नीतिगत सुधारों को जमीन पर उतारिए
- यह सही है कि विकासशील भारत में सुधार के काम लगातार हो रहे हैं। नीतिगत बदलावों और प्रशासनिक सुधारों के सहारे सरकार आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सशक्तीकरण की दिशा में प्रयासरत है। मगर बड़ा सवाल यह है कि ये सुधार कितने प्रभावी…
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यह सही है कि विकासशील भारत में सुधार के काम लगातार हो रहे हैं। नीतिगत बदलावों और प्रशासनिक सुधारों के सहारे सरकार आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सशक्तीकरण की दिशा में प्रयासरत है। मगर बड़ा सवाल यह है कि ये सुधार कितने प्रभावी हैं और क्या ये वास्तव में आम जनता के जीवन को सरल और बेहतर बना पा रहे हैं? आज की नीतियां डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी पहलों से प्रेरित हैं, जो आर्थिक विकास को गति देने के लिए बनाई गई हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यही बयान करती है कि सरकार ने उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं तो बनाईं, लेकिन लघु एवं मध्यम उद्योगों को वित्तीय सहायता प्राप्त करने में अब भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह, बैंक ऋण योजनाएं तो मौजूद हैं, लेकिन छोटे व्यापारियों को आसानी से कर्ज नहीं मिलता। नोएडा, कानपुर, वाराणसी जैसे शहरों में छोटे उद्योगपति अब भी जटिल प्रक्रियाओं से जूझ रहे हैं।
डिजिटलीकरण की बात करें, तो यह अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। डिजिटल भुगतान प्रणाली के जरिये भ्रष्टाचार पर प्रभावी लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी सफलता अब भी संदिग्ध है। प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर जैसे इलाकों में इंटरनेट की सीमित पहुंच और तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण आम नागरिक अब भी नकदी लेन-देन पर निर्भर हैं। इससे डिजिटल क्रांति की गति धीमी हो जाती है। रोजगार के क्षेत्र में भी सुधारों की आवश्यकता है। सरकार ने कौशल विकास योजनाएं चलाई हैं, लेकिन इनके तहत प्रशिक्षित युवाओं को उद्योगों में उचित अवसर नहीं मिल पा रहा। कौशल विकास तभी सार्थक होगा, जब उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच कारगर समन्वय कायम होगा। प्रयागराज और लखनऊ जैसे शहरों में कई छात्र प्रशिक्षित तो हो रहे हैं, लेकिन नौकरी न मिलने के कारण वे मजबूरी में पारंपरिक या असंगठित क्षेत्र में काम करने को बाध्य हैं।
कृषि सुधारों की दिशा में भी नई नीतियां लागू की गई हैं, लेकिन कई चुनौतियां किसानों तक इनका लाभ पहुंचने नहीं देतीं। उर्वरकों की बढ़ती कीमतें, जल संकट और विपणन की समस्याएं किसानों के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। साफ है, सुधारों की गति बनी रहनी चाहिए, लेकिन इन्हें केवल नीति-निर्माण तक सीमित न रखकर जमीनी हकीकत के अनुरूप लागू किया जाना चाहिए। जब तक आम नागरिक को इनका सीधा लाभ नहीं मिलेगा, तब तक सुधारों की शृंखला सिर्फ सरकारी आंकड़ों तक सिमटकर रह जाएगी।
अवनीश कुमार गुप्ता, टिप्पणीकार
सरकार अपनी योजना अमल में ला रही
सुधारों को जमीन पर उतारने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने काफी कुछ किया है, लेकिन कुछ बड़े सुधारों को लेकर फिलहाल वह इसलिए उदासीन दिख रही है, क्योंकि इसके लिए उसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए, जो एनडीए के पास नहीं है। देखा जाए, तो एक तरह से यह अच्छा ही है। ऐसा इसलिए, क्योंकि किसी भी बड़े सुधार को संसद से पास करवाने और फिर उसे लागू करवाने में सरकार का बहुत समय निकल जाता है, उसका ध्यान भी बंट जाता है। इतना ही नहीं, सुधारों को लागू करवाने के लिए सरकार को कुछ हिंसक और भ्रष्ट तत्वों की हरकतों को नजरंदाज भी करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, जीएसटी, अनुच्छेद 370, सीएए, कृषि सुधार कानून, बैंकिंग सुधार आदि कामों में कई माह-वर्ष लग गए। एकाध मामलों में तो सरकार को अपने कदम भी पीछे खींचने पड़े हैं। इसका कारण यही है कि विपक्षी दल ऐसे सुधारों का विरोध करते हैं, क्योंकि बदलाव से व्यवस्था सुधर जाएगी, जिससे उनको वोट का नुकसान हो सकता है। फिर, वे पुरानी व्यवस्था के अभ्यस्त भी हैं, जिनसे उनको फायदा मिलता है। वैसे, देखा जाए, तो भारतीय जनमानस भी सुधारों को स्वीकार करने में वक्त लेता है। आम लोग भी उन क्षेत्रों में शायद ही सुधार चाहते हैं, जहां उनका आधिपत्य है। जीएसटी इसका बड़ा उदाहरण है। उद्यमी वर्ग इसके विरोध में था, क्योंकि पुराने मॉडल में टैक्स में चोरी आसान थी। मगर सरकार ने सख्ती दिखाई, तो जीएसटी लागू हो गया। इसी तरह, कुछ तत्व सुधारों को रोकने के लिए हिंसा का सहारा भी लेते हैं, जैसे हमने कृषि सुधार कानूनों के संदर्भ में देखा। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद तो कई दलों के नेताओं ने इसे फिर से लागू करने संबंधी बयान भी दिए।
अत: केंद्र सरकार ने यह समझ लिया है कि पिछले दस वर्षों में किए गए सुधारों को और सुदृढ़ करो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकेत भी दिया है और कहा है कि आने वाले वर्षों में, पिछले 10 वर्षों में हमने जो किया है, उसकी गति बढ़ाएंगे और उसका विस्तार करेंगे। इनमें प्रमुख हैं- निर्धनता के खिलाफ निर्णायक लड़ाई (अर्थात गरीबी का पूर्ण उन्मूलन); सार्वजनिक परिवहन को गंभीरता से आगे बढ़ाना; फल व सब्जी उत्पाद की भंडारण व्यवस्था को बढ़ावा देना; भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर कठोर से कठोर कार्रवाई; ईको-सिस्टम की साजिश का जवाब उन्हीं की भाषा में देना आदि। एक तरह से यह अच्छा ही है कि मोदी सरकार अपना फोकस पुराने सुधारों को लागू करने पर केंद्रित करने को बाध्य हुई है। इससे देश का भला होगा।
अमित सिंघल, टिप्पणीकार
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