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हिन्दुस्तान स्पेशल: अजगैवीनाथ मंदिर के महंत देवघर में नहीं करते हैं जलाभिषेक, भोले बाबा ने खुद किया था मना

करीब 500 साल पहले महंत सिद्धनाथ भारती और उनके शिष्य केदारनाथ भारती प्रतिदिन यहां से जल भरकर बाबा बैजनाथधाम पर अभिषेक करते थे। दोनों की भक्ति देखकर एक दिन शिव ने साधारण साधू के वेष में परीक्षा ली।

Jayesh Jetawat हिन्दुस्तान, भागलपुरSat, 8 July 2023 07:34 AM
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Hindustan Special: बिहार के भागलपुर में सुल्तानगंज स्थित अजगैवीनाथ मंदिर और देवघर स्थित बाबा बैजनाथ धाम का संबंध युग-युगांतर का है। अजगैवीनाथ मंदिर के पास से ही गंगा उत्तर वाहिनी बहती है। यहां का गंगाजल ही देवघर स्थित ‘कामना लिंग’ पर चढ़ता है। श्री शिव महापुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग की गणना के क्रम में श्री बैद्यनाथ को नौवां ज्योतिर्लिंग बताया गया है। यही वजह है कि उत्तर वाहिनी गंगा का जल लेकर सदियों से शिव भक्त श्रद्धालु बैजनाथ धाम तक कांवर यात्रा करते हैं। कांवर यात्रा से पहले श्रद्धालु बाबा अजगैवीनाथ की पिंड पर भी जलार्पण जरूर करते हैं। ताकि महादेव खुश रहें। लेकिन अजगैवीनाथ मंदिर के महंत ही देवघर में जलार्पण नहीं करते हैं। वजह यह है कि अनोखी परंपरा का निर्वहन करने के लिए उन्होंने खुद को देवघर से अलग कर लिया है।

अजगैवीनाथ मंदिर के वर्तमान महंत प्रेमानंद गिरी 16 साल से यहां रह रहे हैं, लेकिन देवघर में कदम नहीं रखा। वे बताते हैं कि बचपन में वे देवघर गए थे। जब जूनागढ़ अखाड़ा से उन्हें अजगैवीनाथ मंदिर की गद्दी सौंपी गई तो सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करने के लिए यहीं सीमित होकर रह गए। 

वे बताते हैं कि करीब 500 साल पहले महंत सिद्धनाथ भारती और उनके शिष्य केदारनाथ भारती प्रतिदिन यहां से जल भरकर बाबा बैजनाथधाम पर अभिषेक करते थे। दोनों की भक्ति देखकर एक दिन शिव ने साधारण साधू के वेष में परीक्षा ली। खुद को अति प्यासा बताकर जलभरी का पानी पिलाने को कहा। दोनों महंतों ने कहा, यह तो संकल्प किया जल है। जो सिर्फ ‘कामना लिंग’ पर ही चढ़ता है। कहें तो दूसरी जगह से पानी ला दूं। साधू के इंकार के बाद दोनों महंत आगे बढ़ गए। देवघर से पहले ही साधू के रूप में मिले भोलेनाथ ने स्वयं के रूप में आकर दोनों को दर्शन दिए और रास्ते में पानी मांगने की बात बताई। शिव ने कहा, रोज-रोज देवघर आने की कोई जरूरत नहीं। मैं तो दिनभर अजगैवीनाथ मंदिर में ही रहता हूं। बस श्रृंगार के वक्त देवघर में होता हूं।

दोनों महंत को जीवित ही पिंडी दिया गया था, इसलिए शिव के साथ होती है पूजा
महंत गिरी बताते हैं, भगवान शिव ने दोनों महंतों को आशीर्वाद दिया कि अजगैवीनाथ मंदिर में मेरे पिंड के बगल में ही तुम दोनों की पिंड भी रहेगी। तुम दोनों पर जलार्पण के बाद ही भक्तों को मेरा आशीर्वाद मिलेगा। बस तब से ही परंपरा चल रही है कि कांवरिया यात्रा से पहले यहां तीनों पिंडियों पर जलार्पण करते हैं और दर्शन के बाद ही बाबा बैजनाथ धाम की यात्रा पर निकलते हैं। परंपरा के निर्वहन के लिए अब तक जितने भी महंत मठाधीश हुए, उन्होंने देवघर में कभी भी जलार्पण नहीं किया। यहां जलार्पण से भी शिव के खुश होने को लेकर सदियों पहले यहां की महारानी कलावती ने 1836 में सोने का पताका दान में दिया था। यह स्वर्ण पताका आज भी मंदिर के शीर्ष पर सुशोभित है।

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