बिगड़ता माहौल
सभी नेता यही कहते हैं कि इस देश की व्यवस्था संविधान के मुताबिक चलेगी। मगर चुनाव-दर-चुनाव धर्म, जाति को लेकर या एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों के जरिये माहौल खराब किया जा रहा है। नेताओं के...
सभी नेता यही कहते हैं कि इस देश की व्यवस्था संविधान के मुताबिक चलेगी। मगर चुनाव-दर-चुनाव धर्म, जाति को लेकर या एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों के जरिये माहौल खराब किया जा रहा है। नेताओं के भाषण भी अभिव्यक्ति की आजादी के तहत आते हैं, मगर उन्हें समझना होगा कि यह आजादी कुछ प्रतिबंधों के साथ मिली होती है। आखिर वे अपने अधिकारों का सही ढंग से इस्तेमाल क्यों नहीं करते? अगर ऐसा किया जाता, तो शायद माहौल आज इतना विषैला नहीं होता। चुनाव के बाद किसी न किसी दल की सरकार बनेगी ही, और नेताओं को यह महारत हासिल है कि वे चुनावी कटुता तो जल्द भुला देते हैं। मगर चुनावी बहस से जो संस्कृति पनप रही है, वह आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। लोकतंत्र लोगों को सभ्य-सुसंस्कृत बनाने का जरिया है, न कि असभ्य बनाने का।
मुकेश कुमार मनन, पटना
संजीदा हो सरकार
उत्तराखंड में लोकतंत्र का महापर्व संपन्न हो गया। सभी प्रत्याशियों का सियासी भाग्य अब ईवीएम में बंद हो चुका है, जिसका खुलासा 10 मार्च को होगा। इस बार चुनावी समर में आम आदमी पार्टी के आने से मुकाबला त्रिकोणीय जान पड़ता है। खैर, कौन-सी पार्टी यहां सरकार बनाएगी, इसका पता तो अगले महीने चलेगा, लेकिन उत्तराखंड मूलत: पहाड़ी राज्य है और इसकी समस्याएं मैदानी इलाकों से कहीं ज्यादा गंभीर हैं। इसलिए, जिस पार्टी की भी सरकार बने, वह यहां की बुनियादी समस्याओं को दूर करने के प्रति संजीदगी जरूर दिखाए। यहां की मुख्य समस्याएं सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य व पलायन हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाली सरकार अपने घोषणापत्र में किए गए वायदों को पूरा करेगी और उत्तराखंड का चहुंमुखी विकास हो सकेगा।
गंगा सिंह रावत, हल्द्वानी
प्रतिमा या अस्पताल
रामायण रिसर्च कौंसिल ने बिहार के सीतामढ़ी में माता सीता की 251 मीटर ऊंची प्रतिमा बनाने का निर्णय लिया है, जो विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। स्थानीय सांसद के नेतृत्व में इसके लिए एक कमिटी का गठन भी किया गया है। यह प्रतिमा न सिर्फ आस्था का केंद्र होगी, बल्कि आने वाले दिनों में पर्यटन के द्वार भी खोलेगी। जाहिर है, इसे बनाने में अच्छा-खासा पैसा भी लगेगा। तो, क्या इतनी बड़ी राशि का उपयोग इस पिछड़े जिले के अन्य विकास-कार्यों पर नहीं किया जा सकता? यह इलाका बाढ़ से त्रस्त रहता है, और रोजगार न मिलने के कारण यहां से अच्छी-खासी संख्या में लोगों का पलायन होता है। माता सीता का मायका होने के कारण यहां की मिट्टी स्वयं एक तीर्थ है। ऐसे में, यहां अस्पताल, शिक्षण संस्थाएं आदि खोलने पर जोर दिया जाना चाहिए, जो कहीं बेहतर काम होगा।
आनंद पांडेय, रोसड़ा
फिर लौटेगी रौनक
विद्यार्थियों के लगातार विरोध-प्रदर्शन के बाद आखिरकार दिल्ली विश्वविद्यालय को कल, यानी 17 फरवरी से खोला जा रहा है। इसका एक अर्थ यह भी है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र फिर से एक नई उम्मीद के साथ परिसर में होंगे। निस्संदेह, यह बेहद खुशी की बात है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय की कक्षाएं ऑफलाइन चलेंगी, लेकिन अभी मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं। शोचनीय सवाल यह है कि दो साल बाद छात्र किस तरह से एक नई शुरुआत करेंगे? फिर, उन छात्र-छात्राओं को काफी मुश्किलें आएंगी, जो दूसरे राज्यों के बाशिंदा हैं और फिलहाल अपने गृह जिले में हैं। उनके लिए दिल्ली में इतनी जल्दी कमरे या हॉस्टल ढूंढ़ना कोई आसान काम नहीं है। दिल्ली में रहने का ठिकाना खोजना एक मुश्किल काम होता है, जिसमें छात्र-छात्राओं को वक्त लग सकता है।
नवीनचंद्र तिवारी
रोहिणी, दिल्ली
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