राज्यपाल के प्रधान सचिव आरएल चोंग्थू पर चलेगा मुकदमा, डीएम रहते की थी गड़बड़ी
राज्यपाल के प्रधान सचिव आरएल चोंग्थू पर मुकदमा चलेगा। सहरसा में डीएम रहते आर्ग्स लाइसेंस देने में गड़बड़ी से जुड़े मामले में सदर थाने में केस दर्ज है। वर्ष 2004 में लाइसेंस जारी किये गए थे।
सहरसा के डीएम रहे राज्यपाल के प्रधान सचिव आरएल चोंग्थू के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति सक्षम प्राधिकार ने दे दी है। वर्ष 2004 में डीएम रहते अपात्र लोगों को हथियार का लाइसेंस देने का आरोप इन पर लगा था। वर्ष 2005 में सदर थाने में दर्ज मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई है।
सरकार के संयुक्त सचिव कार्यालय से जारी पत्र के मुताबिक, तत्कालीन जिलाधिकारी सह शस्त्र अनुज्ञापन पदाधिकारी सहरसा को अभियुक्त बनाते हुए उनके विरुद्ध धारा 109, 419, 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि एवं 30 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत अभियोजन स्वीकृति के लिए आदेश 27 अप्रैल, 2022 के माध्यम से प्राप्त हुआ है। इसके बाद आगे की कार्रवाई शुरू हो गई है।
पूर्व डीएम पर आरोप है कि नियम को ताक पर रखकर बाहरी जिले के लोगों को आर्म्स लाइसेंस निर्गत किया। मामले का खुलासा तत्कालीन एसपी अरविन्द पांडेय ने किया था। तत्कालीन थानाध्यक्ष अनिल कुमार यादवेन्दु ने फर्जी नाम व पता के आधार पर आर्म्स लाइसेंस पाए सात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इसमें ओमप्रकाश तिवारी एवं उनकी पत्नी दुर्गावती देवी, हरिओम कुमार, अभिषेक त्रिपाठी, उदयशंकर तिवारी, राजेश कुमार एवं मधुप कुमार सिंह को अभियुक्त बनाया गया था।
अनुसंधान के बाद 9 जुलाई, 2005 को पुलिस ने ओमप्रकाश तिवारी के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र समर्पित किया। दूसरा आरोप पत्र 13 अप्रैल, 2006 को 14 आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में दायर किया गया था। तब आरएल चोंग्थू और अभिषेक त्रिपाठी को दोषमुक्त करार दिया गया।
अपराध अनुसंधान विभाग के निर्देश के बाद 2009 में पुलिस ने न्यायालय से दोबारा अनुसंधान प्रारंभ करने की अनुमति मांगी थी, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया था। इस संबंध में सदर एसडीपीओ संतोष कुमार ने बताया कि सरकार व मुख्यालय से अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की गई है, जिसके आलोक में आगे की कार्रवाई की जा रही है।
क्या है मामला
अपने कार्यकाल के दौरान तत्कालीन डीएम सह शस्त्र अनुज्ञापन पदाधिकारी द्वारा पूर्व सांसद सूरजभान के रिश्तेदार हरिओम कुमार, भागलपुर के तत्कालीन मेयर दीपक भुवानियां सहित 229 लोगों को हथियार का लाइसेंस दिया गया था। जांच के बाद 14 लोगों का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। जांच के दौरान पाया गया कि जिनको हथियार का लाइसेंस दिया गया, उन लोगों का नाम-पता, पहचान कुछ भी सही नहीं था।
साक्ष्य के आधार पर मामला सही होने पर विधि विभाग ने उपलब्ध कागजात और दैनिक साक्ष्यों के आधार पर यह पाया कि सदर थाना में दर्ज मामले के प्राथमिकी अभियुक्त के खिलाफ फर्जी व्यक्ति को जानबूझकर आपराधिक षड्यंत्र के तहत स्थायी /अस्थायी पता का सत्यापन कराए बिना ही शस्त्र लाइसेंस प्रदान करने का आरोप प्रथम दृष्टया परिलक्षित होता है और अभियोजन के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसके बाद निर्धारित प्रकिया का पालन करते हुए सरकार द्वारा उनके विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की गयी है।