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बदले नीति

देश में आए दिन पेट्रोल-डीजल की खपत बढ़ रही है। जाहिर सी बात है कि जब खपत में वृद्धि होगी, तो इनकी कीमतों में भी उछाल आएगा ही। इससे आमजन की परेशानी बढ़ गई है। इस स्थिति से निजात पाने के लिए अक्षय ऊर्जा...

Neelesh Singh हिन्दुस्तान, Sun, 20 Feb 2022 09:12 PM
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बदले नीति

देश में आए दिन पेट्रोल-डीजल की खपत बढ़ रही है। जाहिर सी बात है कि जब खपत में वृद्धि होगी, तो इनकी कीमतों में भी उछाल आएगा ही। इससे आमजन की परेशानी बढ़ गई है। इस स्थिति से निजात पाने के लिए अक्षय ऊर्जा या इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ हमें बढ़ना चाहिए। चीन, जापान जैसे देश तो इस मामले में हमसे खूब आगे हैं। इसलिए, हमें भी उनकी तरह काम करना होगा। खबर तो यह भी है कि चीन ने सौर ऊर्जा से चलने वाले ऐसे वाहन बनाए हैं, जो धूप न रहने पर भी काम करेगा। अगर हम भी इस तरह की तकनीक विकसित कर सकें, तो पेट्रोल-डीजल पर हमारी निर्भरता काफी घट जाएगी। अच्छी बात है कि हमारी सरकार इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दे रही है। इन गाड़ियों को अधिक समर्थन देने के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा से चलने वाली गाड़ियों की तकनीक भी हमें हासिल करनी होगी। इस कदम का देश और समाज पर दूरगामी असर पड़ेगा।
राहुल उपाध्याय, बलिया

बैंकों की जिम्मेदारी
कोई भी आम इंसान बैंक से कोई कर्ज लेता है, तो उसको कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। बैंक न सिर्फ सभी दस्तावेजों की जांच करता है, बल्कि थोड़ी सी भी दिक्कत होने पर वह कर्ज देने से इनकार कर देता है। इन औपचारिकताओं में काफी समय भी लगता है। मगर बैंक घोटाले की जो सूचना अब सामने आ रही है, उससे यही लगता है कि बड़े स्तर पर इतनी जांच-पड़ताल नहीं होती और बड़ी आसानी से काफी ज्यादा कर्ज मिल जाता है। अगर ऐसा नहीं होता, तो कोई कंपनी 23 हजार करोड़ रुपये की धोखाधड़ी नहीं कर पाती। जिन 28 बैंकों में यह घपला किया गया है, निश्चय ही उनमें से कुछ दिवालिया घोषित हो सकते हैं। साफ है, बैंक घोटाले आम जनता को काफी प्रभावित करते हैं। अब जरूरत इस बात की है कि इन रकमों की वसूली किस तरह हो? करे कोई और भरे कोई जैसी मानसिकता के साथ बैंक काम नहीं कर सकते। उनको अपनी गलती का एहसास होना चाहिए।
विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली

खुशी या मातम
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक मांगलिक कार्यक्रम दर्दनाक हादसे में बदल गया। कुएं में गिरने से 13 लोगों की मौत हो गई। घटना का मंजर इतना दर्दनाक था कि देखने-सुनने वालों की रूह कांप गई। निश्चय ही, खतरनाक बंद कुएं, बावड़ियां, खुले बोरिंग होल, ड्रेनेज चेंबर, जर्जर मकान-पुलिया, निर्माण कार्यों के लिए खोदे गए गड्ढे आदि समय रहते सुधार लिए जाएं, तो अनहोनी को टाला जा सकता है। अगर पंचायत, जनपद, नगर पालिका व नगर निगम के साथ ही स्थानीय प्रशासन सतर्क रहें और समय रहते सभी तरह के मरम्मत कर लें, तो होने वाली घटनाओं से लोगों को बचाया जा सकता है। क्या स्थानीय अधिकारियों से यह उम्मीद गलत है कि वे लोगों की जिंदगियों की रक्षा करेंगे?
शकुंतला महेश नेनावा
इंदौर, मध्य प्रदेश


वैचारिक प्रदूषण
इस बार के चुनाव नेताओं के बिगड़े बोल के कारण चर्चा में हैं। चुनावी रैलियों अथवा कार्यक्रमों में छोटी-बड़ी, सभी पार्टियों के नेता एक-दूसरे पर जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। उनको इस बात का तनिक भी ध्यान नहीं कि उनके कहे शब्द जनता को भी परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। दुख और हैरानी इस बात की है कि यह वैचारिक प्रदूषण चुनावी रैलियों का हथियार बनता जा रहा है। लोकतंत्र में साफ-सुथरे चुनाव की दुहाई देने वाले नेता यह क्यों भूल जाते हैं कि विपक्ष पर कटाक्ष व्यंग्य के माध्यम से या भाषा की शालीनता के साथ हो, तो ज्यादा अच्छा है। भाषा की मर्यादा का उल्लंघन लोकतंत्र के इस उत्सव की प्रतिष्ठा को धूमिल करता है।
गंगा सिंह रावत, हल्द्वानी
 

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