नेपाल बॉर्डर के बाजार, कोरोना की मार से बेजार
लॉकडाउन में ढिलाई के बाद बिहार के अन्य शहरों की तरह भारत-नेपाल सीमा के बाजार भी खुल गए हैं। जहां दूसरे शहरों में खरीदारों की भीड़ उमड़ पड़ी है, वहीं पूर्वी चंपारण के रक्सौल, पश्चिमी चंपारण के इनरवा,...
लॉकडाउन में ढिलाई के बाद बिहार के अन्य शहरों की तरह भारत-नेपाल सीमा के बाजार भी खुल गए हैं। जहां दूसरे शहरों में खरीदारों की भीड़ उमड़ पड़ी है, वहीं पूर्वी चंपारण के रक्सौल, पश्चिमी चंपारण के इनरवा, सीतामढ़ी में सुरसंड-भिठ्ठामोड़ और मधुबनी के लदनियां बाजारों में लॉक डाउन समाप्त होने के बावजूद सन्नाटा पसरा है। ये सीमावर्ती बाजार भले ही भारतीय क्षेत्र में हैं, परन्तु इनका 90 प्रतिशत थोक व खुदरा व्यवसाय नेपाली ग्राहकों से ही होता है।
भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा को सख्ती से सील किया गया है। जब तक दोनों देशों के बीच आवाजाही पर रोक नहीं हटेगी, सीमा के बाजार बेरौनक रहेंगे। लॉक डाउन से पहले रोजाना करोड़ों का कारोबार करने वाले रक्सौल शहर में व्यापारी निर्धारित समय से दो घंटा पहले ही दुकानें बंद कर ले रहे हैं। जब ग्राहक ही नहीं आ रहे हैं तो दुकान खोलकर बैठे रहने से क्या फायदा है? भारत-नेपाल सीमा पर हजारों व्यवसाइयों पर तिहरा मार पड़ी है। उनकी करोड़ों की पूंजी नेपाल में फंस गई है। गोदाम का माल बर्बाद हो गया है और 72 दिनों से व्यवसाय पर ब्रेक है। रक्सौल के 2000 व्यवसायियों के मोबाइल में भारत व नेपाल के अलग-अलग सिम कार्ड हैं। माल की आपूर्ति व बकाया वसूली के लिए रोजाना आना-जाना लगा रहा है। आजकल नेपाली नंबर खामोश हैं। बकाया लेकर बैठे नेपाली व्यवसायी इनके कॉल रिसीव नहीं कर रहे हैं।
वीरगंज में मंदी, नेपाल में महंगाई
लॉकडाउन से पहले दिन भर हजारों खुदरा व थोक खरीदारों का तांता लगा रहता था। रक्सौल के युवा व्यवसायी दुर्गेश गुप्ता कहते हैं कि नेपाल में आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत है। खाद्य सामग्रियों एवं अन्य सामान की कीमतें बढ़ गयी हैं। दूसरी ओर सीमावर्ती बाजार में मंदी है। वीरगंज बाजार में व्यापारियों के माल सड़ रहे हैं। दुर्गेश नेपाल में चावल, धान व आटा का थोक निर्यात करते थे। सीमा पर माल की अधिकृत ढुलाई शुरू हो गई है, परन्तु नेपाल के व्यवसायी लॉक डाउन के पहले का बकाया नहीं दे रहे हैं। पैसे मांगने पर सीधा जवाब देते हैं- पुराना हिसाब लॉक डाउन टूटने के बाद करेंगे। नया आपूर्ति की बात कीजिए। लाखों रुपये नेपाल में फंसे हैं। दुर्गेश कहते हैं कि जब तक नेपाली व्यापारियों से रूबरू बात नहीं होगी, उनकी मंशा समझना मुश्किल है। बकाया भुगतान के बगैर अगली खेप भेजना खतरनाक है।
इनरवा बाजार में सन्नाटा
विगत दस वर्षों में व्यवसाय का बड़ा केन्द्र बनकर उभरे पश्चिमी चंपारण के इनरवा बाजार में सन्नाटा है। दवा दुकानदार जनार्दन प्रसाद कुशवाहा कहते हैं कि आलू-प्याज, खाद्दान्न व सीमेंट हो या दवा की दुकान, कहीं भी नेपाली खरीदार नहीं आ रहे हैं। सुबह होते ही नेपाल के पर्सा जिले से हजारों पैदल व साइकिल-बाइक सवार नेपाली ग्राहकों की आवाजाही शुरू हो जाती थी। पहले फुर्सत नहीं मिलती थी। आज समय है, व्यापार नहीं। व्यापारियों को भविष्य की चिंता सता रही है। व्यापार बदलने की सोच रहे हैं, परन्तु नेपाल में बकाया डूबने का खतरा है।
सुरसंड-भिठ्ठामोड़ में व्यवसाय चौपट
सीतामढ़ी में सुरसंड से भिठ्ठामोड़ सीमा तक नेपाली ग्राहकों पर आश्रित एक हजार से अधिक दुकानों में व्यवसायी मायूस हैं। अचानक लॉकडाउन लागू होने से नेपाल में बकाया वसूलने का मौका नहीं मिला। किराना व्यवसायी अजय गुप्ता बताते हैं कि शादी-विवाह के मौके पर बड़ी कंपनियों की मिठाई के 300 कंटर का स्टॉक किया था। रसगुल्ले व राजभोग सड़ गए। भारतीय कपड़े, जूते-चप्पल, शृंगार सामग्री, भवन निर्माण सामग्री नेपाली ग्राहकों की पहली पसंद होती हैं। नेपाल में सीमावर्ती महोत्तरी जिले में सख्ती की वजह से मेन बॉर्डर व ग्रामीण रास्तों से भी ग्राहक नहीं आ पा रहे हैं।
लदनियां में व्यापारियों की डूबी लुटिया
जब तक नेपाल बॉर्डर नहीं खुलेगी, मधुबनी के लदनियां बाजार में चमक नहीं लौटेगी। जिस सड़क पर नेपाल के सिरहा जिला के ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी, वह लॉक डाउन समाप्त होने पर भी खाली पड़ी है। व्यवसायी प्रमोद कुमार बताते हैं कि हर दुकानदार का नेपाल में उधार फंसा है। प्रमोद के आठ लाख रुपये डूबने का खतरा है। करोड़ों का उधार दे चुके सभी व्यापारियों की लुटिया डूब गई। पिछले 72 दिनों में एक भी नेपाली ग्राहक माल नहीं ले गया। अगर कुछ दिन और बॉर्डर नहीं खुला तो व्यापारी रोड पर आ जाएंगे। पलदार से लेकर ड्राइवर-खलासी तक, लदनिया बाजार पर हजारों परिवार आश्रित हैं।