बुनियादी मुद्दों से दूरी
चुनाव लोकतंत्र का महापर्व होता है। अब से तीन-चार दशक पूर्व लोकप्रियता से परिपूर्ण व्यक्तित्व को लोग श्रद्धा से चुनते थे। लोकप्रियता का मूल्यांकन इस आधार पर होता था कि व्यक्ति समाज के प्रति कितना...
चुनाव लोकतंत्र का महापर्व होता है। अब से तीन-चार दशक पूर्व लोकप्रियता से परिपूर्ण व्यक्तित्व को लोग श्रद्धा से चुनते थे। लोकप्रियता का मूल्यांकन इस आधार पर होता था कि व्यक्ति समाज के प्रति कितना संवेदनशील है। समय के साथ यह परंपरा पुराने दिनों की बात हो गई। अब जो दल जितना लोक-लुभावन घोषणापत्र तैयार करता है, जनता उसके प्रतिनिधियों की तरफ उतनी मुखातिब होती है। हालांकि, सच यह भी है कि घोषणापत्र भले ही मतदाताओं को आकर्षित करें, लेकिन उनमें मूलभूत मुद्दों का कमोबेश अभाव रहता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों से राजनीतिक दल अब दूरी बरतने लगे हैैं। इसके बदले मुफ्त की सुविधाएं देने या कर्जमाफी संबंधी घोषणाएं करने लगे हैं। यह परिपाटी बदलनी चाहिए। लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी होनी चाहिए।
रविंद्र तिवारी, सहारनपुर
आभासी मुद्रा से राहत
वर्चुअल अथवा डिजिटल करेंसी बदलते दौर की मांग है। यह अब हर देश के लिए आवश्यक है। अपने यहां अगर इसको पूरी तरह से अनुमति मिल जाती है, तो बाजार में रुपये की कमी का बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था को भी नई गति मिल सकती है। इसके साथ अच्छी बात यह भी है कि यह कम लागत वाली मुद्रा है। सुखद है, इस बार के बजट में सरकार ने परोक्ष रूप से आभासी मुद्रा को स्वीकृति दे दी है। इससे निश्चय ही आने वाले दिनों में भारतीय बाजार पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
समराज चौहान, असम
कानून का दुरुपयोग
महिलाओं को दहेज-उत्पीड़न से बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए दहेज विरोधी कानून बनाया गया था, जिसके तहत दहेज लेने वालों को गैर-जमानती जेल के साथ-साथ आर्थिक दंड देने का प्रावधान है। इस कानून से काफी महिलाओं को न्याय मिला है, लेकिन इस कानून का खासा दुरुपयोग भी होने लगा है। कुछ स्वार्थी और प्रतिशोध की भावना रखने वाली महिलाओं ने इस कानून को हथियार बनाकर ससुराल के निर्दोष लोगों को अपमानित जीवन जीने को मजबूर किया है। कभी-कभी तो परिवार के अशक्त वृद्ध जन भी ऐसे कड़े कानून की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही बिहार की एक महिला की तरफ से ससुराल पक्ष पर दर्ज कराए गए दहेज उत्पीड़न संबंधी मुकदमे को निरस्त कर दिया। ऐसी महिलाओं को समझना चाहिए कि यह कानून उनकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है, न कि बेकुसूर ससुराल पक्ष को अपमानित करने के लिए। अब यह जरूरी है कि झूठे मुकदमे दर्ज कराने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई हो, ताकि लोगों में कानून का भय भी बना रहे और इसका दुरुपयोग भी न हो।
विभा गुप्ता, बेंगलुरु
खुलें विश्वविद्यालय
कोरोना की दस्तक के बाद से ही देश में सब कुछ बंद कर दिया गया। विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल, सभी बंद कर दिए गए। छात्र-छात्राओं के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी गईं। हालांकि, अब शिक्षण संस्थानों को खोला जाने लगा है, लेकिन विश्वविद्यालयों में ताले अब भी लटके हुए हैं। छात्रों के आंदोलन के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय को खोलने की घोषणा जरूर की गई है, लेकिन अब भी कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जहां ऑफलाइन कक्षाओं का इंतजार हो रहा है। अब वर्ग में पढ़ाई बहुत जरूरी है, क्योंकि ऑनलाइन कक्षाओं में विद्यार्थियों व शिक्षकों के बीच समन्वय में कमी आई है। ऑनलाइन कक्षाओं का प्रतिकूल असर गरीब छात्र-छात्राओं पर पड़ा है, क्योंकि उनके पास जरूरी संसाधन नहीं होते। ऐसे में, जरूरी है कि विश्वविद्यालय भी खोले जाएं।
नोमान अहमद खान, ओखला
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