जब एक हाथ में घड़ा और दूसरे में आम का पत्ता ले शादी में नाई की भूमिका निभाने लगे थे पूर्व CM कर्पूरी ठाकुर
Bharat Ratna Karpoori Thakur : अप्रैल 1979 में जब कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से हटे तो वह अपने गांव आ गए थे। वह शादियों का सीजन था। उन दिनों ज्यादा शादियां गर्मियों में ही होती थी।
Bharat Ratna Karpoori Thakur : बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर समाज के निचले तबके से ताल्लुक रखते थे। वह नाई जाति के थे। जब वह मुख्यमंत्री थे, तब भी उनके पिता गोकुल ठाकुर ने अपने जातीय पेशे को नहीं छोड़ा था। कर्पूरी ठाकुर को इस पर गर्व था। अप्रैल 1979 में जब कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से हटे तो वह अपने गांव आ गए थे। वह शादियों का सीजन था। उन दिनों ज्यादा शादियां गर्मियों में ही होती थी।
एक दिन ऐसा हुआ कि उनके गांव और आस पास के गांवों में ज्यादा शादियां थीं। उनके परिवार में जितने पुरुष सदस्य थे, शादियां उससे ज्यादा थीं। सभी पुरुष शादियों में काम करने जा चुके थे। शादियों में जहां ब्राह्मणों की जरूरत होती है, वहीं कई ऐसी रस्में होती हैं, जिसे पूरा करने के लिए नाई, धोबी और कहार (अति पिछड़ी जातियों) की जरूरत होती है। इसलिए उस दिन गांव के किसी यजमान के यहां से शादी की रस्में निभाने का बुलावा आ गया।
उस वक्त घर पर कोई पुरुष सदस्य नहीं था। इसे देख पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर खुद एक हाथ में घड़ा और उसमें पानी भरकर और दूसरे हाथ में आम का पत्ता लेकर शादी में पहुंच गए और नाई की भूमिका निभाने लगे। कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने इस वाकये को साझा करते हुए लिखा है कि जब गांव के लोगों ने देखा कि कर्पूरी ठाकुर शादी में नाई की रस्म निभा रहे हैं तो कुछ संभ्रांत लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इसके बाद उनके बेटे रामनाथ ठाकुर (मौजूदा जेडीयू सांसद-राज्यसभा) ने ये रस्में निभाईं।
दरअसल, कर्पूरी ठाकुर के दो-दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनके परिवार ने हजामत बनाने से लेकर शादी-विवाह में हज्जाम का पुश्तैनी पेशा नहीं छोड़ा था। उनका परिवार बेहद सादगी में जीवन जीता था। खुद कर्पूरी ठाकुर भी सच्चाई, सादगी और ईमानदारी की जीती-जागती मिसाल थे। वह गरीबों के मसीहा कहलाते थे। कहीं भी कोई दुर्घटना या हादसा हो जाने पर लोग सबसे पहले उनको को अपने बीच पाते थे।