घोटालों की प्रतिस्पर्धा
विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी द्वारा किए गए बैंक घोटालों से देश अभी संभल ही रहा था कि एबीजी शिपयार्ड कंपनी द्वारा करीब 23 हजार करोड़ रुपये के बैंक घोटाले की खबर सामने आई है, जिसने सभी को चौंका...
विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी द्वारा किए गए बैंक घोटालों से देश अभी संभल ही रहा था कि एबीजी शिपयार्ड कंपनी द्वारा करीब 23 हजार करोड़ रुपये के बैंक घोटाले की खबर सामने आई है, जिसने सभी को चौंका दिया। इससे ऐसा लगता है, जैसे देश में बैंक घोटालों की प्रतिस्पद्र्धा चल रही है, क्योंकि हर धोखाधड़ी को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया जाता है। यह तो स्पष्ट है कि कई वर्षों से किया जा रहा हजारों-लाखों रुपये का गबन ही आज हजारों-करोड़ों रुपये का घपला बन गया है, जो बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। असल में, घोटालेबाज आमतौर पर रसूखदार होते हैं, जिनकी बैंक अधिकारियों से सांठ-गांठ होती है। बैंककर्मी कुछ रुपयों के लालच में दस्तावेजों की पूरी छानबीन किए बिना उनके कर्ज पास कर देते हैं। फिर, लोन वापसी का तकादा न किए जाने के कारण इनके हौसले बुलंद रहते हैं। घोटाले की जांच भी धीमी गति से होती है। ऐसे में, जरूरी है कि अपराधियों पर नकेल कसी जाए। इस तरह के घोटाले आम लोगों में तंत्र के प्रति अविश्वास पैदा करते हैं।
विभा गुप्ता, बेंगलुरु
आपसी तनाव क्यों
पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में हर वर्ग के लोग अपनी पसंद के उम्मीदवारों का चुनाव कर रहे हैं। लेकिन दिखने में यह भी आता है कि जहां-तहां चुनावी बहस गरम हो जाती है और आम लोग आपस में ही उलझ जाते हैं। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि हम चाहे जिस किसी पार्टी के समर्थक हों, आपसी भाईचारा न बिगड़ने पाए। राजनीतिक पसंद के कारण आपस में वाद-विवाद से बचना चाहिए, क्योंकि आपसी भाईचारा देश की शांति-व्यवस्था को मजबूत करता है। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन हमें मिलकर रहना है। यह समझ से परे है कि राजनीतिक पार्टियों के लिए हम आपसी सौहार्द को खराब करें। चुनावी माहौल में जातिगत व क्षेत्रीय दुर्भावना से दूर रहना ही श्रेयस्कर है, तभी लोकतंत्र के उत्सव का हम आनंद ले सकेंगे।
शिवानंद सिंह, मेरठ
घटे महंगाई
देश में बढ़ती महंगाई को थामने की जरूरत है। सरकारें इस तरह लोगों को असहाय नहीं छोड़ सकतीं। महंगाई ऐसी बीमारी है, जो पूरे देश को निगल सकती है। अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों में भले ही महंगाई की तारीफ की जाती हो, लेकिन वास्तविक जीवन में जब हाथों को काम न मिले, तो महंगाई खूब अखरती है। इसलिए मौजूदा जरूरत न सिर्फ बढ़ती कीमतों को स्थिर करने की है, बल्कि बेरोजगारी दर को भी कम करने की है। इसके लिए जरूरी है कि व्यापक तौर पर नए रोजगारों का सृजन हो। लोगों की जरूरतें पूरी होनी ही चाहिए, और यह जिम्मेदारी सरकारों की है।
समराज चौहान, असम
घर-घर मदद
दिल्ली के विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) ने राष्ट्रीय राजधानी के 98 गांवों को गोद लिया है, ताकि वहां के घरों की दहलीज तक न्याय पहुंच सके। इस अभियान में दिल्ली विश्वविद्यालय और गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के कानून के छात्र भी शामिल होंगे। अभियान के तहत लोगों को नि:शुल्क कानूनी मदद मुहैया कराई जाएगी और मौलिक अधिकारों के प्रति उनको जागरूक किया जाएगा। साफ है, यह एक अनूठी मुहिम है, जो संभवत: नजीर बन सकती है। यह प्रयास न सिर्फ अन्याय के खिलाफ अदालत पहुंचने में असमर्थ लोगों को कानूनी संबल देगा, बल्कि न्याय की बाट जोह रहे लोगों की भी कानूनी मदद करेगा। ऐसे ही अनुकरणीय प्रयासों से यदि अदालतों में बढ़ते मुकदमों के बोझ भी घटाए जा सकें, तो काफी अच्छा होगा। हर जरूरतमंद को न्याय मिलना ही चाहिए।
विकास पंडित, बड़वानी
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