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जज्बे को सलाम

पहले नवजात पुत्री की मौत और उसके बाद सिर से पिता का साया उठने से शोक-संतप्त बड़ौदा रणजी टीम के 29 वर्षीय क्रिकेटर विष्णु सोलंकी के ग्रुप चरण के तीसरे और आखिरी मैच को खेलकर घर जाने का फैसला समस्त...

Naman Dixit हिन्दुस्तान, Thu, 3 March 2022 11:38 PM
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जज्बे को सलाम

पहले नवजात पुत्री की मौत और उसके बाद सिर से पिता का साया उठने से शोक-संतप्त बड़ौदा रणजी टीम के 29 वर्षीय क्रिकेटर विष्णु सोलंकी के ग्रुप चरण के तीसरे और आखिरी मैच को खेलकर घर जाने का फैसला समस्त खेलप्रेमियों को उनका मुरीद बना रहा है। जेहन में सचिन तेंदुलकर के साथ घटी ऐसी ही घटना और उनकी खेल- प्रतिबद्धता की याद ताजा हो आई। विराट कोहली के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित हो चुका है। पर इन सबसे एक कदम आगे चलकर नियति का दोहरा दंश झेलते हुए विष्णु सोलंकी ने कर्तव्य-परायणता की अद्वितीय मिसाल पेश की है। जाहिर है, मैच खेलने का उनका यह फैसला बेहद कठिन रहा होगा। विष्णु सोलंकी क्रिकेट की दुनिया में अपने प्रदर्शन के बूते किन ऊंचाइयों को छू पाएंगे, यह तो अभी कोई नहीं बता सकता, लेकिन अपनी इस महान सोच और निर्णय के लिए उनका नाम इतिहास के पन्नों में जरूर दर्ज हो गया है।
सुरजीत झा, गोड्डा, झारखंड

लोकतंत्र के मायने
लोकतंत्र का अर्थ होता है- सबको समान अधिकार। मगर क्या अपने देश में सबको समान अधिकार हासिल है? और यदि यहां लोकतंत्र है, तो जनता की फरियाद ठुकराई क्यों जाती है? नेतागण भाषणों में कहते रहते हैं कि हमें जाति और धर्म से ऊपर उठकर सोचना चाहिए, लेकिन जब वही वोट मांगने आते हैं, तब जाति और धर्म का कार्ड खेलते हैं। सबको यह समझना होगा कि लोकतंत्र हमारे संविधान की रीढ़ है। जब तक यह हम लोगों के साथ है, तब तक देश में अमन-चैन बना रहेगा। इसलिए भारत में लोकतंत्र का जिंदा रहना बहुत जरूरी है। इसके लिए सभी भारतीयों को एक साथ आना ही होगा, और जो नेता गंदी राजनीति करते हैं, उनको चुनावों में खारिज करना होगा।
गौरव तिवारी, पालीगंज, कर्णपुरा

अधर में भविष्य
गत दो वर्षों से सारा विश्व महामारी की चपेट में है, जिस पर हमारा कोई वश नहीं। मगर आज जिस तरह से रूस और यूक्रेन एक-दूसरे के सामने हैं, वह विशुद्ध मानवीय भूल है। हमेशा से यही कहा गया है कि युद्ध सिर्फ कुछ देशों के बीच होता है, लेकिन उसका परिणाम पूरा विश्व भुगतता है। ऐसा ही इस युद्ध में हो रहा है। पूरे विश्व के छात्र पढ़ाई के लिए यूक्रेन जैसे देशों का सहारा लेते हैं। मगर युद्ध से उनका भविष्य अधर में लटक गया है। फिलहाल, छात्रों की सकुशल वापसी सबकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। मगर जो छात्र इस समय अपने अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, उनका भविष्य क्या होगा? यूक्रेन को युद्ध के हालात से निकलने में और अपने सामान्य जनजीवन में वापस लौटने में अभी कई साल लग जाएंगे। क्या तब तक ये बच्चे इंतजार करते रहेंगे? इसलिए सभी सरकारों को युद्ध रोकने के उपाय करने चाहिए। यह न सिर्फ देशों के लिए, बल्कि आने वाले भविष्य के लिए भी काफी जरूरी है।
अंकिता प्रकाश
 रुड़की, उत्तराखंड

ताकि बचे धरती
संसार में जहां कहीं कोई युद्ध होता है, तो उसमें कमोबेश सभी देशों को अनेक प्रकार की असुविधाएं और दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। मगर इन सबके साथ-साथ एक प्रमुख चिंता वैश्विक गरमी की भी होती है, जिसके दुष्परिणाम बाद में दिखाई पड़ते हैं। जैसे, समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, ग्लेशियरों का पिघलना, असमय बारिश होना आदि। इसके प्रमुख कारण हैं, युद्ध में प्रयोग होने वाले भांति-भांति के बम। इनसे जमीन, आबोहवा, भूमिगत जल, सभी प्रदूषित होते हैं। ऐसे में, रूस और यूक्रेन के युद्ध को शांति-वार्ता के साथ समाप्त करने में ही सबकी भलाई है, ताकि जान-माल के साथ-साथ पृथ्वी की रक्षा हो सके। सबको इस दिशा में प्रयास करने चाहिए। 
सोनू कुमार गोस्वामी
 अररिया, बिहार
 

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