भारत को बेपटरी करने की गहरी साजिश
- फिर एक ट्रेन हादसे का शिकार हो गई। क्या एक के बाद दूसरी रेल दुर्घटनाएं एक बड़े प्रयोग का हिस्सा हैं? मेरा मानना है कि इस पर अब सरकार को कोसने की जरूरत नहीं, क्योंकि रेल दुर्घटनाएं हो नहीं रहीं, बल्कि साजिशन कारवाई जा रही…
फिर एक ट्रेन हादसे का शिकार हो गई। क्या एक के बाद दूसरी रेल दुर्घटनाएं एक बड़े प्रयोग का हिस्सा हैं? मेरा मानना है कि इस पर अब सरकार को कोसने की जरूरत नहीं, क्योंकि रेल दुर्घटनाएं हो नहीं रहीं, बल्कि साजिशन कारवाई जा रही हैं। जाहिर सी बात है, यह प्रयोग केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए हो रहा है। लगता तो यही है कि विदेशी जमीन पर बैठे कुछ लोग भारत में अशांति फैलाने के लिए ऐसा करवा रहे हैं। इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में भारतीय रेल में जबर्दस्त काम हुआ है। इसके विस्तार और आधुनिकीकरण को भारत विरोधी ताकतें पचा नहीं पा रही हैं। यही कारण है कि कुछ दिग्भ्रमित लोगों को प्रलोभन देकर वे भारतीय रेलवे को निशाना बनवा रही हैं। इससे सावधान रहने की जरूरत है।
अनिल कुमार चौधरी, टिप्पणीकार
मजहबी जंग
पाकिस्तान में बैठे एक आतंकी का वीडियो पिछले दिनों वायरल हुआ था, जिसमें उसने भारत में मौजूद अपने स्लीपर सेल से कहा था कि वे भारतीय रेलों, ईंधन पाइपलाइनों, पुलिस आदि को निशाना बनाते हुए फिदायीन जंग छेड़ें। क्या पिछले कुछ दिनों में बढ़े रेल हादसे की वजह यही तो नहीं? इसका खुलासा तो हमारी जांच एजेंसियां ही करेंगी, लेकिन जिस तरह से पटरियों पर आपत्तिजनक चीजें बरामद हो रही हैं, वे बताती हैं कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है। लगता यही है कि भारत में मौजूद स्लीपर सेल के लोगों ने अपना काम करना प्रारंभ कर दिया है। इसे समझने के लिए यह खबर देखिए- राजस्थान में वंदे भारत ट्रेन को बेपटरी करने के लिए सीमेंट का बड़ा सा ब्लॉक पटरी पर रखा गया था। इसके अगले दिन इससे भी बड़े दो ब्लॉक पाए गए। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में पटरियों पर लोहा, सिलेंडर आदि बरामद हुए थे। ऐसी और भी घटनाएं घटी हैं। भारतीयों को इन दुष्प्रवृत्तियों के खिलाफ सावधान रहना होगा। यह विचार करना ही चाहिए कि भारत में वे कौन लोग हैं, जो पड़ोसी देश के अपने आकाओं के इशारे पर भारतीयों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं? ऐसे लोग भूल जाते हैं कि इस रेल से वे खुद या उनके परिजन भी सफर करते हैं। अगर वे अपनी हरकतों से नहीं बाज आए, तो मुमकिन है कि जो गड्ढा वे दूसरों के लिए खोद रहे हैं, उसमें खुद भी एक दिन गिरेंगे। आम लोगों के जीवन को जोखिम में डालने वाले ऐसे लोगों के प्रति कोई ढील न बरती जाए। इनका वही इलाज है, जो हमारे सुरक्षा जवान करते भी हैं।
दीप्ति, टिप्पणीकार
तंत्र की नाकामी से बढ़ते जा रहे रेल हादसे
हाल के दिनों में रेल दुर्घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन आत्म-आलोचना के बजाय हमारा तंत्र इसे आतंकी साजिश बताने का प्रयास कर रहा है, जबकि असली समस्या है, रेलवे का लचर प्रबंधन और यात्री सुविधाओं की अनदेखी। साल 2014 से 2019 के बीच 2,000 से अधिक रेल हादसे हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर ट्रेन के पटरी से उतरने और मानवीय त्रुटियों के कारण हुए। ऐसे हादसे भारतीय रेलवे की सुरक्षा और रख-रखाव की गंभीर कमी को उजागर करते हैं। आज आलम यह है कि कई हजार ट्रेनें बंद हैं, जिनमें शटल ट्रेनें, पैसेंजर ट्रेनें और सामान्य एक्सप्रेस ट्रेनें शामिल हैं। ये ट्रेनें कभी आम जनता के लिए सस्ती और सुविधाजनक यात्रा का साधन थीं। आज जो लंबी दूरी की सुपरफास्ट ट्रेनें चल रही हैं, उनमें जनरल डिब्बों की संख्या कम कर दी गई है। नतीजतन, यात्री अब ठसाठस डिब्बों में खड़े होकर सफर करने को मजबूर हैं, जिससे सुरक्षा की चुनौतियां पैदा होती हैं।
यही हाल सुरक्षा का भी है। चलती ट्रेनों में अपराध बढ़े हैं। ट्रेनों में चोरी, ठगी और यहां तक कि हत्याएं भी होने लगी हैं। इसकी वजह है कि सुरक्षा में भारी कमी। रेलवे सुरक्षा बल और राजकीय रेलवे पुलिस, दोनों में हजारों पद रिक्त हैं। 2023 में तो रेलवे सुरक्षा बल में 9,000 से अधिक पद खाली थे। ऐसे में, सुरक्षा भला कैसे मजबूत होगी? सुरक्षा के अलावा, ट्रेनों की तकनीकी समस्याएं और रखरखाव की कमी से भी दुर्घटनाएं हो रही हैं। एक ही ट्रैक पर आमने-सामने आ जाने वाली घटनाएं, कपलिंग का टूटना और पटरियों का उखड़ना मानो आम बात है। रखरखाव के बजट में भारी कटौती ने पटरियों, ओवरहेड तारों और पुराने डिब्बों की मरम्मती के कामों को मुश्किल बना दिया है, जिससे यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ होता है। दिक्कत यह भी है कि रेलवे का बड़ा बजट वंदे भारत, राजधानी, शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनों पर खर्च किया जाता है। अगर बजट का समान बंटवारा हो, तो ट्रेनों की सुरक्षा कहीं अधिक सुनिश्चित की जा सकती है।
इस तर्क को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए रेल कर्मचारियों को हादसों के नाम पर बदनाम किया जा रहा है! रेलवे का तेजी से निजीकरण हो भी रहा है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों का रेलवे के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दखल बढ़ गया है। इसे बर्बाद होने से बचाना हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए। अगर हमारा तंत्र गंभीरता दिखाए, तो हम रेल हादसों को काफी हद तक रोक सकते हैं, लेकिन यहां तो ऊपर से नीचे तक हम्माम में सभी नंगे हैं।
धर्मेंद्र आजाद, टिप्पणीकार
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