कोलकाता में ममता संग लंच, अखिलेश के साथ लखनऊ में डिनर; नीतीश-तेजस्वी की विपक्षी एकता की खिचड़ी पकेगी?
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी दलों को देश भर में एक साथ लाने की कोशिश में जुटे बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपने डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ यूपी और बंगाल दौरे पर हैं।
भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों का देश भर में गठबंधन कराने के मिशन पर काम कर रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और मंत्री संजय झा को लेकर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के एक दिन के तूफानी दौरे पर कोलकाता पहुंच गए हैं। लेकिन विपक्षी एकता में जुटे नीतीश के सामने ममता बनर्जी और अखिलेश यादव को कांग्रेस के साथ लाना एक ऐसा काम है जिसकी राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ कम संभावना देखते हैं।
नीतीश के पटना से कोलकाता पहुंचते ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और जेडीयू के लव-कुश वोट बैंक के कुश समुदाय से आने वाले सम्राट चौधरी ने पूछ लिया कि विपक्षी एकता की मुहिम चलाने वाले पीएम कैंडिडेट का नाम बताएं। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस का साथ मिलने के बाद भी नीतीश के सामने विपक्ष की बड़ी चुनौती है क्योंकि विपक्षी एकता के नाम से बिदकने वाली पार्टियों को दिक्कत कांग्रेस से ही है।
ममता-अखिलेश बीजेपी को हराना तो चाहते हैं लेकिन अपने दम पर
तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव हों या बंगाल में ममता बनर्जी या फिर यूपी में अखिलेश यादव, हराना तो सब बीजेपी को चाहते हैं लेकिन अपने दम पर या ऐसी छोटी पार्टियों को साथ लेकर जिनको वो 1-2 सीट देकर ही साथ रख सकें। कांग्रेस यूपी, बंगाल या तेलंगाना में 1-2 सीट मिलने वाले गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकती। नीतीश की मुश्किल बढ़ाने वाले इन नेताओं को लगता है कि कांग्रेस को सीट देना उस पर अहसान करने जैसा है।
नीतीश अपने साथ अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके तेजस्वी यादव को साथ लेकर गए हैं। तेजस्वी को पार्टी टू पार्टी मोलभाव की ट्रेनिंग दे रहे नीतीश उनको लेकर ही दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के पास भी गए थे। नीतीश और तेजस्वी कोलकाता में ममता बनर्जी से लंच पर मिल रहे हैं जबकि शाम में लखनऊ पहुंचकर अखिलेश के साथ डिनर पर बात करेंगे। ममता और अखिलेश मेजबानी तो बेहतरीन तरीके से करेंगे लेकिन क्या नीतीश और तेजस्वी की विपक्षी एकता की खिचड़ी पकने देंगे, इस पर संदेह है।
बंगाल विधानसभा में कांग्रेस और लेफ्ट का नामलेवा तक नहीं बचा था 2021 में
कभी कांग्रेस की तेज-तर्रार नेता रहीं ममता बनर्जी को हराने के लिए कांग्रेस ने 2021 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट के साथ गठबंधन कर लिया था। लेकिन ममता और मोदी-शाह ने वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण किया कि सीपीएम और कांग्रेस दोनों का खाता तक नहीं खुला।
2016 के चुनाव में 3 सीट जीतने वाली बीजेपी 77 सीट जीत गई जबकि 2016 में 44 सीट वाली कांग्रेस और 26 सीट वाली सीपीएम जीरो पर आउट हो गई। ममता कैंप को लगता है कि बंगाल में आमने-सामने के चुनाव में ही उसका फायदा है और इसके लिए उसे कांग्रेस या लेफ्ट की जरूरत नहीं है।
चुनावी गठबंधन की राजनीति में हाथ और मुंह दोनों जला चुके हैं अखिलेश यादव
यूपी में अखिलेश यादव का तो गठबंधन की राजनीति में हाथ और मुंह दोनों जला है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने राहुल गांधी से हाथ मिलाया और 105 सीटें कांग्रेस को लड़ने के लिए दीं। कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला भी हुआ। लेकिन कांग्रेस 114 सीट लड़कर 7 सीट ही जीत सकी। सपा खुद 311 सीट लड़कर 47 सीट हासिल कर सकी। अखिलेश ने तब से कांग्रेस से तौबा कर रखी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में बुआ-बबुआ साथ आए लेकिन गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा मायावती की बसपा को ज्यादा हुआ। 2014 में एक सांसद सीट भी ना जीत सकी मायावती की बीएसपी 10 सीट जीत गईं जबकि अखिलेश की सपा 5 सीट पर ही अटक गई। उसके बाद बुआ और बबुआ अलग हो गए।
नीतीश की विपक्षी एकता के लिए बंगाल और यूपी में कोई आहुति देने को तैयार होगा क्या?
अब 2024 की तैयारी में अखिलेश को कांग्रेस के साथ आने के लिए तैयार करना एक जटिल काम है। सपा का स्टैंड 2024 को लेकर इससे भी साफ हो गया जब तमाम शोर के बाद भी अखिलेश यादव राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं हुए। उन्होंने यहां तक कहा कि बीजेपी और कांग्रेक एक जैसे हैं।
बंगाल और यूपी में स्थानीय समीकरण और बाकी दलों की ताकत को देखते हुए ना ममता बनर्जी की और ना ही अखिलेश यादव की किसी बड़ी पार्टी से गठबंधन में रुचि है। नीतीश की पहली परीक्षा कोलकाता में होगी और दूसरी लखनऊ में। विपक्षी एकता के यज्ञ में बंगाल और यूपी से आहुति देने के लिए कोई तैयार होगा या नहीं, ये ऐसा सवाल है जिस पर आरजेडी-जेडीयू से ज्यादा बीजेपी की नजर टिकी है।