Hindustan Special: इतिहास के पन्नों में दफन हो गया बिहार का 21 किमी लंबा रोप-वे, 1919 में बनकर हुआ था तैयार
रोप-वे पर बैठ सोन नदी को पार करना अपने-आप में रोमांचकारी था। बौलिया चूना पत्थर खदान रोप-वे को लेकर ज्यादा विख्यात था। चुनहट्टा-बौलिया-जपला रोप-वे की लंबाई लगभग 21 किमी थी, जो बिहार में सबसे लंबा था।
हिन्दुस्तान विशेष: बिहार के रोहतास जिले का बैलिया क्वायरी रोप-वे इतिहास के पन्ने में दफन हो गया है। 21 किलोमीटर लंबे इस रोप-वे की चर्चा पूरे भारत में थी, जिसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते थे। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि अंग्रेजी शासन के समय ब्रिटेन से भी पर्यटकों का दल रोप-वे देखने आता था। रोप-वे की बनावट व सोन नदी से गुजरने का मंजर को कैद करने के लिए उस समय अंग्रेज कैमरा लेकर आते थे।
रोप-वे पर बैठ सोन नदी को पार करना अपने-आप में रोमांचकारी था। बौलिया चूना पत्थर खदान रोप-वे को लेकर ज्यादा विख्यात था। चुनहट्टा-बौलिया-जपला रोप-वे की लंबाई लगभग 21 किलोमीटर थी, जो बिहार का सबसे लंबा रोप-वे हुआ करता था। रोप-वे निर्माण का कार्य 1916 में शुरू हुआ था और 1919 में बनकर तैयार हो गया था।
लोग बताते हैं कि रोप-वे निर्माण का काम अंग्रेज अधिकारी सीपी हार्वे के कुशल नेतृत्व में किया गया था, इसका निर्माण मुख्यत: लाइम स्टोन की ढुलाई के लिए किया गया था। बौलिया से लाइम स्टोन सोन नदी पार कर जपला के पोर्टलैंड सीमेंट कारखाना देवरी जाता था, जहां सीमेंट का उत्पादन होता था। सीमेंट फैक्ट्री में सीमेंट का निर्माण कार्य 16 मार्च 1921 को हुआ था। उस समय जपला बिहार का ही हिस्सा हुआ करता था। रोप-वे के माध्यम से लाइम स्टोन की ढ़लाई के साथ सीमेंट फैक्ट्री के अधिकारी भी निरीक्षण करने उसी रोप-वे से जाया करते थे। उनके लिए रोप-वे में ट्रॉली के साथ कुर्सी बनी हुई थी, जिसपर बैठ अधिकारी बड़े ही आसानी से जपला सीमेंट फैक्ट्री से बैलिया क्वायरी पहुंच जाते थे।
दूरी कम करने के लिए रोप-वे का किया गया था निर्माण
बताया जाता है कि जपला के देवरी में पोर्टलैंड सीमेंट फैक्ट्री लगाने की योजना बनने के बाद सीमेंट के लिए लाइम स्टोन पहुंचाने की समस्या उत्पन्न हो रही थी। दूरी की समस्या को दूर करने को लेकर अंग्रेज अधिकारियों ने रोप-वे निर्माण पर कार्य करना शुरू किया। रोप-वे का निर्माण हो जाने से फैक्ट्री तक लाइम स्टोन पहुंचाने में काफी सहुलियत हुई। कैमूर पहाड़ी की तहलट्टी में स्थित बौलिया व चुनहट्टा के खदानों से निकाले जाने वाला चूना पत्थर रोप-वे के माध्यम से सोन नदी पार कर जपला स्थित पोर्टलैंड सीमेंट फैक्ट्री देवरी को जाता था।
फैक्ट्री बंद होने के साथ रुक गया रोप-वे का पहिया
1992 में पोर्टलैंड सीमेंट फैक्ट्री बंद होने के साथ ही रोप-वे का भी पहिया थम गया। साथ ही बैलिया क्वायरी में काम करने वाले लगभग पांच हजार मजदूर बेरोजगार हो गए। फैक्ट्री को परिसमापन में चले जाने के बाद रोपवे को पुन: शुरू होने की उम्मीद खत्म हो गई। आखिरकार 2018 में रोप-वे के स्क्रैप की नीलामी दो करोड़ चार लाख में कर दी गई, जिसके बाद बौलिया क्वायरी रोप-वे इतिहास के पन्नों में दफन हो गया।