Hindi Newsओपिनियन मेल बॉक्सHindustan Foreign Media Column 15 February 2022

कामकाज में खोट

देश में एक बार फिर बैंकों के साथ धोखाधड़ी का मामला सामने आया है, जिसे अंजाम दिया है एक शिपिंग कंपनी ने। आरोप है, उसने अपनी सहायक कंपनी द्वारा 28 बैंकों में गड़बड़ी की और 22 हजार करोड़ रुपये से अधिक का...

Neelesh Singh हिन्दुस्तान, Mon, 14 Feb 2022 09:54 PM
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कामकाज में खोट

देश में एक बार फिर बैंकों के साथ धोखाधड़ी का मामला सामने आया है, जिसे अंजाम दिया है एक शिपिंग कंपनी ने। आरोप है, उसने अपनी सहायक कंपनी द्वारा 28 बैंकों में गड़बड़ी की और 22 हजार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला किया। इस धोखाधड़ी के पीछे के चेहरे तभी बेनकाब होंगे, जब इस घोटाले की जांच निष्पक्ष व त्वरित गति से होगी। मोदी सरकार ने देश में कालेधन पर प्रहार करने के लिए नोटबंदी का कड़वा फैसला लिया था, लेकिन शायद उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि यहां दीपक तले अंधेरा है। यानी, सरकार ने कालेधन को बैंकों में पहुंचाने की कोशिश नोटबंदी से की, लेकिन अब तो बैंकों में ही कालेधन का खेल चल रहा है। सवाल यह है कि रिजर्व बैंक क्यों नहीं बैंकों की कार्यप्रणाली पर सख्ती से नजर रखता है? क्या बैंकों की कार्यप्रणाली की समय-समय पर जांच नहीं की जाती? सरकार को इस बाबत गंभीर होना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

 


साफ पर्यावरण के लिए
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आगामी 1 जुलाई से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर पूर्ण प्रतिबंध की तैयारी कर ली है, जो एक सराहनीय कदम है। ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ हमारे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि इसका पुन: उपयोग संभव नहीं हो पाता, और इसे यूं ही पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है, जिससे आबोहवा दूषित होती है। पिछले कुछ वर्षों में प्लास्टिक कचरे में जिस प्रकार से वृद्धि हुई है, वह चिंताजनक है। साल 2017-18 में हमारे देश में प्लास्टिक कचरे की मात्रा 23,83,469 टन थी, जो साल 2019-20 में बढ़कर 34,69,780 टन तक पहुंच गई। चूंकि सिंगल यूज प्लास्टिक का जैविक अपघटन संभव नहीं, इसलिए यह नदियों, जमीन द्वारा हमारे भोजन-चक्र में शामिल हो जाता है, जिससे कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का यह कदम पर्यावरण-हितैषी है, बशर्ते कि इसे सख्ती से लागू किया जाए।
राजेंद्र कुमार शर्मा, 
रेवाड़ी, हरियाणा

गुणवत्तापूर्ण निर्माण 
विगत वर्षों में देश में निर्माण-कार्य की बाढ़ सी आ गई है। कच्चे मकानों की जगह गगनचुंबी इमारतें तन चुकी हैं। इन दिनों भी द्रुत गति से निर्माण-कार्य जारी हैं, लेकिन देखने में आ रहा है कि बनती इमारतों के ढहने में भी देर नहीं लग रही। पिछले दिनों गुरुग्राम में हुआ हादसा खौफ पैदा करता है। स्थिति यह है कि निर्माण-कार्य ताश के पत्तों की तरह जमींदोज हो रहे हैं, जिनसे जान-माल की हानि भी हो रही है। निर्माण-कार्यों के ढहने की एक बड़ी वजह है, गुणवत्तापूर्ण निर्माण-कार्य का अभाव। रियल एस्टेट की कंपनियां आनन-फानन में पजेशन देने की कोशिश में रहती हैं, जिसके कारण इमारतों की गुणवत्ता पर शायद ही ध्यान दिया जाता है। नतीजतन, हादसे सरकारों की भी परेशानी बढ़ा देते हैं। अच्छा होगा, ऐसी कंपनियों को काली सूची में डाल दिया जाए, ताकि वे लापरवाही करने की फिर न सोचें।
अमृतलाल मारु ‘रवि’, धार

गैरसैंण की उपेक्षा
जब अलग उत्तराखंड की मांग उठी थी, तब सभी दलों ने कहा था कि पहाड़ का विकास तभी संभव है, जब शासन पहाड़ से चलेगा और इसके लिए गैरसैंण से उपयुक्त कोई दूसरी जगह नहीं। जनता इसको सच मान बैठी और उन्होंने आंदोलन को भरपूर समर्थन दिया। मगर राज्य को अस्तित्व में आए दो दशक से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अब तक गैरसैंण उपेक्षित है। केवल दिखावे के लिए इसको गर्मियों की राजधानी बनाने से प्रदेश का विकास नहीं होगा। सरकार जनता को बताए कि पहाड़ों से कब से शासन चलेगा और यहां से पलायन को रोका जाएगा? जनता को अब भरमाया नहीं जा सकता। 
आनंद सिंह रावत, काशीपुर
 

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