कैमूर पहाड़ी की अंधेरी गुफा में बसे नीलकंठ महादेव,कोई बैठकर तो कोई लेटकर पहुंच रहा, जानिए रहस्यमयी कहानी
बिहार में कैमूर की पहाड़ी की अंधेरी गुफा में नीलकंठ महादेव विराजमान हैं। भक्त बाबा भोले तक पहुंचने के लिए मुश्किलों की परवाह किए बिना जा रहे हैं। कोई लेटकर पहुंच रहा है तो कोई बेठकर।
बिहार में कैमूर पहाड़ी पर दो ऐसी गुफाए हैं जिसके अंदर प्राचीन शिवलिंग है, लेकिन इसकी प्राचीनता के बारे में किसी को पता नहीं है। यहां की दोनो गुफाएं इतनी सकरी है कि वहां तक भक्त लेटकर या फिर बैठकर दर्शन-पूजन करने जाते हैं। इन्हें अंधेरी गुफाओं के नाम से भी जाना जाता है। भगवानपुर प्रखंड की जैतपुर कला के इंजीनियरिंग कॉलेज की पहाड़ी गुफा में नीलकंठ महादेव तो अधौरा प्रखंड के तेल्हाड़ कुंड के नीचे पश्चिम पहाड़ी की गुफा में विकटनाथ बाबा का शिवलिंग है।
नीलकंठ महादेव की पूजा-अर्चना के लिए जहां शिव भक्तों को पहाड़ी की उंची घाटी चढ़ना पड़ता है, वहीं विकटनाथ बाबा के पास जाने के लिए उंची पहाड़ी से नीचे उतरना पड़ता है। शिव भक्त राजेश कुमार व राजीव रंजन बताते हैं कि बाबा के शरण तक पहुंचने में काफी दिक्कत होती है। चोट भी लग जाती है। शरीर के कुछ अंग छिल व कट भी जाते हैं। मगर बाबा के दरबार में पहुंचने पर सुकून व शांति मिलती है। भगवानपुर के 95 वर्षीय सिपाही पांडेय मनमौजी से पूछने पर बताया कि नीलकंठ महादेव व विकटनाथ बाबा का शिवलिंग कितना प्राचीन है, किसी को पता नहीं है। वहां की यात्रा तो काफी कष्टकारक होती है।
विंध्य पर्वत की शृंखला में कैमूर पहाड़ी में कई गुफाए हैं। इन्हीं गुफाओं में से उक्त दोनों गुफाए हैं। जैतपुर कला के पास की अंधेरी गुफा में करीब 50 फुट अंदर जाने पर एक वर्गाकार पोखरा दिखता है, जिसके मध्य में शिवलिंग है। इन्हें नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है। मंगरू बिंद और घरभरन बिंद ने बताया कि गांव के बुजुर्ग बताते थे कि इस पहाड़ी के उपर दूसरी गुफा में एक साधु कुटिया बनाकर रहते थे, जिसका अवशेष आज भी है। वही नीलकंठ महादेव की गुफा के प्राचीन शिवलिंग की पूजा करते थे।
नीलकंठ महादेव नाम पड़ने की कहानी
ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार व जितेन्द्र गुप्ता ने बताया कि जेठ की दोपहरी थी। रमावतपुर के एक बुजुर्ग लकड़हारा लकड़ी चुनने उक्त पहाड़ी पर गया था। कड़ी धूप व थकान से उसे जोर से प्यास लगी। उसका शरीर बेदम हो रहा था। पहाड़ी से नीचे उतरने की उसमें शक्ति नहीं थी। वह इसी गुफा के मुहाने पर बैठ गया। इसी दौरान गुफा के अंदर से एक नीलकंठ (पंक्षी) निकला। उसका पंख पानी से भींगा था। यह देख प्यासा लकड़हारा के अंदर आस जगी और वह पानी की तलाश में गुफा के अंदर चला गया। उसने देखा के वहां एक पोखरा है और उसके अंदर शिवलिंग है। पहले उसने पोखरे का पानी पीकर प्यास बुझाई। तब उसने मन ही मन कहा कि इस गुफा में विराजमान नीलकंठ महादेव ने हमें साक्षात दर्शन देकर हमारी जान बचाई है। तब से इस गुफा के प्राचीन शिवलिंग को लोग नीलकंठ महादेव के नाम से जानने लगे।
गुफा में मौजूद अज्ञात मार्ग
इंजीनियरिंग कॉलेज के पास की पहाड़ी पर यह गुफा शिखर पर है। इसमें बैठे-बैठे करीब 50 फीट अंदर जाने पर दो मार्ग दिखते हैं। एक मार्ग अज्ञात है और दूसरा शिवलिंग के पास जाता है। इस स्थल पर चार मीटर वर्गाकार में एक पोखरा है। इसी पोखरा के मध्य में प्राचीन शिवलिंग है। इस शिवलिंग के उपर एक घंट लटकता दिखता है, जिससे यह प्रतित होता है कि यह शिवलिंग प्राचीन है।