गण और तंत्र का बेजोड़ संगम भारत
- कल 26 जनवरी, यानी गणतंत्र दिवस है। साल 1950 में इसी दिन संविधान लागू किया गया था। इस दिन कर्तव्य पथ पर भारत की आन-बान और शान का प्रदर्शन किया जाता है। यह वर्ष भारतीय गणतंत्र की हीरक जयंती का भी साल है और इन 75 वर्षों में भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं…
कल 26 जनवरी, यानी गणतंत्र दिवस है। साल 1950 में इसी दिन संविधान लागू किया गया था। इस दिन कर्तव्य पथ पर भारत की आन-बान और शान का प्रदर्शन किया जाता है। यह वर्ष भारतीय गणतंत्र की हीरक जयंती का भी साल है और इन 75 वर्षों में भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। आज भारतीयों ने अपने राष्ट्र को विश्व पटल पर प्राचीन समय की भांति फिर से चमकाना प्रारंभ कर दिया है। भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चिकित्सा विज्ञान से लेकर अभियांत्रिकी तक के सभी क्षेत्रों में यहां विश्वस्तरीय विकास हुआ है। कंप्यूटर, मोबाइल, ऑटोमोबाइल, रक्षा-सामग्री- सबमें भारत का विकास दुनिया भर के देशों को लुभा रहा है। यहां का ढांचागत विकास भी बहुत हुआ है। इन सबसे बढ़कर बात यह है कि भारत के लोगों में अपने ऊपर विश्वास जाग गया है कि वे पूरे विश्व का भला करने में सक्षम हैं। यह इसलिए भी हो सका है, क्योंकि अब गण और तंत्र के बीच की दूरी काफी सिमट गई है। हमारे नीति-नियंता प्रधान सेवक की तरह व्यवहार करते हैं और जनता के हित में सदैव तत्पर रहते हैं।
देखने में संविधान बेशक कुछ पन्नों की साधारण-सी पुस्तक जान पड़ती हो, किंतु है यह बड़े काम की। सांविधानिक मूल्यों पर चलकर ही हमने यह मुकाम हासिल किया है। आज दुनिया का हर देश भारत के साथ अच्छा रिश्ता बनाना चाहता है। ‘ग्लोबल साउथ’ की हम एक मुखर आवाज बन चुके हैं। घरेलू मोर्चों पर भी चीन अब हमें आंखें दिखाने से घबराने लगा है। यहां लोगों की आमदनी बढ़ गई है। शेयर बाजार नित नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने के लिए दूसरे देशों के लोग यहां आने लगे हैं। कहने का मतलब यह है कि जिस राष्ट्र की जनता के मनोभाव उत्कृष्ट हो जाते हैं, उस राष्ट्र को सर्वश्रेष्ठ होने में समय नहीं लगता और भारत ऐसा ही एक राष्ट्र बन चुका है।
यही वजह है कि पूरी दुनिया भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखती है। कोरोना काल में ही हमने टीका बनाया और उसका पूरी दुनिया में वितरण भी सुनिश्चित किया। जिन-जिन क्षेत्रों में मेधा, प्रतिभा और परिश्रम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है, उन-उन क्षेत्रों में भारतीयों को ही तवज्जो दी जाने लगी है, क्योंकि यहां के लोग प्रतिभा-संपन्न होते हैं। पूरी दुनिया में भारत के वैज्ञानिक, चिकित्सक, अभियंता और व्यवसायी अपना प्रभाव जमा रहे हैं। यह बदलते भारत का संकेत है। गणतंत्र दिवस इन उपलब्धियों का जश्न मनाने का दिन है।
दिनेश सिंह, चिकित्सक
यह हमारे आत्ममंथन का सही समय
गणतंत्र दिवस केवल हमारी प्रगति और उपलब्धियों का उत्सव नहीं, आत्ममंथन का अवसर भी होता है। हमें विचार करना चाहिए कि हमारी प्रगति कितनी समावेशी है? क्या विकास का लाभ देश के हर नागरिक तक पहुंच रहा है या यह कुछ विशेष वर्गों तक सीमित रह गया है? शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच गहराती खाई, बढ़ती आर्थिक असमानता और शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी आज भी हमारी तरक्की की राह में बाधा बनकर खड़ी है। हमें यह तय करना होगा कि विकास का प्रकाश समाज के हर कोने तक पहुंचे। भव्य परेड में अत्याधुनिक हथियारों और उपलब्धियों का प्रदर्शन तब तक अधूरा है, जब तक हरेक नागरिक को बुनियादी सुविधाएं और सम्मान का अधिकार नहीं मिलता। हमारा संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि समानता, न्याय और समावेश के पवित्र आदर्शों का प्रतिबिंब है, लेकिन विडंबना है कि इन आदर्शों को अपने जीवन और समाज में पूरी तरह अपनाया नहीं जा सका है। जाति, धर्म व लिंग के आधार पर होने वाला भेदभाव आज भी हमारे गणतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को चुनौती देता है। सामाजिक न्याय का सच्चा अर्थ तभी साकार होगा, जब सबको समान अवसर, समान अधिकार और सम्मान मिलेगा।
हमें यह समझना होगा कि अधिकारों का उपयोग करना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही जरूरी है कर्तव्यों का निर्वहन। हमें आत्ममंथन करना होगा कि क्या हम पर्यावरण की सुरक्षा, कानून का पालन और समाज की भलाई के प्रति उतने ही समर्पित हैं, जितना अपने अधिकारों के प्रति। गणतंत्र दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारा संविधान हमें जिन महान मूल्यों से सुसज्जित करता है, उनकी सार्थकता तभी होगी, जब हम उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बनाएंगे। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हमारा गणतंत्र ऐसा बने, जिस पर इसका हरेक नागरिक गर्व कर सके। एक ऐसा राष्ट्र, जहां समान अवसर, सम्मान और सुरक्षा हरेक व्यक्ति को प्राप्त हो।
इस गौरवशाली अवसर पर हमें गहराई से विचार करना चाहिए कि कैसे अपनी अद्भुत विरासत को संरक्षित रखते हुए उसे आधुनिक प्रगति के साथ जोड़ा जा सकता है। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारा विकास प्रकृति के साथ सामंजस्य मिलाकर हो, ताकि हमारी धरोहर और हमारे प्राकृतिक संसाधन भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें। आज भारत वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत पहचान बना रहा है। एक नागरिक के तौर पर हमें इस मजबूती को और सुदृढ़ बढ़ाने का संकल्प इस गणतंत्र दिवस पर लेना चाहिए।
आरके जैन ‘अरिजीत’, टिप्पणीकार
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