अमेरिका-भारत दोस्ती का नया अध्याय
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर के शामिल होने की खबर से भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर एक नई उम्मीद जगी है…
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर के शामिल होने की खबर से भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर एक नई उम्मीद जगी है। यह न्योता न केवल दोनों देशों के बीच बढ़ती मित्रता का प्रतीक है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गहरी दोस्ती की यादें भी ताजा करता है। नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के आपसी रिश्ते हमेशा से खास रहे हैं। ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम को संबोधित किया था, जिसमें दोनों नेताओं ने मंच साझा किया था। बाद में, जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आए, तब गुजरात में उनका भव्य स्वागत किया गया था। अहमदाबाद में आयोजित ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम ने दोनों नेताओं की दोस्ती को और मजबूत किया। इस दौरान दोनों नेताओं ने साबरमती आश्रम का दौरा भी किया था और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को वहां श्रद्धांजलि दी थी। सोमवार को एस जयशंकर का डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होना, इन ऐतिहासिक पलों की गवाही के साथ-साथ भारत-अमेरिका संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का संकेत है। ट्रंप का नया कार्यकाल भारत-अमेरिका के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को और गहरा करेगा। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की मित्रता ने यह साबित किया है कि दोनों देशों के संबंध केवल औपचारिकताओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आपसी विश्वास व सहयोग पर आधारित हैं। ट्रंप के इस नए कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में एक नई ऊर्जा और उत्साह देखने को मिल सकता है। यह पूरी दुनिया के लिए एक सकारात्मक संदेश है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की मित्रता ने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को और मजबूत किया है। इस नई शुरुआत के साथ यह रिश्ता और प्रगाढ़ होने की संभावना है।
अरविंद कुमार बिश्नोई, टिप्पणीकार
पुरानी दोस्ती
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती कोई छिपी हुई बात नहीं हैै। दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र के ये दोनों नेता खुलकर एक-दूसरे से मिलते हैं और एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते हैं। अब जबकि एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के सदर बन गए हैं, तो उम्मीद यही है कि मोदी-ट्रंप की जुगलबंदी नए रूप में हमारे सामने आएगी, जो न सिर्फ भारत के लिए अहम साबित होगी, बल्कि शेष दुनिया के लिए भी। अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र है, जबकि हम सबसे बड़े। अब विश्व में लोकतांत्रिक बयार को एक नई दिशा मिलेगी।
दीपक, टिप्पणीकार
नई दिल्ली उससे बहुत उम्मीदें न पाले
यह सवाल जायज है कि व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी से भारत-अमेरिका दोस्ती पर कितना असर पडे़गा? कूटनीति तो यही कहती है कि रिश्ते और दोस्ती तभी मजबूत और मधुर होते हैं, जब प्यार एकतरफा न हो और हाथ के साथ दिल भी मिलाए जाएं। ट्रंप के सत्ता संभालने से दोनों देशों के बीच कुछ नए फैसलों की उम्मीद जताई जा रही है, पर ये फैसले भारत की उम्मीदों पर कितना खरा उतरेंगे और ट्रंप का हमारे देश के प्रति प्रेम कितने दिनों तक बना रहेगा, यह सब कुछ अभी सवालों के घेरे में है, क्योंकि भारत को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की नीयत कुछ खास साफ नहीं रही है।
आज दुनिया की दो समस्याएं सबसे बड़ी हैं- पहली, आतंकवाद और दूसरी, जलवायु परिवर्तन। इन दोनों समस्याओं के समाधान के लिए भी अमेरिका, भारत के साथ खड़ा नहीं दिखता। आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का दोहरा रवैया तो सब जानते ही हैं, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से भागने का ठीकरा भारत पर मढ़कर एक तरह से उसने अपनी स्थिति साफ कर रखी है। जबकि, भारत इन दोनों समस्याओं के हल को लेकर संजीदा है और विश्व मंच पर अपनी आवाज मुखरता से बुलंद करता रहा है। यहां तक कि हमारे देश ने तो आतंकवाद के पालक पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख भी अपनाया है। अमेरिका की कथनी और करनी में जब इस तरह फर्क हो, तब रिश्ते भला मजबूत कैसे बनेंगे? एक तरफ, वह भारत के साथ संबंध मजबूत करने की बात कहता है, लेकिन दूसरी तरफ स्वार्थवश ऐसे फैसले लेने से भी पीछे नहीं हटता, जो भारत के हितों के खिलाफ होते हैं।
लगता तो यह भी है कि इससे पूर्व जब ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तब कानून व्यवस्था और न्यायालय आदि पर उन्होंने अपना पूरा दबदबा बना लिया था। शायद इसीलिए टैक्स हेराफेरी, मनी लॉ्ड्रिरंग और चुनाव में धोखाधड़ी के जो कथित आरोप उन पर लगे थे, उनकी जांच नहीं हो पाई और जब वह चुनाव हारे, तो उन्हें अपने ऊपर लगे आरोपों की जांच और सजा का डर सताने लगा, जिसके कारण अपने समर्थकों को भड़काकर उन्होंने देश का माहौल खराब करने का प्रयास भी किया। कैपिटल हिल में हिंसा के बावजूद वह इस बार चुनाव जीत तो गए हैं, लेकिन महज इसी से यह उम्मीद करना गलत होगा कि वह विश्व की भलाई के लिए प्रयत्नशील रहेंगे। वह अमेरिका के हितों को ही आगे बढ़ाएंगे, फिर चाहे इसके लिए किसी अन्य देश की बलि क्यों न लेनी पड़ जाए। हमें जैसे को तैसा की तरह काम करना होगा।
राजेश कुमार चौहान, टिप्पणीकार
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