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रिहायशी इलाकों में प्रतिबंधित हो पतंग उड़ाना

  • कई बार समाचारपत्रों में यह पढ़ा कि चीन से आए मांझे से बाइक सवार का गला कट गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। यह खबर भी बार-बार दिखती रही है कि पतंग उड़ाने में चीन के धागे के प्रयोग से हर साल सैकड़ों पक्षी दम तोड़ देते हैं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानTue, 14 Jan 2025 11:25 PM
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कई बार समाचारपत्रों में यह पढ़ा कि चीन से आए मांझे से बाइक सवार का गला कट गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। यह खबर भी बार-बार दिखती रही है कि पतंग उड़ाने में चीन के धागे के प्रयोग से हर साल सैकड़ों पक्षी दम तोड़ देते हैं। इन दोनों खबरों के निहितार्थ मुझे तब समझ में आए, जब खुद मेरा इनसे वास्ता पड़ा।

दरअसल, कुछ दिनों पूर्व सुबह जब मेरी आंख खुली, तो बालकनी में बीसियों कौए कांव-कांव कर रहे थे। बालकनी में जाकर देखा, तो पाया कि बगल में खड़े सिमर (सेमल) के पेड़ पर एक कौआ मेरी छत की तरफ एक मांझे में बुरी तरह फंसा है और उल्टा लटका हुआ है। उसके ईद-गिर्द तमाम कौए शोर मचा रहे थे। मैं छत पर गया, पहले एक डंडे से दूसरे कौओं को भगाया और फिर हाथ से धागे को तोड़ने का प्रयास करने लगा, लेकिन ऐसा करते हुए मुझे लगा कि मेरी उंगली कट जाएगी। फिर मैं कमरे में आया और चाकू ले गया। चाकू से ही वह धागा कट सका, हालांकि मांझा कौए के पैर से पूरी तरह नहीं निकल पाया था, मगर वह उड़ गया। मुझे लगा कि कहीं न कहीं यह फिर फंसेगा। बहरहाल, दूसरी घटना मेरे साथ ही घटी। मैं ऑफिस से घर लौट रहा था। बाइक पर था। बमुश्किल 20-30 की स्पीड रही होगी। आंध्र भवन के आगे वाली सड़क पर अचानक सामने से गर्दन पर एक तेज धागा महसूस हुआ। मैंने तुरंत ब्रेक लगाया। चूंकि बाइक बहुत स्लो थी, इसलिए ब्रेक लगाते ही रुक गई। मैंने बाइक पीछे किया और हाथ से धागे को छुआ, तो महसूस हुआ कि जैसे ब्लेड को छू रहा हूं। पूरा धागा सड़क के इस पार से उस पार तक जा रहा था। तभी पीछे से एक एसयूवी आई और उससे फंसकर मांझा आगे चला गया। चूंकि मुझे पता था कि पीछे से कोई गाड़ी यदि आई, तो इस धागे को खींच ले जाएगी, इसलिए हल्के हाथों से मैंने उसे पकड़कर रखा था, अन्यथा जाते-जाते कम से कम मेरा हाथ तो काट ही देता।

मुझे नहीं पता कि जिन दो मौकों पर मेरा सामना पतंग के मांझे से हुआ, वे लोकल थे या चीनी, लेकिन कई दुर्घटनाओं के सामने आने के बाद सरकारों ने उचित ही चीनी मांझे पर रोक लगा रखी है। फिर भी, जिस तरह के मांझे बाजार में मिलते हैं, वे खतरनाक हैं। मुझे तो यही लगता है कि रिहायशी इलाकों और सड़कों के आस-पास पतंग उड़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। हालांकि, यह प्रतिबंध भी तभी प्रभावी हो सकेगा, जब लोगों का इसे समर्थन मिले।

कुणाल भास्कर, टिप्पणीकार

 

समस्या पतंगबाजी नहीं, सिर्फ चीनी धागा

पतंगबाजी कोई आज का शगल नहीं है। पुराने दिनों से हम पतंगबाजी करते रहे हैं। यह हमारी एकरस दुनिया को विविध रंगों से भरती है। यही कारण है कि छोटे हों या बड़े, सभी पतंग देखते ही मचल उठते हैं। हालांकि, अगर अब इसके विरोध में आवाज उठने लगी है, तो इसकी एकमात्र वजह चीनी धागा है। यह धागा इतना बारीक और तेज होता है कि झटके से हाथ काट सकता है। चलती गाड़ी में अगर यह सवार के गले में उलझ जाए, तो उसे लहूलुहान कर सकता है या उसकी जान भी ले सकता है। जब इस धागे से दुर्घटनाएं बढ़ने लगीं, तो इस पर उचित ही रोक लगा दी गई। मगर अपने देश में तो लोग तब तक नहीं संभलते, जब तक कि खुद उनके साथ कोई हादसा न हो जाए। जिन घरों में चीनी मांझे के पीड़ित हैं, वे निश्चित तौर पर इससे दूरी बरत रहे होंगे, लेकिन ज्यादातर लोग इसे ‘इंजॉय’ करते हैं और दूसरों की पतंग काटने का एक निश्चित हथियार मानते हैं। साफ है, हमने इस धागे पर प्रतिबंध लगाकर एक मामूली कदम उठाया है। अब आम लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाना होगा। घर-घर जाकर लोगों, विशेषकर बच्चों को समझाना होगा, तभी इसकी बिक्री रुक सकेगी। सिर्फ चीनी धागे के कारण पतंगबाजी का मजा हम बेमजा नहीं कर सकते।

दीपक, टिप्पणीकार

 

तंत्र बने चौकन्ना

लगभग हर साल की यही हालत है। फैक्टरियों से प्लास्टिक वाला धागा मकर संक्रांति पर बाहर निकलता है और जनता तक धीरे-धीरे पहुंच जाता है। प्रशासन त्योहार से ठीक चार-पांच दिन पहले बाजार में छापेमारी करता है, दो-चार चरखी पकड़कर अपनी वाहवाही लूटता है और फिर चैन की नींद सो जाता है। नतीजतन, हर साल 14 जनवरी तक लगभग हर घर की छत पर प्लास्टिक मांझे की चरखी पहुंच जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। प्रशासन अपनी तरफ से कोशिश करने का दिखावा जरूर करता है, लेकिन उसकी कोशिश सिर्फ छोटे दुकानदारों तक सीमित रहती है। इस धागे की रोकथाम का कानून हवा-हवाई ही रहता है। सवाल है कि यह धागा जब इतना ही जानलेवा है, तो इसकी फैक्टरियों पर छापे क्यों नही मारे जाते? प्रशासन की नजरों के सामने से इस धागे को मकर संक्रांति से ठीक पहले हमारे शहरों में भारी मात्रा में प्रवेश कराया जाता है और हमारे तंत्र को इसका पता ही नहीं चलता। जरूरत इस सिस्टम को ही ठीक करने की है।

पंकज पारीक, टिप्पणीकार

 

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