरा बनाना चाहती है, तो वह तत्काल हिंदी पट्टी में गुटके-तंबाकू पर प्रतिबंध लगाए और इनको खाने वालों के विुरुद्ध दंडनीय कार्रवाई करे। इससे यह अभियान अधिक सफल साबित होगा।
युगल किशोर राही, टिप्पणीकार
एक जरूरी पहल
कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है और स्वस्थ मन ही स्वस्थ समाज का निर्माण करता है। मगर यह स्वस्थ शरीर बने कैसे? स्वच्छ भारत अभियान इसी सवाल का जवाब है। इस अभियान के तहत न सिर्फ ठोस कचरा के प्रबंधन को लेकर जागरूकता फैलाई जाती है, बल्कि खुले में शौच को भी हतोत्साहित किया गया है, जिसके कारण अब लोग साफ-सफाई को ज्यादा पसंद करने लगे हैं। इसी तरह, गंदगी को साफ करने की मानसिकता भी लोगों में दिखने लगी है, जिससे हमारा देश अब कहीं अधिक स्वच्छ दिखता है।
महिमा ठाकुर, टिप्पणीकार
अभियान अपेक्षित गति न पकड़ सका
दस साल पहले स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत जिस जोर-शोर से की गई थी, उस तरह यह उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका है। ऐसा नहीं है कि इस योजना का सैद्धांतिक पक्ष कमजोर है। देखा जाए, तो इस अभियान के पीछे की नीयत में कोई खोट नहीं है। खोट तो इसके व्यावहारिक पक्ष में है। यानी, इसको लागू करने वाले तंत्र ने इस अभियान को पूरी तरह सफल नहीं होने दिया। यकीन न हो, तो एक बार गांवों में घूम लीजिए। कई गांव खुले में शौच से मुक्त घोषित किए जा चुके हैं, यानी कागज पर ये ऐसे गांव हैं, जहां लोग अब खेतों में निवृत्त होने नहीं जाते, लेकिन हकीकत में वहां आज भी आपको ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिनके लिए घर से बाहर निवृत्त होना मजबूरी है। फिर, कई जगहों पर तो शौचालय बना दिए हैं, लेकिन इनके लिए जरूरी सुविधाएं बहाल नहीं की गई हैं। नतीजतन, ऐसे शौचालय महज शोभा बढ़ाने के काम आ रहे हैं, इनका कोई उपयोग नहीं करता।
कुछ ऐसा ही हाल साफ-सफाई और कचरा प्रबंधन का है। 2 अक्तूबर को तो सभी स्वच्छता को लेकर अपनी सक्रियता दिखाते हैं, लेकिन बाकी दिन इसकी शायद ही सुध ली जाती है। आप अपने आसपास ही देखिए। बड़े-बड़े शहरों में तो स्थानीय निकाय साफ-सफाई के कामों में लगे रहते हैं, लेकिन दूसरे या तीसरे दर्जे के शहरों और गांव-देहातों में, जहां स्थानीय निकाय बहुत मुस्तैद नहीं हैं, वहां कचरे में आग लगाने की परंपरा अब भी है। यह धुआं सांसों के जरिये हमारे शरीर का कितना नुकसान करता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। इसी तरह, नालों में भी गंदगी यूं ही बहती रहती है। उनकी सुध लेने को कोई तैयार नहीं होता। यही गंदगी बरसात के दिनों में जलभराव का कारण बनती है और उफनकर सड़कों पर आ जाती है, जिससे गुजरना पैदल चलने वालों के लिए नरक पार करने से कम कष्टदायक नहीं होता।
वास्तव में, स्वच्छ भारत अभियान तभी पूरी तरह सफल हो सकता है, जब देश का हरेक आदमी स्वच्छता की अहमियत समझे और इस काम में लगे नगर निगम या स्थानीय निकाय पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करें। सिर्फ एक दिन का स्वच्छता अभियान हमें ज्यादा राहत नहीं दे सकता। इसका फायदा तभी मिल सकता है, जब साफ-सफाई को हम अपने जीवन में उतार लें और अपनी दिनचर्या का इसे हिस्सा बनाएं। फिलहाल, ऐसा होता दिख नहीं रहा है, इसलिए स्वच्छ भारत अभियान भी अपेक्षित परिणाम से दूर नजर आ रहा है।
दीपक, टिप्पणीकार
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