नीतिगत अक्षमता की कीमत चुकाता बिहार

बाढ़ से उत्तर बिहार के करीब-करीब सभी जिले प्रभावित हैं। एक छोटा सा देश नीदरलैंड पानी का ऐसा प्रबंधन कर लेता है कि वहां बाढ़ बीते दिनों की बात बन जाती है, लेकिन चांद पर पहुंचने वाला भारत नदी की धारा..

Pankaj Tomar हिन्दुस्तान, Thu, 3 Oct 2024 10:57 PM
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नीतिगत अक्षमता की कीमत चुकाता बिहार

बाढ़ से उत्तर बिहार के करीब-करीब सभी जिले प्रभावित हैं। एक छोटा सा देश नीदरलैंड पानी का ऐसा प्रबंधन कर लेता है कि वहां बाढ़ बीते दिनों की बात बन जाती है, लेकिन चांद पर पहुंचने वाला भारत नदी की धारा तक नहीं मोड़ पा रहा। आखिर क्यों? बिहार देश के पिछड़े राज्यों में से एक है और हरेक वर्ष यह बाढ़ की चपेट में आकर उजड़ जाता है। इसे फिर से सुव्यवस्थित करने के लिए केंद्र से पैसा आता है। असली खेल इसी पैसे का है, क्योंकि इसका 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा ही सही मद में खर्च किया जाता है। शेष राशि का क्या होता है, यह समझना मुश्किल नहीं है। बिहार में कोई ऐसा दल नहीं, जिसको सचमुच बिहार से मतलब है। उसे सिर्फ पैसे से मतलब है। उसको जनता की याद तब आती है, जब चुनाव नजदीक आते हैं। चुनावों के वक्त सभी दलों के नेता बिहार और बिहारियों के लिए चिंतित नजर आएंगे, लेकिन बाद में वही दल मूकदर्शक बन जाते हैं। काश, आने वाले विधानसभा चुनाव में हमें यह सब याद रह पाए!
वीर आदित्य, टिप्पणीकार


गाद पर भी ध्यान नहीं
आखिरकार वही हुआ, जिसकी आशंका नदियों के जानकार बरसों से जता रहे थे। दरभंगा के कीरतपुर में भुभोल गांव के पास पश्चिमी तटबंध भी टूट गया। इससे दरभंगा के दो प्रखंड घनश्यामपुर और कीरतपुर में दर्जनों पंचायतों के गांव पानी में डूब गए। यह तबाही 2008 जैसी नहीं है, लेकिन 2004 में इस इलाके में जैसी बाढ़ आई थी, कुछ-कुछ वैसी ही तबाही लग रही है। इसकी वजह यह है कि यहां से पश्चिम में कमला नदी बह रही है और दक्षिण में कुशेश्वर स्थान झील। हालांकि, बड़ी खबर है कि कोसी के पानी का तटबंध पार कर जाना। ऐसा कोसी में शायद ही पहले हुआ होगा। इसका मतलब यह है कि कोसी के दोनों तटबंधों के बीच इतना गाद भर गया है कि नदी अब तटबंध को फलांग लगा रही है। 
कोसी नदी को बांधने के लिए हमने जो पिंजड़ा तैयार किया था, वह छोटा पड़ गया है। जाहिर है, अब सरकार तटबंध की ऊंचाई बढ़ाने की बात कहेगी। मगर क्या यह वाकई समाधान है? सरकार नदियों का इलाज तटबंध से करना चाहती है, मगर दिक्कत यह है कि तटबंध और बैराज ही असली मर्ज हैं। अभी भी वक्त है, सरकार तटबंध और बैराज जैसे विफल हो चुके उपायों पर करदाताओं का पैसा डुबोने के बदले गाद प्रबंधन पर फोकस करे। तटबंधों और बैराजों ने नदियों को गाद से भर दिया है। तभी नदी ओवरफ्लो होने लगी है।
पुष्यमित्र, पत्रकार

नेपाल पानी छोड़ेगा, तो यहां परेशानी होगी ही
बिहार की बाढ़ नेपाल की देन है। नेपाल में बादल मुसीबत बनकर बरसते हैं, जिससे वहां की नदियों में जल-प्रवाह बढ़ जाता है। यही पानी जब सीमा पार करके बिहार में आता है, तो यह गंडक, गंगा आदि तमाम नदियों का जल-स्तर बढ़ा देता है। नतीजतन, बिहार की एक बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में आ जाती है। इस बार भी एकाएक बाढ़ आई। इससे आधा बिहार ठप हो गया, लोग जहां-तहां फंस गए हैं। उनको बचाने का काम लगातार जारी है। यह काम भी सरकार के लोग ही कर रहे हैं। सरकारी बचावकर्मी पानी में उतरकर लोगों को बचाने में जुटे हैं।
बाढ़ के लिए पूरा दोष सरकार पर डालना गलत होगा। 1950 के दशक में भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच एक समझौते के तहत कोसी नदी परियोजना की शुरुआत हुई थी, जिसका मूल मकसद बाढ़ को नियंत्रित करना ही था। अगर सब कुछ योजना के अनुसार होता, तो 1960-70 के दशक में ही बिहार बाढ़ से मुक्त हो गया होता। हां, यह कह सकते हैं कि कुछ मोर्चों पर गलतियां हुईं और बाढ़ को अब तक नियंत्रित नहीं किया जा सका है, लेकिन इससे सरकार की मंशा को कठघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता। उसकी नीयत ठीक है। तभी तो ‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली यह नदी अब उस तरह से लोगों को जान-माल का नुकसान नहीं पहुंचा पाती। इस बार इसलिए हालत खराब हुई, क्योंकि नेपाल ने अप्रत्याशित मात्रा में पानी छोड़ा। वह रोजाना करीब दो लाख क्यूसेक पानी छोड़ता रहा। खबर यह भी है कि भीम नगर बैराज से उसने एक साथ करीब छह लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया। जब इतनी मात्रा में पानी का सैलाब नीचे के इलाकों में आएगा, तो तबाही लाएगा ही। यही हुआ है बिहार में। पानी का सैलाब आ गया। यहां तारीफ करनी होगी राज्य सरकार की कि उसने समय रहते बचाव के त्वरित उपाय किए, जिससे लोगों का तुलनात्मक रूप से कम नुकसान हुआ।
यह सही है कि बाढ़ हमेशा मुश्किल लेकर आती है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि प्राकृतिक आपदाओं पर इंसान का कोई वश नहीं चलता। हम सिर्फ उनसे बचने के उपाय कर सकते हैं। इस मामले में सरकार का काम पहले के मुकाबले अच्छा कहा जाएगा, क्योंकि इतने कम समय में उसने गांव-गांव तक जरूरी सूचनाएं पहुंचाई, अपने प्रशासन को सक्रिय किया, छुट्टियां रद्द करके सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को अपने कार्यक्षेत्र में मौजूद रहने का निर्देश दिया और राहत-बचाव के उपाय में जुट गई। इसलिए हर बात में सरकार को कोसना बंद कीजिए।
स्वाति, टिप्पणीकार 

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