दबंगई की राजनीति
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को देखकर लगता है कि 21वीं सदी की विश्व-सभ्यता अव्यवस्था और नेतृत्वहीन पाषाण काल में प्रवेश कर गई है। तभी तो दबंगई की राजनीति और शक्ति आधारित भू-राजनीति का डंका बज रहा है।...
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को देखकर लगता है कि 21वीं सदी की विश्व-सभ्यता अव्यवस्था और नेतृत्वहीन पाषाण काल में प्रवेश कर गई है। तभी तो दबंगई की राजनीति और शक्ति आधारित भू-राजनीति का डंका बज रहा है। जहां चीन ने कोरोना वायरस को जन्म देने के बावजूद अपनी ताकत का बेजा लाभ उठाकर दक्षिण चीन सागर में छोटे-छोटे द्वीपों को हड़प लिया और हमारे पूर्वी लद्दाख में भी उसने अतिक्रमण की कोशिश की, वहीं एक अन्य बडे़ देश रूस ने तुलनात्मक रूप से छोटे राष्ट्र यूक्रेन में खून की नदियां बहाने में देरी नहीं की। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के इस दौर में सभी देशों को सह-अस्तित्व के साथ आत्मनिर्भरता और गोलबंदी को आगे बढ़ाना होगा, तभी इस दबंगई से वे लड़ सकेंगे।
सत्य प्रकाश, लखीमपुर खीरी
बंद हो युद्ध
शक्तियों के आपसी टकराव में निश्चय ही किसी एक शक्ति को जीत मिलेगी, लेकिन क्या वह जीत उसकी स्थायी होगी? कतई नहीं। आज जिस तरह से रूस और यूक्रेन आपस में उलझे हुए हैं, उसका नतीजा तो युद्ध समाप्ति के बाद ही देखने को मिलेगा। आर्थिक नुकसान को भले छोड़ दें, लेकिन असंख्य माओं के चीत्कार और पत्नियों के क्रंदन की भला क्या भरपायी होगी? क्या यही दिन देखने के लिए हम युद्ध कर रहे हैं? इसमें मिली जीत हमें क्या आत्मिक शांति दे सकेगी? अगर नहीं, तो भला यह युद्ध क्यों? आज कई देशों ने अपने पास परमाणु बम जैसे मानव संहारक हथियार
जमा कर लिए हैं। क्या वे इसकी मारकता नहीं जानते? ऐसे में, सब कुछ जानते हुए भी युद्ध में उलझना ठीक नहीं।
गौतम केडिया, गिरिडीह
बढ़ाएं सोच का दायरा
दिन-प्रतिदिन हमारी सोच का दायरा सिमटता जा रहा है। पिछले दिनों हम कर्नाटक से उठे हिजाब विवाद में उलझे हुए थे, और अब रूस-यूक्रेन युद्ध पर चर्चा में मशगूल हैं। यह कितना बड़ा मुद्दा बन गया है कि बाकी सारे मसले पीछे छूट गए हैं। घर-आंगन से लेकर बड़े-बड़े कॉन्फ्रेंस तक में युद्ध पर ही चर्चा हो रही है। याद कीजिए, अपने यहां कोरोना को लेकर कैसा खौफ पसर गया था, फिर चुनावी बहस शुरू हो गई। इसके बाद हिजाब विवाद और अब रूस-यूक्रेन युद्ध। किसी मुद्दे पर चर्चा करना गलत नहीं है, लेकिन एक मुद्दे की वजह से बाकी सभी मसलों को कोने में रख देना, हमारी समझ और ज्ञान को सीमित बनाता है। इसमें वही इंसान बाजी मारता है, जो ऊंची व व्यापक सोच रखता है। आज विज्ञान का युग है। अब सबके हाथों में मोबाइल फोन है। ऐसे में, मुद्दे सभी के पास हैं। बस जरूरत है, अपनी सोच का दायरा बढ़ाने की। सोच जितनी व्यापक रहेगी, हमारी कथनी और करनी उतनी ही प्रभावशाली होगी।
राखी पेशवानी, भोपाल
ऑपरेशन गंगा
रूस और यूक्रेन के बीच घमासान युद्ध जारी है। सिर्फ फौज पर हमला करने का दावा करने वाला रूस अब मिसाइलों से आम लोगों के घरों को उजाड़ने लगा है। इसमें सैकड़ों यूक्रेनी लोगों की जान जाने की भी खबर है। एक तरफ यूक्रेन खुद को बचाने के लिए दिन-रात जद्दोजहद कर रहा है, तो वहीं रूस भी अपनी जिद से पीछे नहीं हट रहा। नतीजतन, इस तनातनी में हजारों भारतीय यूक्रेन में फंस गए हैं, जिनको वापस लाने के लिए इस समय ‘ऑपरेशन गंगा’ अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि, जिस तरह से वहां के हालात पल-पल बदल रहे हैं और जितनी जरूरत है, उस हिसाब से ऑपरेशन गंगा की रफ्तार धीमी है। चूंकि रूस और अधिक आक्रामक हो गया है, इसलिए जरूरी है कि इस अभियान में तेजी लाई जाए। यूक्रेन से भारतीयों की जल्द सुरक्षित वापसी होनी चाहिए।
अभिनव राज, नोएडा
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