आवारा कुत्तों की बल्ले-बल्ले! कानूनी पचड़े में फंसा पटना नगर निगम का नसबंदी अभियान, लगी रोक
बिहार में इस साल सितंबर महीने तक कम से कम दो लाख लोगों को कुत्तों ने लोगों को अपना शिकार बनाया। 2021 की तुलना में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। बचाव के लिए कुत्तों के नसबंदी का अभियान चलाया गया था।
पटना नगर निगम द्वारा चलाए जा रहे हैं आवारा कुत्तों की नसबंदी अभियान पर रोक लगा दी गई है। राज्य में कुत्तों के काटने की बढ़ती संख्या को देखते हुए जनवरी में यह अभियान शुरू किया गया था। यह मामला कानूनी पचड़े में फंस गया है। पीपुल्स फॉर एनिमल नामक एक संस्था द्वारा पटना हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर पीआईएल दाखिल किया गया था।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस साल सितंबर महीने तक कम से कम दो लाख लोगों को कुत्तों ने लोगों को अपना शिकार बनाया। 2021 की तुलना में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। इसे देखते हुए कुत्तों के नसबंदी का अभियान चलाया गया था। लोगों को कुत्तों से बचने और काट लेने पर समय से वैक्सीन लेने की सलाह दी गई है।
नगर विकास विभाग के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि कुत्ता काटने की संख्या में राज्य भर में पिछले 2 सालों में बहुत बढोतरी हुई है। इसीलिए सभी स्थानीय निकायों को निर्देश दिया गया था कि आवारा कुत्तों की नसबंदी कराई जाए। पटना म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की प्रवक्ता श्वेता भास्कर ने बताया कि पटना में लगभग 60 से 70 हजार स्ट्रीट डॉग्स हैं। इसे देखते हुए ड्राइव चलाया गया था ताकि कुत्तों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाई जा सके। एक एजेंसी को ठेका दिया गया था जो कुत्तों को पकड़ कर उनकी नसबंदी का काम करती थी। इस मामले में पीआईएल दाखिल किए जाने के बाद पटना हाई कोर्ट ने काउंटर एफिडेविट डायल करने का आदेश 17 अक्टूबर को दिया था। कोर्ट में एफिडेविट समर्पित कर दिया गया है।
दरअसल, पीपुल्स फॉर एनिमल संस्था द्वारा दायर पीआईएल में आरोप लगाया गया था कि पटना नगर निगम ने राजस्थान के एक ब्लैकलिस्टेड संस्था को यह काम दे दिया जो जानवरों पर अत्याचार करने के लिए बदनाम है। इसके लिए संस्था को प्रति कुत्ता 1130 रुपए का भुगतान किया जा रहा था। पटना नगर निगम ने कोर्ट को बताया है कि संस्था द्वारा अभी तक लगभग 6000 आवारा कुत्तों की नसबंदी किया जा चुका है। लेकिन आगे इसे स्थगित कर दिया गया है।