पटना एम्स में मरीजों से 3 लाख का फ्रॉड, डिस्चार्ज के समय बिल में बढ़ा देते थे राशि, ऐसे सामने आई ठगी
पटना स्थित एम्स अस्पताल में एक पूरा गिरोह मरीजों से ठगी कर रहा था। डिस्चार्ज के समय तीमारदारों से हॉस्पिटल बिल में छेड़छाड़़ कर ज्यादा रुपये वसूले जा रहे थे। फ्रॉड का पता चलने पर ठेका रद्द कर दिया है।
बिहार की राजधानी पटना में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मरीजों से धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। एम्स ने सोमवार को दिल्ली स्थित एक फर्म का सेवा अनुबंध रद्द कर दिया। फर्म के कर्मचारियों ने बिल एडिट करके सॉफ्टवेयर टूल के जरिए शुल्क में बढ़ोतरी कर मरीजों से तीन लाख रुपये तक की वसूली कर ली थी। बताया जा रहा है कि फर्म के कर्मचारी एम्स से डिस्चार्ज होने वाले मरीजों के बिलों में छेड़खानी करके राशि को बढ़ा दे रहे थे। एक मरीज से 6 हजार रुपये तक की ठगी की गई। पटना एम्स में सेवा दे रहे निजी फर्म के कर्मचारियों को तुरंत निलंबित कर दिया गया।
चार दिन पहले ही हिन्दुस्तान टाइम्स ने एम्स के डायरेक्टर डॉ. गोपाल कृष्ण पाल से इस बारे में जानकारी मांगी थी। डॉ. पाल के पास गोरखपुर एम्स का अतिरिक्त प्रभार है, वे सोमवार को ही वहां से लौटे। पटना आते ही उन्होंने दिल्ली की फर्म अलंकित का ठेका रद्द कर दिया। इस फर्म के 33 कर्मचारी पटना एम्स के रजिस्ट्रेशन और बिलिंग काउंटर पर सेवा दे रहे थे। इस फर्म का तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट मार्च महीने में खत्म होने वाला था।
दरअसल, 25 से ज्यादा मरीजों के हॉस्पिटल बिल में एक से लेकर 6 हजार रुपये तक का शुल्क ज्यादा दिखाई दिया। मरीजों को डिस्चार्ज के समय बढ़े हुए शुल्क वाला बिल दिया गया। अधिकारियों के मुताबिक पहली बार दो जनवरी को यह मामला सामने आया।
पटना एम्स में एक पूरा गिरोह मरीजों के साथ ठगी करने का काम कर रहा था। फर्म के कर्मचारी सबसे पहले कंप्यूटर पर बिल को डाउनलोड करते। फिर उन्हें सॉफ्टवेयर टूल की मदद से एडिट करते और पीडीएफ कॉपी में शुल्क को बढ़ाकर दिखा देते। एक शख्स ने अपनी मां के इलाज के बाद इंश्योरेंस क्लेम के लिए जब एम्स का बिल वेरिफिकेशन के लिए सबमिट किया तो पता चला कि उसे जो बिल थमाया गया और अस्पताल में जो वास्तविक बिल है दोनों की राशि में अंतर है।
इसके बाद बीते जुलाई महीने से लेकर अब तक एम्स में इलाज करा चुके मरीजों के बिलों की रैंडम जांच की गई। इसमें सामने आया कि अब तक कई बिलों में कुल 3 लाख रुपये की हेराफेरी हो चुकी है।
हिन्दुस्तान टाइम्स की जांच में सामने आया कि रविशंकर नाम के शख्स का अस्पताल का बिल असल में 81859 रुपये का बना था, जबकि उनसे 87859 रुपये लिए गए, यानी कि 6 हजार रुपये ज्यादा वसूले गए। इसी तरह मोहम्मद गजनाफर ने 5000, नखत शाहीन और आदित्य नारायण ने चार-चार हजार रुपये अधिक अस्पताल में जमा किए। अन्य कई मरीजों से भी हजारों रुपये की वसूली की गई।
डॉ. पाल ने सोमवार को कहा कि हमने कथित तौर पर धोखाधड़ी में शामिल आउटसोर्स फर्म अलंकित के क्लर्कों को निलंबित कर दिया है। 15 जनवरी से फर्म का अनुबंध भी समाप्त कर दिया गया। एक आंतरिक समिति इस मामले की जांच कर रही है, उसके निष्कर्षों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।