बिहार में गंगा से जुड़ेगी झारखंड की स्वर्ण रेखा और दामोदर नदी, एनआईटी पटना कर रहा स्टडी
एनआईटी पटना बिहार में गंगा नदी को झारखंड की स्वर्ण रेखा और दामोदर नदी को जोड़ने के प्रोजेक्ट पर स्टडी कर रहा है। इस स्टडी में डेढ़ साल का वक्त लगेगा और एक करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
बिहार में गंगा नदी को झारखंड की स्वर्णरेखा और दामोदर नदी को जोड़ने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) पटना को तकनीकी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। नेशनल वॉटर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने एनआईटी पटना को यह प्रोजेक्ट सौंपा है। अगले डेढ़ साल के भीतर संस्थान के विशेषज्ञ इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करेंगे। एनआईटी पटना के प्रोफेसर स्टडी कर बताएंगे कि इन नदियों को जोड़ने से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेंगे, इसके फायदे और नुकसान क्या होंगे और लागत क्या आएगी।
नदी जोड़ो परियोजना पर एनआईटी पटना ने स्टडी शुरू कर दी है। इस स्टडी में लगभग एक करोड़ रुपये की लागत आएगी, जिसकी फंडिंग नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा की गई है।
देश की 37 नदियों को आपस में जोड़ने की है योजना
एनआईटी पटना के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. रमाकर झा ने बताया कि इस परियोजना में पूरे देश की 37 नदियों को एक-दूसरे के साथ जोड़ना है। इनमें 14 नदियां हिमालय क्षेत्र की हैं, जबकि 16 सेंट्रल और दक्षिण भारत की है। शेष बची नदियां देश के अलग-अलग हिस्सों की है। बिहार की गंगा और झारखंड की दामोदर और स्वर्णरेखा को जोड़ने से जुड़ी फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी एनआईटी पटना को मिली है। प्रो. रमाकर झा एनआईटी पटना में स्थापित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद चेयर फॉर वाटर रिसोर्स के चेयर प्रोफेसर भी हैं।
झा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में कई पहलू पर रिपोर्ट तैयार करनी है। इसका पर्यावरण पर अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़ सकता है। इसके लिए यह देखा जाता है कि क्या यह संभव है या नहीं है। नदियों को जोड़ने के लिए किस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाए यह भी अध्ययन का विषय होगा। यदि प्रॉपर कैनाल कंक्रीट का नहीं बनाना है तो किसी से पानी अगर 100 लीटर निकलेगा तो रास्ते में विभिन्न जगहों पर अवशोषित होकर तक लक्ष्य तक 40 लीटर ही पहुंच पाएगा। एक जगह से दूसरी जगह पानी पहुंचाने में खर्च क्या आएगा और आसपास के वातावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी अध्ययन का हिस्सा होगा।
इसके लिए इन नदियों को समझना जरूरी है। कोई भी दो नदियां जब मिलती हैं, तो हमेशा एक एंगल पर मिलती हैं, प्रोफेसर झा कहते हैं यह जानकारी होना बेहद महत्वपूर्ण है कि हम नदियों को किस एंगल से निकाल लें और किस एंगल पर ले जाकर दूसरी नदी से मिलाएं।
उन्होंने बताया कि 1960 और 70 के दशक में डॉ. केएल राव ने नदियों को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था। जिन नदियों में पानी नहीं रहता है या कम रहता है, उन्हें अधिक पानी वाली नदियों को जोड़ देंगे तो हर नदी में पानी की उपलब्धता हो जाएगी और लोगों को इससे काफी सहायता मिलेगी। प्रो. रमाकर झा ने बताया कि हम नदियों को जब जोड़ने की बात करते हैं तो कहीं से भी कर देते हैं, जबकि नदियों को कहीं से कहीं जोड़ देना संभव नहीं हैं। इसके लिए हर पहलू का अध्ययन जरूरी होता है।