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दरभंगा में चलता था फर्जी यूनिवर्सिटी, पति-पत्नी और भाई मिल कर रहे थे शिक्षा का व्यापार; जानें कैसे खुला राज

पूर्व कुलपति डॉ. किशोर कुणाल ने 15 मई 2004 को कुलसचिव के माध्यम से कुलाधिपति को अपनी निरीक्षण रिपोर्ट भेजी थी। उसमें फर्जी केंद्रीय विश्वविद्यालय के संचालन के संबंध में विस्तार से अवगत कराया गया है।

Sudhir Kumar हिंदुस्तान, दरभंगाMon, 27 Nov 2023 05:53 PM
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कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ. हरिनारायण ठाकुर की नियुक्ति एवं भुगतान में अनियमितता की जांच रिपोर्ट में उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार का खेल सामने आया है। जांच रिपोर्ट के साथ संलग्न दस्तावेजों से प्रमाणित होता है कि डॉ. ठाकुर पूर्व में संस्कृत कॉलेज के नाम पर फर्जी केंद्रीय विश्वविद्यालय का संचालन करते थे।

इस संबंध में विवि के पूर्व कुलपति डॉ. किशोर कुणाल ने 15 मई 2004 को कुलसचिव के माध्यम से कुलाधिपति को अपनी निरीक्षण रिपोर्ट भेजी थी जिसमें फर्जी केंद्रीय विश्वविद्यालय के संचालन के संबंध में विस्तार से अवगत कराया गया है। फरवरी 2011 में विवि की तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में फर्जी केंद्रीय विश्वविद्यालय के संचालन के आरोपों को सही बताया है। पूर्व कुलपति डॉ. कुणाल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि डॉ. हरिनारायण ठाकुर जिस विद्यानंद मिथिला संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य थे, उसका पूर्व में नाम था मैथिली विश्वविद्यापीठ संस्कृत कॉलेज। विवि व सरकार के पत्राचारों में दिसंबर 1985 तक यही नाम मिलता है। इसी कॉलेज परिसर में 70-80 के दशक में इसी के नाम से मिलता-जुलता एक फर्जी विश्वविद्यालय संचालित हो रहा था जिसका नाम था मैथिली विश्वविद्यापीठ केंद्रीय विश्वविद्यालय।

इस फर्जी केंद्रीय विवि ने संस्कृत में महामहोपाध्याय व विद्या-वाचस्पति से लेकर मेडिकल उपाधियों तक दर्जनों प्रकार की डिग्रियां लाखों की रकम लेकर बांटी तथा देश के अनेक कॉलेजों को संबद्धता प्रदान की। जब इसका भंडाफोड़ हुआ तब अनेक आपराधिक मामले इस विवि के विरुद्ध दर्ज हुए और इस विवि के उप कुलपति और कुलसचिव को आंध्र प्रदेश की पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। दिलचस्प यह कि इस फर्जी विवि के कुलसचिव डॉ. हरिनारायण ठाकुर थे और उप कुलपति थे इनके बड़े भाई सूर्य नारायण ठाकुर उर्फ दीनराज शांडिल्य। डॉ. ठाकुर को आंध्र प्रदेश पुलिस 17 अगस्त 1992 को पकड़कर ले गयी थी। वहां से जमानत पर छूटने के बाद 25 सितंबर 1992 से वे पुन प्रभारी प्रधानाचार्य के पद पर कार्य करने लगे। इनके बड़े भाई लंबी अवधि तक कारागार में रहे, लेकिन कॉलेज-विवि में इनका बाल बांका नहीं हुआ। फर्जी विवि का भंडाफोड़ होने के बाद मैथिली विश्वविद्यापीठ संस्कृत कॉलेज का नाम बदलकर इन्होंने अपने पिता विद्यानंद ठाकुर के नाम पर इसका नाम विद्यानंद मिथिला संस्कृत कॉलेज रख लिया।

डॉ. ठाकुर की पत्नी भी इस कॉलेज में अवैध रूप से नियुक्त की गई और नियमों को ताक पर रखकर उन्हें आर्थिक लाभ दिया गया। पूर्व कुलपति ने अपनी रिपोर्ट में डॉ. ठाकुर, उनके भाई और पत्नी की नियुक्ति और उनके प्रमाणपत्रों का पूरा काला चिट्ठा खोल कर रख दिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे परिवार ने मिलकर अवैध तरीके से कॉलेज का संचालन किया और अपने मनोनुकूल नियुक्तियां की हैं। गिरफ्तारी व कारावास के बाद भी ये कभी निलंबित नहीं हुए। वर्तमान जांच रिपोर्ट में भी विवि स्तर पर तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए नियम विपरीत डॉ. ठाकुर की सेवा को निरंतरता प्रदान करने की पुष्टि करते हुए विवि प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया गया है।

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