Hindustan Special: कैमूर के बैजनाथ धाम में भी देखने को मिलता है खजुराहो के चंदेल कला का नमूना, तंत्र साधना का रहा है केंद्र
कैमूर का प्राचीन बैजनाथ धाम मंदिर बिहार की ऐसी धरोहर है, जो अपने आंचल में धर्म, इतिहास व अनूठी कलाकृतियां समेटे हुए है। प्राचीन काल से ही यह तंत्र साधना का केंद्र रहा है।
कैमूर का प्राचीन बैजनाथ धाम मंदिर बिहार की ऐसी धरोहर है, जो अपने आंचल में धर्म, इतिहास व अनूठी कलाकृतियां समेटे हुए है। प्राचीन काल से ही यह तंत्र साधना का केंद्र रहा है। चंदेलकालीन स्थापत्य कला की यहां अनूठी छाप देखने को मिलती है। खजुराहो के कंदरिया महादेव मंदिर की तरह बैजनाथ मंदिर भी दुर्लभ अष्टकोणीय आधार पर निर्मित है।
खजुराहो के मंदिरों की तरह ही कामुक प्रभाव वाली मूर्तियां व मकर तोरणद्वार के अवशेष धाम में मौजूद हैं। मंदिर के गर्भगृह में लिंग के अतिरिक्त उत्तरी दीवार पर योनि का अंकन है। परिसर में मैथुनरत दर्जनों मानव व पशुओं की मूर्तियों के अलावा स्तनपान कराती महिला, नृत्यरत अप्सराएं, समूह में विभिन्न भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन करती सुंदरी, त्रिमूर्ति भैरव, गणेश, वाराही, नृत्यरत नटराज के अंकन का अवशेष देख सकते हैं। परिसर में करीने से सजा कर रखी गई इन मूर्तियों को श्रद्धालु अपलक निहारते हैं।
चंदेल शासक ने कराया था निर्माण
बताया जाता है कि चंदेल शासक शैव थे। इसी वंश के प्रतापी शासक विद्याधर धंग ने बैजनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। धंग ने ही कंदरिया महादेव मंदिर समेत खजुराहो के अन्य मंदिरों का भी निर्माण कराया था। जानकार बताते हैं कि पूर्व मध्य काल में मंदिरों के निर्माण में तंत्र साधना पद्धति के तहत योग के साथ भोग व प्रेमानुभूति का अंकन जरूरी माना जाता था।
छतरपुर जिले में खजुराहो, बैजनाथ का पड़ोसी गांव छतरपुरा
खजुराहो और कैमूर के बैजनाथ धाम में एक समानता है। खजुराहो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। बिहार के बैजनाथ धाम के बगल में भी छतरपुरा गांव स्थित है। श्रद्धालु इस अनूठे मेल की चर्चा करते हुए बैजनाथ मंदिर को खजुराहो के मंदिर से जोड़ते हैं।
बैजनाथ धाम के चारों कुंड तंत्र साधना के साक्षी
तंत्र साधना में नौ कुंडों का विशेष महत्व है। चंदेलकालीन स्थापत्य में मंदिर के बाहर कुंड बनाए गए। बैजनाथ मंदिर के चारों कोनों पर चार कुंड ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, रुद्र कुंड व ध्रुव कुंड थे, जिनमें से तीन आज भी मौजूद हैं।
सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन व गैरिक भी आए थे बैजनाथ
बैजनाथ मंदिर की प्रसिद्धि सुनकर अंग्रेज सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन 13 फरवरी 1813 को यहां आए थे। उन्होंने अपनी यात्रा वृत्तांत में बैजनाथ मंदिर का जिक्र किया है। चारों कुंडों का भी जिक्र किया है। बुकानन ने मकरध्वज योगी 700 लिखे स्तंभ की भी चर्चा की है जो आज भी धाम में मौजूद है। बुकानन के बाद 1882 में गैरिक भी यहां आए। गैरिक ने 22 चतुर्मुख लघु स्तंभ व चारों कुंडों को अपने यात्रा वृत्तांत में जगह दी है।
कैसे पहुंचे
बैजनाथ धाम कैमूर के रामगढ़ प्रखंड में स्थित है। प्रखंड मुख्यालय से देवहलियां रोड में नौंवे किमी पर मंदिर का प्रवेश द्वार है। यहां पटना या वाराणसी से भभुआ रोड या यूपी के दिलदारनगर जंक्शन से 15 किमी का सफर तय कर या बक्सर से 50 किमी की यात्रा कर रामगढ़ के रास्ते पहुंच सकते हैं।