नीतीश की पार्टी जेडीयू में आरसीपी की जगह लेंगे मनीष वर्मा? जानिए, दोनों नेताओं में क्या हैं समानताएं
एक दौर में आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी थे। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा से वीआरएस लेने के बाद राजनीति में कदम रखा था। मनीष वर्मा पर भी नीतीश कुमार के बहुत भरोसा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अतिरिक्त परामर्शी और पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने मंगलवार को जदयू की सदस्यता ग्रहण करने के साथ राजनीति में कदम रखा। उनके शामिल होने को जदयू में बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। आने वाले समय में मनीष वर्मा की पार्टी में बड़ी भूमिका होगी। बिहार के सियासी गलियारे में यह चर्चा है कि मनीष वर्मा जेडीयू में आरसीपी सिंह की जगह ले सकते हैं।
एक दौर में आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी थे। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा से वीआरएस लेने के बाद राजनीति में कदम रखा था। वह जदयू में दूसरे नम्बर की हैसियत रखते थे। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया गया। किसी खास मसले पर नीतीश कुमार से उनकी दूरी बढ़ी और अंतत उन्हें पार्टी से बाहर निकलना पड़ा। उनके जाने के बाद से जदयू में आरसीपी की जगह कोई नहीं ले पाया।
मनीष वर्मा जदयू से जुड़ने वाले सातवें ब्यूरोक्रेट एनके सिंह, पवन वर्मा, आरसीपी सिंह, केपी रमैया, गुप्तेश्वर पांडेय और सुनील कुमार के बाद मनीष वर्मा सातवें ब्यूरोक्रेट हैं जो जदयू में शामिल हुए हैं। एनके सिंह, पवन वर्मा और आरसीपी सिंह पार्टी के राज्यसभा सदस्य रहे हैं। केपी रमैया और गुप्तेश्वर पांडेय की राजनीतिक यात्रा बहुत संक्षिप्त रही। वहीं, पूर्व आईपीएस सुनील कुमार अभी सरकार में शिक्षा मंत्री हैं।
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दोनों नेताओं में समानताएं
● दोनों सीएम नीतीश कुमार के बेहद करीबी और भरोसेमंद रहे हैं।
● आरसीपी मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव जबकि मनीष सचिव रहे हैं।
● दोनों भारतीय प्रशासनिक सेवा से वीआरएस लेकर राजनीति में आए।
● आरसीपी उत्तर प्रदेश कैडर तो मनीष ओडिशा कैडर के आईएएस रहे।
● दोनों ही कुर्मी समाज से आते हैं तथा नालंदा जिले के हैं।
● मनीष वर्मा 50 वर्ष के हैं। आरसीपी 52 वर्ष में जदयू में सक्रिय हुए थे।
12 सालों से हैं साए की तरह
आरसीपी सिंह वर्ष 2021 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उसके पहले वे राष्ट्रीय महासचिव थे। इसी दौरान संगठन के कार्यों को शिद्दत से देखने लगे। मुख्यमंत्री तथा पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार संगठन के मामलों में आरसीपी सिंह पर भरोसा रखते थे। वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो बिहार में पार्टी संगठन को दुरुस्त करने पर जोर दिया। उनके जाने के बाद उस तरह संगठक के कार्यों को जमीन पर उतारने वाला विकल्प सामने नहीं आया है। मनीष वर्मा के दल में आने से यह कमी पूरी हो सकती है। मनीष वर्मा पिछले 12 सालों से नीतीश कुमार के साथ साए की तरह हैं। उनकी कार्यशैली, नीति और सिद्धांतों की बखूबी समझ रखते हैं।